नई दिल्ली : कैंसर के उपचार को वहनीय बनाने पर जोर देते हुए संसद की एक समिति ने सोमवार को सरकार के शीर्ष अधिकारियों को कैंसर की दवाओं पर जीएसटी हटाने और दवाओं एवं विकिरण चिकित्सा की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिये कड़े कदम उठाने का सुझाव दिया. सूत्रों ने यह जानकारी दी. समिति ने यह भी सुझाव दिया कि कैंसर को अधिसूचित रोग की श्रेणी में रखा जाना चाहिए ताकि देश पर पड़ने वाले इसके प्रभावों का आकलन किया जा सके एवं मरीजों को मदद पहुंचाने के लिये कदम उठाये जाने चाहिए.
पढ़ें: ओडिशा के वैज्ञानिक ने स्तन कैंसर की दवा बनाने का किया दावा
उल्लेखनीय है कि कानून के तहत अधिसूचित रोग के बारे में सरकारी प्रधिकार को जानकारी देनी होती है. इस बारे में जानकारी एकत्र होने से प्राधिकार के लिये रोगों पर नजर रखना आसान होता है. सूत्रों ने बताया कि समिति के सदस्यों ने स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों से कहा कि देश में कैंसर का उपचार काफी खर्चीला है और इसके उपचार की कीमतों पर नियंत्रण की सख्त जरूरत है. स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण सहित शीर्ष अधिकारी सोमवार को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से संबंधित संसदीय समिति के समक्ष उपस्थित हुए, जहां कैंसर के उपचार की वहनीयता पर चर्चा हुई. सूत्रों ने बताया कि कैंसर के उपचार में उपयोग में आने वाली दवाओं पर जीएसटी के बारे में चर्चा करते हुए समिति के सदस्यों ने कहा कि सरकार को ऐसी दवाओं पर जीएसटी हटाने के उपाए तलाशने चाहिए ताकि इसकी कीमतें कम हो सकें और उपचार वहनीय हो सके.
अधिकारियों ने समिति को बताया कि औषधि विनियामक ‘औषधि कीमत प्राधिकार’ ने अब तक 86 दवाओ की कीमतें तय कर दी हैं और 49 दवाओं का कारोबार लाभ व्यावहारिक बनाया है तथा कैंसर के उपचार के लिये उपयोग में आने वाली दवाओं की अधिकतम खुदरा कीमत (एमआरपी) में कमी की है. उन्होंने बताया कि सरकार सर्विकल कैंसर के उपचार में उपयोग में आने वाली एचपीवी टीके को देश में लागू करना चाहती है, इस बारे में नियामक मंजूरी दी गई है लेकिन मामला विचाराधीन है.
मंगलवार को राष्ट्रीय कैंसर संस्थान, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), झज्जर, हरियाणा सहित कुछ संगठन डॉ. भुवनेश्वर बोरूआ कैंसर संस्थान (बीबीसीआई), गुवाहाटी, असम; चित्तरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (सीएनसीआई), कोलकाता, पश्चिम बंगाल; तथा राष्ट्रीय कैंसर निवारण एवं अनुसंधान संस्थान, गौतमबुद्धनगर, उत्तर प्रदेश समिति के समक्ष अपने सुझाव रखेंगे. समिति पहले से ही डॉ भुवनेश्वर बोरूआ कैंसर संस्थान (बीबीसीआई), गुवाहाटी से अनुसंधान प्राप्त कर रही है और जैसा कि चित्तरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (सीएनसीआई), कोलकाता द्वारा प्रस्तुत किया गया है. इसमें 28 अप्रैल, 2022 को मुंबई में समिति के स्टडी टूर के दौरान टाटा मेमोरियल अस्पताल, मुंबई द्वारा प्रस्तुत इस विषय पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग से प्राप्त पृष्ठभूमि नोट पर भी सदस्यों ने चर्चा किया.विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में भी कैंसर मृत्यु का प्रमुख कारण है, 2018 में 7.84 लाख मौतें दर्ज की गईं और 2020 में 13.92 लाख मामले दर्ज किए गए.
पढ़ें: ब्लड कैंसर से लड़ने के लिए आईआईटी इंदौर ने तैयार की दवा
एक विशेषज्ञ के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर कैंसर की देखभाल पर औसतन 1,16,218 रुपये खर्च होता है, वहीं निजी अस्पतालों में कैंसर देखभाल की कुल लागत 1,41,774 रुपये थी, जबकि सार्वजनिक अस्पतालों में यह तुलनात्मक रूप से 72,092 रुपये थी. राज्य-वार पैटर्न से पता चलता है कि भारत में कैंसर देखभाल की कुल लागत ओडिशा में 74,699 रुपये से लेकर झारखंड राज्य में 2,39,974 रुपये तक है. आठ राज्यों- ओडिशा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार और हरियाणा में कैंसर के इलाज की कुल लागत 1 लाख रुपये से कम थी. हालांकि कैंसर रोगियों ने पंजाब, कर्नाटक, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इलाज पर 1-1.5 लाख रुपये तक खर्च किए. जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, असम, हिमाचल प्रदेश और झारखंड में कैंसर के इलाज में 1.5 लाख रुपये से अधिक का खर्च आता है.
चिकित्सा और गैर-चिकित्सा व्यय एक महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर फोकस किए जाने की आवश्यकता है. कुल कैंसर देखभाल खर्च का लगभग 90 प्रतिशत चिकित्सा देखभाल से संबंधित है, जिसमें डॉक्टरों की परामर्श, दवाएं, नैदानिक परीक्षण, बिस्तर शुल्क और अन्य चिकित्सा सेवाएं जैसे ब्लड ट्रांसफ्यूजन और ऑक्सीजन पूरकता पर खर्च शामिल हैं. शेष 10 प्रतिशत गैर-चिकित्सा मदों पर है. जिसमें परिवार के अन्य सदस्यों के लिए परिवहन, भोजन, अनुरक्षण और परिवहन शामिल है. राज्य-वार पैटर्न से पता चलता है कि दो राज्यों, छत्तीसगढ़ और बिहार में गैर-चिकित्सा खर्चों ने सभी कैंसर व्यय में 20 प्रतिशत से अधिक का योगदान दिया, जबकि नौ राज्यों-ओडिशा, आंध्र प्रदेश, झारखंड, केरल, हिमाचल प्रदेश में, राजस्थान, तमिलनाडु, असम और जम्मू-कश्मीर में 10 प्रतिशत से अधिक खर्च गैर-चिकित्सा सेवाओं पर था.