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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का निर्देश, बाल-विवाह रोकने पर हो गंभीरता के काम

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक प्रेमी जोड़े की सुरक्षा याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यदि कोई लड़की नाबालिक होने के बावजूद लिव इन में रहते हुए सुरक्षा की मांग करें तो वह गलत है. हाईकोर्ट ने बाल विवाह पर रोक लगाने के लिए हरियाणा पंजाब नसीहत दी है कि ऐसे मामलों पर गंभीरता से काम किया जाए. बाल विवाह को रोकने के लिए उचित कदम उठाए जाएं.

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Published : Jun 15, 2021, 12:37 AM IST

चंडीगढ़ : याचिकाकर्ता युवक की उम्र 20 वर्ष 2 महीने और याचिकाकर्ता लड़की की उम्र 14 वर्ष 8 महीने है. जिन्होंने हाईकोर्ट में दावा किया था कि वे दोनों प्यार करते हैं लेकिन लड़की के माता-पिता उनके रिश्ते का विरोध कर रहे हैं. कोर्ट को यह बताया गया कि 1 जून 2021 को दोनों ने अपना घर छोड़ा और क्योंकि वह विवाह योग्य नहीं है ऐसे में उन्होंने लिव इन में रहना शुरू कर दिया.

उन्होंने याचिका में कहा कि उन्हें डर है कि उनके माता-पिता उन्हें मार देंगे. ऐसे में मुझे सुरक्षा प्रदान की जाए. इससे पहले उन्होंने एसपी तृषा को एक मांग पत्र दिया था लेकिन वहां से उन्हें कोई सुरक्षा नहीं दी गई. जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया. सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा कि लड़की मात्र 14 साल और 8 महीने की है. इस समय नाबालिक है. कोर्ट ने 2017 के सुप्रीम कोर्ट की केस का हवाला देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर बाल विवाह के प्रतिकूल प्रभावों का गहराई से विश्लेषण किया था.

कोर्ट ने कहा था कि वास्तव में बाल विवाह की प्रथा भले ही परंपरा और रीति-रिवाज के अनुसार पवित्र हो लेकिन इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाना जरूरी है. क्या ऐसी पारंपारिक प्रथा भी जारी रहनी चाहिए. कोर्ट ने युवक के बारे में कहा कि वह लड़की का प्रतिनिधित्व कर रहा है और उसकी याचिका में नाबालिक लड़की के अभिभावकों पर पूरा दोष लगा दिया है. ताकि यह जताया जा सके कि परिस्थितियों से मजबूर होकर लड़की ने अपने माता-पिता का घर छोड़ा और लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी.

कोर्ट ने पाया कि लड़के पर पहले से ही नाबालिग बेटी के अपहरण का आरोप है. इसलिए कोर्ट ने कहा कि खुद को नाबालिग लड़की के वैध प्रतिनिधि के रूप में दावा करने का उसकी स्वीकृति स्वीकार करने लायक नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता लड़के ने यह नहीं बताया कि नाबालिग लड़की ने घर छोड़ने के बाद अपने माता-पिता के खिलाफ पुलिस में कोई शिकायत क्यों नहीं की. माता-पिता के साथ अपने मतभेदों को सुलझाने के लिए क्यों किसी अन्य करीबी रिश्तेदार से संपर्क नहीं किया.

कोर्ट ने यह भी कहा कि वर्तमान याचिका जल्दबाजी में दायर की गई है. ताकि लड़के पर अपहरण के आरोप में दर्ज मामले में कार्रवाई से बचा जा सके. हाईकोर्ट ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सिरसा को जिम्मेदार पुलिस अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश देते हुए कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि नाबालिक लड़की की कस्टडी वापस उसके माता-पिता को सौंपी जा सके.

