चंडीगढ़ : पंजाब में विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियों के द्वारा प्रत्याशियों की घोषणा किए जाने के बाद चुनावी माहौल गर्म हो गया है. इस बार पंजाब की सियासत में बीजेपी अपने दो नए सहयोगियों पंजाब लोक कांग्रेस और अकाली दल (संयुक्त) के साथ चुनावी मैदान में उतर रही है. इस बारे में करीब छह दशक से ज्यादा का सियासी अनुभव रखने वाले अकाली दल (संयुक्त) के प्रमुख सुखदेव सिंह ढींढसा (Sukhdev Singh Dhindsa) से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. इसमें उन्होंने पंजाब की मौजूदा राजनीति के साथ ही गठबंधन को लेकर उनका क्या कहना है. वहीं प्रदेश को लेकर उन्होंने अपनी चिंताओं पर प्रकाश डाला.
सवाल - इस बार के पंजाब चुनाव में समीकरण जमीनी स्तर पर बिल्कुल बदले हुए हैं. नए सियासी समीकरण भी बने हुए हैं. कुछ नए प्लेयर भी मैदान में उतरे हैं. अपने लंबे सियासी अनुभव से आप किस तरह के सियासी हालात इस वक्त पंजाब के देखते हैं?
जवाब - इस बार पंजाब की सियासत बिल्कुल बदली हुई है, बदली ही नहीं बल्कि हर रोज बदल रही है. कोई नहीं सोच सकता था कि इस तरह के बदलाव होंगे. पहले एक साल किसानों की जिस तरीके से लड़ाई रही, उससे बहुत ज्यादा तल्खी थी. किसानों की एकता ने वह जंग जीत ली. उस आंदोलन को सभी राजनीतिक पार्टियों का समर्थन था. इतना नहीं देश से भी और विदेश से भी उस आंदोलन को समर्थन मिला था. लेकिन जब केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए तो उसके बाद स्थिति और बदल गई. आंदोलन में जो किसानों की एकजुटता थी वह भी अब नहीं रही. क्योंकि किसानों का एक धड़ा अब चुनाव मैदान में उतर गया है. वहीं कुछ चुनावों से दूर हैं, और उन्होंने कहा है कि वह इसका समर्थन नहीं करेंगे. इस वजह से एक और नई परिस्थिति पैदा हो गई. इसलिए अभी कुछ भी कहा नहीं जा सकता कि आने वाले दिनों में क्या होगा.
सवाल - क्या आपको लगता है बीजेपी के खिलाफ किसानों में जो रोष था, वह आपके गठबंधन को प्रभावित कर सकता है ?
जवाब - रोष तो अभी भी कुछ लोगों में है. क्योंकि एक साल हमारे बुजुर्ग, बेटे-बेटियां और नौजवान धूप में, गर्मी में, बारिश में ठंड में आंदोलनरत रहे. उसको देखते हुए कुछ तो रोष है, लेकिन एक तसल्ली भी है कि उन्होंने एकजुटता के साथ उस जंग को जीत लिया. हालांकि थोड़ा बहुत गुस्सा अभी भी है. इसलिए उनके गुस्से को दूर करने के लिए कुछ तरीके निकाले हैं और निकाले भी जा रहे हैं. हो सकता है बहुत जल्द उनका जो थोड़ा बहुत गुस्सा भी है वह भी दूर हो जाए.
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सवाल - इन हालातों में आपने बीजेपी के साथ गठबंधन किया. क्या आपको नहीं लगता इसका आपकी पार्टी को भी नुकसान हो सकता है?
जवाब - इसमें कोई दो राय नहीं कि नुकसान भी हो सकता है, लेकिन उसका फायदा भी हो सकता है. फायदा होने की वजह यह है कि पंजाब की स्थिति बहुत बुरी हो चुकी है. पंजाब के उद्योग बुरी हालत में हैं, पंजाब की खेती बाड़ी का भी बहुत बुरा हाल हो गया है. पूरा पंजाब कर्ज में डूबा हुआ है. किसान भी कर्जे में डूबे हुए हैं. उसको दूर करने के लिए हमने सोचा है कि इससे बाहर निकलने के लिए क्या किया जा सकता है. क्योंकि कुछ सिखों की मांगें भी लंबे समय से पेंडिंग हैं. इसके अलावा राज्य की और कुछ मांगे हैं, उनको कौन हल कर सकता है. इसलिए हम उनका इकट्ठा होकर समाधान कर सकते हैं और पंजाब को बचाने का प्रयास कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि उसके लिए यही बेहतर तरीका था कि हम सब इकट्ठा हो बेशक थोड़ी बहुत तल्खी भी हों, लेकिन पंजाब को बचाना है. वहीं पंजाब सीमांत प्रदेश भी है और प्रदेश की हालत भी काफी खराब है. ढींढसा ने कहा कि उसी को देखते हुए हम सब इकट्ठा हुए हैं, कोशिश करेंगे कि इस बार हम उसमें कामयाब भी हो जाएं.
