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दक्षिण भारत के फिल्म स्टार्स को फैन्स क्यों देते है 'भगवान' का दर्जा ? - एमजी रामाचंद्रन

कन्नड़ सिनेमा के सुपरस्टार पुनीत राजकुमार के निधन की खबर उनके फैंस के लिए किसी सदमा से कम नहीं रहा. उनके निधन की खबर सुनकर दो प्रशंसकों का हार्ट अटैक से निधन हो गया. एक ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी. उनके चाहने वालों की दीवानगी बताती है कि दक्षिण भारत में फिल्म सितारों की छवि किसी देवी-देवता सरीखे होती है. स्टार के पीछे जुनून की असली वजह क्या है, जिसके कारण लोग जान तक देने को उतारू हो जाते हैं. ऐसा उत्तर भारत में नहीं होता है. आइए एक विश्लेषण पढ़ते हैं.

साउथ एक्टर्स
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Published : Oct 30, 2021, 11:12 PM IST

Updated : Oct 31, 2021, 7:03 PM IST

हैदराबाद : सिनेमा के प्रति शुरुआती दौर से ही दर्शकों का खास लगाव रहा है. लोग कई फिल्मों और किरदारों में खुद की जिंदगी को अनुभव करते हैं. कुछ लोग किसी कलाकार को अपना आदर्श मानकर उसे फॉलो करने लगते हैं, तो कई कलाकारों के सुख और दुख में खुद को शामिल कर लेते हैं. अभिनय जगत के कलाकारों के प्रति ऐसी दीवानगी हिंदी और साउथ सिनेमा दोनों में ही देखने को मिलती हैं, लेकिन दीवानगी के मामले में दक्षिण भारतीय फैन्स का कोई जवाब नहीं. ऐसे में सवाल उठता है कि वो क्या अंतर है, जो दक्षिण भारत के सिनेमा कलाकारों को अलग दर्जा दिला देते हैं.

आर्यन खान और पुनीत राजकुमार

अक्टूबर में सिनेमा के क्षेत्र से दो चौंकाने वाली खबर सामने आईं. पहली बॉलीवुड के सुपरस्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान का ड्रग्स केस में गिरफ्तार होना और दूसरी अक्टूबर के अंत में कन्नड़ सुपरस्टार पुनीत राजकुमार का 46 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन. दोनों ने ही मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं लेकिन इमोशन के तराजू पर पलड़ा दक्षिण भारतीय फैन्स का ही भारी रहा. आर्यन की गिरफ्तारी पर कुछ लोगों का समर्थन शाहरुख खान को जरूर मिला और बॉलीवुड भी उनके साथ खड़ा नजर आया. लेकिन सोशल मीडिया से लेकर हर गली चौराहे पर जैसे रातों रात शाहरुख खान का स्टारडम का दर्जा चकनाचूर हो गया हो. कई लोग शाहरुख खान को कोसते दिखे.

वहीं दूसरी तरफ पुनीत राजकुमार के निधन पर सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक इमोशन का सैलाब उमड़ पड़ा. फैन्स की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे, इतना ही नहीं शनिवार शाम तक कन्नड़ सुपर स्टार की मौत की खबर सुनकर चार लोगों की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. कुछ लोगों के आत्महत्या की कोशिश की भी खबरें आई. वैसे ये पहली बार नहीं है जब दक्षिण भारतीय सिनेमा में किसी फिल्म स्टार के लिए ऐसा क्रेज दिखा हो. इससे पहले भी फैन्स के किस्से दुनिया जहान की सुर्खियां बटोर चुके हैं.

दक्षिण भारत में फिल्म स्टार का क्रेज

रजनीकांत की फिल्म रिलीज़ होने पर रात 3 बजे से टिकट के लिए लाइन लगाने और रजनीकांत के पोस्टर को दूध से नहलाने जैसी खबरें आपने सुनी होंगी. लेकिन दक्षिण भारत में ऐसा जुनून लगभग हर राज्य में हैं. कन्नड़, तेलगु, तमिल और मलयालम भाषा की फिल्म इंडस्ट्री के अपने-अपने दर्शक हैं. लेकिन अपने फिल्म स्टार्स के लिए कर्नाटक से केरल तक और तेलंगाना से तमिलनाडु तक क्रेज ऐसा ही है. दक्षिण भारत में अभी भी कई सिंगल स्क्रीन थियेटर पर फिल्में लगती हैं और दर्शकों की भीड़ भी उमड़ती है. फिल्म के दौरान दर्शकों का सीटी मारकर या ताली बजाकर स्क्रीन पर हीरो का स्वागत करना नई बात नहीं है. लेकिन ये निशानी है उस क्रेज की जो बॉलीवुड की फिल्मों और फिल्म स्टार्स को लेकर नहीं दिखता.