यह भी पढ़ें-कैबिनेट विस्तार की सुगबुगाहट, सिंधिया-अनुप्रिया हो सकते हैं शामिल, और भी हैं कई चेहरे

कोर्ट ने इस आदेश की कॉपी हरियाणा पंजाब के मुख्य सचिव व चंडीगढ़ प्रशासक के सलाहकार को भेजने के निर्देश देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बाल विवाह निषेध पर 2017 में दिए गए निर्देश पर सुझावों पर गंभीरता से अमल कर कार्रवाई की जानी चाहिए.

चंडीगढ़ : याचिकाकर्ता युवक की उम्र 20 वर्ष 2 महीने और याचिकाकर्ता लड़की की उम्र 14 वर्ष 8 महीने है. जिन्होंने हाईकोर्ट में दावा किया था कि वे दोनों प्यार करते हैं लेकिन लड़की के माता-पिता उनके रिश्ते का विरोध कर रहे हैं. कोर्ट को यह बताया गया कि 1 जून 2021 को दोनों ने अपना घर छोड़ा और क्योंकि वह विवाह योग्य नहीं है ऐसे में उन्होंने लिव इन में रहना शुरू कर दिया.

उन्होंने याचिका में कहा कि उन्हें डर है कि उनके माता-पिता उन्हें मार देंगे. ऐसे में मुझे सुरक्षा प्रदान की जाए. इससे पहले उन्होंने एसपी तृषा को एक मांग पत्र दिया था लेकिन वहां से उन्हें कोई सुरक्षा नहीं दी गई. जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया. सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा कि लड़की मात्र 14 साल और 8 महीने की है. इस समय नाबालिक है. कोर्ट ने 2017 के सुप्रीम कोर्ट की केस का हवाला देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर बाल विवाह के प्रतिकूल प्रभावों का गहराई से विश्लेषण किया था.

कोर्ट ने कहा था कि वास्तव में बाल विवाह की प्रथा भले ही परंपरा और रीति-रिवाज के अनुसार पवित्र हो लेकिन इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाना जरूरी है. क्या ऐसी पारंपारिक प्रथा भी जारी रहनी चाहिए. कोर्ट ने युवक के बारे में कहा कि वह लड़की का प्रतिनिधित्व कर रहा है और उसकी याचिका में नाबालिक लड़की के अभिभावकों पर पूरा दोष लगा दिया है. ताकि यह जताया जा सके कि परिस्थितियों से मजबूर होकर लड़की ने अपने माता-पिता का घर छोड़ा और लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी.

कोर्ट ने पाया कि लड़के पर पहले से ही नाबालिग बेटी के अपहरण का आरोप है. इसलिए कोर्ट ने कहा कि खुद को नाबालिग लड़की के वैध प्रतिनिधि के रूप में दावा करने का उसकी स्वीकृति स्वीकार करने लायक नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता लड़के ने यह नहीं बताया कि नाबालिग लड़की ने घर छोड़ने के बाद अपने माता-पिता के खिलाफ पुलिस में कोई शिकायत क्यों नहीं की. माता-पिता के साथ अपने मतभेदों को सुलझाने के लिए क्यों किसी अन्य करीबी रिश्तेदार से संपर्क नहीं किया.

कोर्ट ने यह भी कहा कि वर्तमान याचिका जल्दबाजी में दायर की गई है. ताकि लड़के पर अपहरण के आरोप में दर्ज मामले में कार्रवाई से बचा जा सके. हाईकोर्ट ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सिरसा को जिम्मेदार पुलिस अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश देते हुए कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि नाबालिक लड़की की कस्टडी वापस उसके माता-पिता को सौंपी जा सके.

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कोर्ट ने इस आदेश की कॉपी हरियाणा पंजाब के मुख्य सचिव व चंडीगढ़ प्रशासक के सलाहकार को भेजने के निर्देश देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बाल विवाह निषेध पर 2017 में दिए गए निर्देश पर सुझावों पर गंभीरता से अमल कर कार्रवाई की जानी चाहिए.

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