सवाल - आप बीजेपी के साथ गठबंधन में 15 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. क्या आपको लगता है कि आपको और सीट मिलनी चाहिए थी?
जवाब - हम चाहते थे कि हमें तीन-चार सीटें और मिल जाएं, लेकिन नहीं मिलीं. हालांकि हमने सीटें वहीं मांगी थीं जिस पर हम जीत सकते थे. यह सब गठबंधन में होता रहता है. उसकी कई मजबूरियां भी होती हैं. लेकिन मैं यह मानता हूं कि वैसे ही सीटें मांग लेना यह भी दे दो, वह भी दे दो, वह भी अच्छा नहीं है. हमारा फैसला भी यही हुआ था कि जिन सीटों पर जो जीत सकता है वह उन सीटों पर चुनाव लड़े. जो हुआ वह हुआ. अभी भी हमारी एक-दो सीटों को लेकर बातचीत चल रही है. लेकिन हमने कोशिश की है कि हम उन्हीं पर लड़ें जिस पर हम जीत सकें.
सवाल - 2017 की तरह ही इस बार भी बेअदबी के मामले बढ़ने लग गए हैं. गुरुद्वारों के बाद अब मंदिर में भी बेअदबी होने लगी है.आपको लगता है कि इस बार जो राजनीतिक हालात बदले हैं उसके दबाव की वजह से ऐसा हो रहा है. ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाली शक्तियां कहीं इसके पीछे तो नहीं है?
जवाब - इस बार के चुनाव का एक बहुत बड़ा मुद्दा यह भी है कि कहीं ध्रुवीकरण ना हो जाए. हमने कोशिश की है कि हिंदू, सिख, मुस्लिम सभी इकट्ठा रहें. इन सभी बातों की परवाह न करते हुए हमें पंजाब को बचाना है. यह पहली बार नहीं है ऐसा हर चुनाव में होता है. जब चुनाव आते हैं तो कुछ शरारती लोग भी होते हैं, कुछ राजनीतिक भी. जब किसी को लगता है कि हालात बदलने हैं तो राजनीतिक तौर पर भी ऐसे मामले पेश आते हैं. कई बार सूबे की सरकारें भी करवाती हैं. कोई और भी करवा सकता है. इसलिए यह पहले से भी होता आया है और इस बार यह और ज्यादा खतरे की बात है.
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सवाल - इस बार के चुनावों में 5 बड़े प्लेयर चुनावी दंगल में हैं और जो चुनावी लड़ाई है वह भी इस बार बहुत नजदीकी है. लोगों को लगता है कि इस वजह से भी इस तरीके के मामले सामने आ रहे हैं. इसको लेकर क्या कहेंगे आप?
जवाब - ऐसा लग रहा है कि एक पार्टी की सरकार प्रदेश में इस बार अभी तक बनती दिखाई नहीं दे रही है. ऐसे में हो सकता है कुछ पार्टियां सोच रही हों कि हालात खराब हो जाएं और वे उस में जीत जाएं. हालांकि उनका भ्रम है ऐसा होता नहीं है. लेकिन लोग फिर भी कोशिश करते हैं. मैं पंजाब के लोगों से अपील करूंगा की वह संयम बनाए रखें. जो लोग ऐसा कर रहे हैं उनको सजा भी मिलनी चाहिए. सूबे की सरकार से कहूंगा कि उनको पकड़ कर उनको सजा दे.
सवाल - सीएम चेहरे को लेकर इस बार लड़ाई देखने को मिल रही है. आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान को सीएम चेहरा बनाया है. वहीं कांग्रेस में सिद्धू और चन्नी के बीच लड़ाई चल रही है. क्या आप मानते हैं कि चुनाव लड़ने के लिए सीएम चेहरे का होना जरूरी है?
जवाब - मेरा मानना है कि गठबंधन में ऐसी बातें नहीं होती. हमने तो अभी इसको लेकर कोई चर्चा भी नहीं की है. वैसे भी जब विधायक चुनकर आते हैं तो वह अपना नेता चुनते हैं. इसलिए मैं समझता हूं कि इसकी जरूरत भी नहीं होती.
