चंडीगढ़: पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट ने एक पति की याचिका को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि पति भले पेशेवर भिखारी हो, पत्नी को गुजारा भत्ता देना उसका नैतिक और कानूनी दायित्व है. दरअसल हरियाणा के दादरी जिले की फैमिली कोर्ट ने पति को आदेश दिया था कि वो हर महीने पत्नी को 5 हजार रुपये गुजारा भत्ते के रूप में दे. साथ ही मुकदमे को लेकर हो रहे खर्च के रूप में 5500 रुपये एकमुश्त और प्रति सुनवाई 500 रुपये देने के आदेश भी दिए थे.
क्या है मामला- दरअसल इस मामले में पत्नी ने हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 के तहत तलाक की याचिका दायर की थी. पत्नी की ओर से हर महीने 15 हजार रुपये गुजारा भत्ता और मुकदमे के खर्च के 11 हजार रुपयों की मांग की गई थी. चरखी दादरी फैमिली कोर्ट ने पत्नी की इस याचिका पर पति को 5000 रुपये गुजारा भत्ता, 5500 रुपये एक मुश्त मुकदमे का खर्च और 500 रुपये प्रति सुनवाई देने का आदेश दिया था.
पति की दलील- इस फैसले को पति ने हाईकोर्ट में चैलेंज किया था. पति की दलील थी कि पत्नी की आय के अपने साधन हैं. इसके बावजूद पत्नी उससे गुजारा भत्ता मांग रही है. पति के मुताबिक उसकी इनकम इतनी नहीं है कि वो पत्नी को गुजारा भत्ता दे सके और उन तथ्यों पर गौर किए बगैर ही फैमिली कोर्ट ने पत्नी के हक में फैसला सुना दिया था.
हाइकोर्ट ने क्या कहा- पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस एचएस मदान ने पति की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि तलाक का मामला जब तक चल रहा है तब तक पति को गुजारा भत्ते के रूप में 5000 रुपये हर महीने देने होंगे. कोर्ट ने कहा कि "आजकल एक मजदूर भी रोजाना 500 रुपये या उससे ज्यादा कमाता है और इस मामले में याचिकाकर्ता यानी पति एक सक्षम व्यक्ति है. मौजूदा समय में बढ़ती महंगाई का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि आजकल बुनियादी चीजों की कीमतों को देखते हुए ये नहीं कहा जा सकता कि गुजारा भत्ता बहुत अधिक है"
कोर्ट की बड़ी टिप्पणी- जस्टिस एचएस मदान ने कहा कि "पत्नी अगर खुद का भरण पोषण करने में असमर्थ है तो ये पति का नैतिक और कानूनी दायित्व है, भले पति एक पेशेवर भिखारी ही क्यों ना हो. इस मामले में पति यह साबित नहीं कर पाया कि पत्नी के पास कमाई का साधन या कोई संपत्ति है". कोर्ट ने इस मामले में पति की याचिका को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है. जिसके मुताबिक पति को गुजारा भत्ते के साथ-साथ मुकदमे का खर्च भी पत्नी को देना होगा.