मुंबई से लेकर दिल्ली तक के पांच सितारा सिनेमा हॉल में गिने चुने फिल्म स्टार्स की फिल्मों पर ही सीटें भर पाती हैं. इसी तरह गिने चुने हीरो की एंट्री पर ही तालियां या सीटियां बजती हैं और रजनीकांत, प्रभाष या पृथ्वीराज सुकुमारन जैसे दक्षिण भारतीय स्टार्स के फैन्स की दीवानगी ना दिल्ली में मिलेगी ना बॉलीवुड की नगरी मुंबई में.

लेकिन ऐसा क्यों है ?

पुनीत राजकुमार के निधन के बाद उनके व्यक्तित्व का एक और पहलू सामने आ रहा है. सोशल मीडिया पर भी वो खूब छाया हुआ है. पुनीत सिर्फ रील लाइफ के नहीं बल्कि रियल लाइफ के भी हीरो थे. जो लोगों के दुख-दर्द को अपना समझते थे. वह कई अनाथालय चलाते थे. 25 अनाथालय, 45 मुक्त स्कूल, 16 वृद्धाश्रम, 19 गौशाला और तकरीबन 1800 बच्चों की शिक्षा का जिम्मा उन्होंने खुद उठाया था. यही कारण है कि वह फैंस की नजरों में भगवान जैसे ही थे. पुनीत के धर्मार्थ के काम के आंकड़े कम या ज्यादा हो सकते हैं लेकिन ये वो सबसे बड़ा पहलू है जो दक्षिण भारतीय स्टार्स को बॉलीवुड स्टार्स से बिल्कुल अलग खड़ा करता है. यहां हम पुनीत के कुछ और सामाजिक कार्यों का उल्लेख करना चाहेंगे.

पुनीत राजकुमार मैसूर के शक्ति धाम आश्रम के जरिए भी लोगों की मदद किया करते थे. इस आश्रम से उनकी मां जुड़ी रहीं हैं. पुनीत ने बेंगलुरु प्रीमियर फुटसाल टीम भी बनाया था. कोविड महामारी के दौरान अभिनेता ने मुख्य मंत्री राहत कोष में पांच मिलियन डॉलर का आर्थिक योगदान किया था. 2019 में उत्तरी कर्नाटक में जब बाढ़ आई थी, तब भी राजकुमार ने आर्थिक मदद की थी. लड़कियों की शिक्षा को लेकर वह हमेशा आगे रहते थे. उन्हें बढ़ावा देने के लिए जो भी अभियान चलाया गया, हर अभियान का वह हिस्सा बने. हर साल वह हजारों छात्रों की फीस चुकाते थे. कन्नड़ भाषा में चलने वाले स्कूलों से उनका विशेष लगाव था. पुनीत और उनकी पत्नी राधिका राज्य शिक्षा विभाग के ब्रैंड अंबेसडर थे. राज्य के स्कूलों में ड्रॉप आउट रेट कम हो, इसके लिए वह हमेशा नया-नया अभियान चलाते थे. पुनीत के पिता के नाम पर एक ट्रस्ट है. इसका नाम डॉ राजकुमार ट्रस्ट है. इसके जरिए अनाथालय और अनाथों की आर्थिक मदद की जाती रही है.

यहां हम आपको दक्षिण भारत के सुपर स्टार रजनीकांत का उदाहरण रखना चाहेंगे. आप इससे समझिए आखिर यहां पर फिल्म स्टार के पीछे लोग क्यों क्रेजी होती हैं. क्यों उनके जाने पर अपनी जान देने तक उतारू हो जाते हैं. आपको बता दें कि रजनीकांत ने 'रजनी मक्कल मंड्रम' नाम से एक संस्था बनाई है. आर्थिक रूप से कमजोर कोई भी व्यक्ति इस संस्था से मदद प्राप्त कर सकता है. मेडिकल हेल्प के मामले में संस्था का काम बहुत ही सराहनीय रहा है. जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है, तो मदद करने वालों में पहला नाम रजनीकांत का ही होता है. 2014-15 में चेन्नई में बारिश की वजह से जब बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी, तब उन्होंने तुरंत लोगों की मदद करने की घोषणा कर दी थी. 10 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद की. सीएम रिलीफ फंड में योगदान दिया. उस साल उन्होंने अपना जन्मदिन नहीं मनाने का फैसला किया. कई फिल्म निर्माताओं के पैसे उन्होंने लौटा दिए. फंड 'श्रीराघवेंद्र पब्लिक चैरिटेब ट्रस्ट' की ओर से दिया गया था. ट्रस्ट रजनीकांत का है. ऐसा कहा जाता है कि रजनीकांत जितना पैसा कमाते हैं, उसका आधा वह चैरिटी के रूप में वापस कर देते हैं. 2014 में 'हुदहुद' चक्रवात आया था, तब रजनीकांत ने आंध्र प्रदेश सीएम रिलीफ फंड में सहयोग किया था. 2002 में जब महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पलारू और कावेरी नदियों को जोड़ने की बात चली थी, तब रजनीकांत ने सबसे पहले एक करोड़ दान देने का ऐलान कर दिया था.