सवाल - आम आदमी पार्टी द्वारा भगवंत मान को सीएम चेहरा बनाने को लेकर क्या कहेंगे आप?
जवाब - इस बात के लिए तो मैं बधाई दूंगा कि भगवंत मान को उन्होंने मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया है. मैंने भी बधाई दी है. लोग कहते थे कि पंजाब के आदमी को आप मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाएगी. लेकिन जिस तरीके का आम आदमी पार्टी का प्रचार हो रहा है उसमें भगवंत मान का प्रचार नहीं हो रहा है. वह कहते हैं कि एक मौका दो केजरीवाल को. भगवंत मान सीएम चेहरा तो है लेकिन उसका कहीं नाम नहीं आ रहा है.
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सवाल - गठबंधन का घोषणा पत्र को लेकर अभी तक कितना काम हुआ है. ऐसी कौन सी बातें हैं जिनको लेकर आगे आप की पार्टी भी घोषणा पत्र में शामिल करना चाहेगी?
जवाब - सबसे पहले तो हमने कहा है कि लोगों से वही वादा करें जो पूरे हो सकते हैं. क्योंकि हमारी पार्टी का भी पक्का इरादा है कि जो घोषणा पत्र होते हैं उसको सरकारी अप्रूवल होनी चाहिए. अगर सरकार अपने घोषणापत्र को लागू ना कर पाए तो फिर उसको डिसक्वालीफाई भी किया जाना चाहिए. ताकि वह आगे से चुनाव ना लड़ सके. इसलिए हमने कहा है कि कोई भी ऐसा वादा ना किया जाए जिससे बाद में पछताना पड़े.
सवाल - सभी पार्टियां बड़े-बड़े वादे कर रही हैं सुप्रीम कोर्ट भी इस पर नोटिस ले चुका है, वहीं यह बात भी सभी को पता है कि पंजाब की माली हालत ऐसी नहीं है कि इस तरह के वादे पूरे किए जा सकें, उसको आप कैसे देखते हैं?
जवाब - मैं समझता हूं कि प्रदेश पर इतना लोन हो गया है कि उसकी किस्त देना भी मुश्किल हो जाएगा. सरकार चाहे फिर कोई भी बने. कोई यह तो बता नहीं रहा है कि वह जो वादे कर रहे हो उसके लिए वे पैसे कहां से लाएंगे. लेकिन वादे पर वादे किए जा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने जो इस तरह के वादों पर संज्ञान लिया है मैं चाहता हूं कि उनको एक फैसला भी लेना चाहिए. ऐसे वादे ना करो जो पूरे ना हो सके. इसलिए मैं चाहता हूं कि सुप्रीम कोर्ट कुछ ऐसा करें कि जो लोग ऐसे वादे करते हैं और पूरे नहीं कर पाते हैं ऐसा ना हो.
सवाल - पंजाब एक सीमांत प्रदेश है और बीएसएफ का दायरा बढ़ाने को लेकर बहुत राजनीति हुई. आप इतने सालों से राजनीति में हैं, आप पंजाब की सीमांत इलाकों के मुद्दों को कैसे देखते हैं?
जवाब - बॉर्डर स्टेट के नाते जो समस्याएं हैं उसी को देखते हुए हम बीजेपी के साथ हुए हैं. इसलिए हम सब इकट्ठा हुए हैं. बीजेपी भी यही चाहती है कि पंजाब में हालात खराब ना हों. हम भी उसी ख्याल के हैं. इसलिए हम सोचते हैं कि पंजाब को बचाने के लिए हम सब इकट्ठा हो. पंजाब को बचाने की कोशिश करनी चाहिए. वह मिलकर ही हो सकती है अकेले नहीं हो सकती.
सवाल - कैप्टन अमरिंदर सिंह भी इस बार बीजेपी के साथ गठबंधन में है यानी आपके साथ हैं. वे खुद भी एक राष्ट्रभक्त की पहचान रखते हैं. तो ऐसे में क्या आपको लगता है कि राष्ट्रीय मुद्दे भी पंजाब की सियासत में भूमिका निभाएंगे?
जवाब - जरूर राष्ट्रीय मुद्दे भी होने चाहिए. ऐसे में राष्ट्रीय मुद्दों का उठना भी जरूरी है. जैसा कि मैंने कहा कि राज्य की हालत तो बहुत खराब हैं. ऐसे में राष्ट्रीय मुद्दे भी होनी चाहिए. क्योंकि यह देश की बात है. पंजाब की राष्ट्रीय मुद्दों में भूमिका भी अहम रही है. वह चाहे फिर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर यहां के जवानों की लड़ाई लड़ने की बात हो या फिर सीमांत प्रदेश होने की बात हो. पंजाब का सभी में बहुत बड़ा रोल रहा है. इसलिए पंजाब को राष्ट्रीय मुद्दों पर भी आगे बढ़कर आना चाहिए. पंजाब के लोग सारे राज्यों में रहते हैं और उनका हर राज्य में कोई ना कोई रोल है. सारी दुनिया में पंजाबी बसते हैं. वहां पर भी उनका रोल है इसलिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दे भी पंजाब के चुनावों में आने चाहिए.
सवाल - ऐसे में आपका जो घोषणा पत्र बनेगा उसमें राष्ट्रीय मुद्दों के साथ किसानों को आप खास तौर पर किस तरीके से प्राथमिकता देना चाहेंगे?
जवाब - हमने कहा है कि जो पंजाब का छोटा किसान है जो मजदूर है उसका कर्जा माफ किया जाना चाहिए. कोई ना कोई ऐसा तरीका निकाला जाए जिससे उनको इस कर्जे से बाहर निकाला जाए. किसानी को बचाने के लिए और उद्योगों को बचाने के लिए हमने गृह मंत्री से भी बात की है. इसको लेकर हमने उनको ज्ञापन भी दिए हैं. इसके साथ ही सिखों की मांगों को लेकर भी हमने बात की है. उनका इन सब को लेकर पॉजिटिव रिस्पॉन्स आया है. अगर यह सब हो जाता है तो अच्छी बात है.
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सवाल - एक अनुभवी नेता होने के नाते आप सिद्धू और चन्नी की लड़ाई को कैसे देखते हैं. इसको लेकर आपकी क्या राय है?
जवाब - लड़ाई तो कुर्सी की है. लेकिन यह तो पार्टी तय करेगी. यह पार्टी की आपसी लड़ाई है. इनकी लड़ाई अभी खत्म नहीं होगी. जब तक यह फैसला नहीं होगा कि मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा. अगर यह ऐसे ही चलता रहा तो कांग्रेस में गुटबाजी और बढ़ेगी. अगर गुटबाजी होगी तो इसका कांग्रेस को नुकसान होगा. हालांकि मैं यह मानता हूं यह उनकी पार्टी का अपना मामला है और उस पर मेरा कोई टिप्पणी करना भी उचित नहीं होगा.
सवाल - जिस तरीके के बीते दिनों पीएम की सुरक्षा और अन्य मुद्दों को लेकर हालात बने हैं उसके बाद आपका गठबंधन धरातल पर अपने आप को किस तरह देखता है और खुद को कहां आंकता है?
सवाल - अभी तो हमारा गठबंधन शुरू ही हुआ है. लेकिन जिस तरीके से प्रधानमंत्री को रोका गया वह बहुत दुखद है. हमें भी और लोगों को भी यह उम्मीद थी कि वह पंजाब को कुछ देकर जाएंगे, लेकिन उनको रोका गया. उसकी भी जांच होनी चाहिए कि सरकार ने रुकवाया या फिर किसानों ने रोका. ऐसी क्या बात हुई थी. इस मामले की जांच के लिए केंद्र ने भी कमेटी बनाई है राज्य ने भी बनाई है लेकिन अभी उसका कोई फैसला नहीं आया है. लेकिन प्रधानमंत्री का काफिला रोकना बहुत ही दुखदाई है. वे देश के प्रधानमंत्री हैं उनको आना चाहिए था और लोगों को संबोधित करना चाहिए था. इसलिए मैं समझता हूं कि यह अच्छी बात नहीं हुई.
सवाल - अगर चुनावों के बाद ऐसे हालात बने कि आपके गठबंधन को शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी तो आप क्या करेंगे?
जवाब - यह बाद की बात है, और उस वक्त हम तीनों गठबंधन के सहयोगी मिलकर इसको लेकर चर्चा करेंगे कि किसके साथ सरकार बनाई जाए. लेकिन मैं यह मानता हूं कि जो आज की स्थिति है उसे देखकर लगता है कि किसी एक पार्टी को बहुमत मिल पाना मुश्किल है. ऐसे हालात में किसी को बहुमत नहीं मिलेगा. इन चीजों को लेकर तभी बात होगी, जब कौन कितनी सीटें जीता है यह पता चलेगा. तभी तय होगा, कौन किसके साथ जाता है और कौन किसको साथ लेता है। कौन किसके साथ मिलकर सरकार बनाता है. उसको लेकर आज अभी कुछ ज्यादा नहीं कहा जा सकता.