अब अंदाजा लगाइए अगर रजनीकांत इस तरह से सामाजिक कार्य करेंगे, तो लोगों की उम्मीदें और उनके लिए शुभकामनाएं, दोनों कभी कम नहीं होंगी. तेलगु अभिनेता महेश बाबू का भी उदाहरण है. मोहन बाबू ने श्रीविद्यानिकेतन एजुकेशनल ट्रस्ट की स्थापना की है. इसके तहत आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस ट्रस्ट की ओर से स्कूल, कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज और मेडिकल कॉलेज चलाए जाते हैं. आंध्र प्रदेश के रॉयलसीमा इलाके में गंभीर सूखे की स्थिति से निपटने के लिए अभिनेता ने वहां पर कई कार्यक्रम चला रखे हैं. जब वह राज्यसभा के सदस्य बने थे, तो उन्होंने अपने क्षेत्र की समस्याओं को जोर-शोर से उठाया था. 1995 में टीडीपी ने उन्हें राज्यसभा भेजा था. तब उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान चित्तूर जिले के लिए बहुत काम किए थे. वहां की सड़कें बनवाईं. स्वच्छ पानी का इंतजाम करवाया. उन्होंने वन संरक्षण समिति का गठन किया. यानी आप कह सकते हैं कि लोगों से जुड़े रहे.

चिरंजीवी ने 1998 में चिरंजीवी चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की थी. इसके तहत ब्लड और चक्षु दान केंद्र है. तब से लेकर आज तक इस संस्था से हजारों लोगों ने फायदा उठाया है. लाखों लोगों ने इस संस्था के जरिए आंख दान करने का संकल्प ले रखा है. चिरंजीवी ने मई 2021 में ऑक्सीजन बैंक और एंबुलेंस सेवा की भी शुरुआत की है.

केजीएफ जैसी सुपर-डुपर हिट फिल्म देने वाले कन्नड़ अभिनेता यश रॉकी ने यशो मार्ग फाउंडेशन की स्थापना की है. इसमें उनकी पत्नी राधिका पंडित भी भागीदार हैं. वह भी अभिनेत्री हैं. इस संस्था के जरिए वह लोगों की मदद करते हैं. कर्नाटक के कोप्पल जिले में पानी की गंभीर समस्या से निपटने के लिए उन्होंने वहां पर चार करोड़ रुपये का योगदान किया. वहां की झीलों को साफ करवाया. उसके बाद आसपास के लोगों को साफ पानी मिलना शुरू हुआ.

तमिल सिनेमा के सबसे बड़े चेहरे एमजीआर, जो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी बने. उन्होंने एआईएडीएमके पार्टी की स्थापना की थी. जयललिता उनकी राजनीतिक वारिस बनीं थीं. राजनीति में कदम रखने से पहले एमजीआर ने राज्य में अलग-अलग मुद्दों पर जनता का खूब साथ दिया था. भारत-चीन के युद्ध के समय उन्होंने खुद ब्लड डोनेट किया था. थाई नाम से मैगजीन निकाली. अन्ना नाम से अखबार निकाला. मूकांबिका मंदिर में आधा किलो सोना दान किया.

तेलगु अभिनेता एनटीआर जूनियर. वह तेलगु सुपर स्टार एनटीरामा राव के बेटे हैं. वह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे. एनटीआर जूनियर की 2013 में एक फिल्म आई थी बादशाह. इससे जुड़े एक कार्यक्रम में एक फैन की भगदड़ में मौत हो गई थी. एनटीआर जू. ने तुरंत उनके परिवार को पांच लाख रू. की आर्थिक मदद की. उन्होंने परिवार की सारी जिम्मेदारी भी उठाने का भरोसा दिया. आंध्र प्रदेश में 2014 में चक्रवात की वजह से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई थी. तब उन्होंने मुख्य मंत्री रिलीफ फंड में 20 लाख रु का योगदान किया.

इसी तरह से विक्रम, जूनियर एनटीआर शिवराजकुमार, प्रभाष, अजीत कुमार, सुदीप किच्छा, सूर्या, मोहनलाल, कमल हसन, अल्लू अर्जुन, पवन कल्याण, थलपति विजय, नागार्जुन, ममूटी, राम चरण तेजा आदि ये फेहरिस्त और भी लंबी है. तमिल, तेलुगु, कन्नड़ मलायलम सिनेमा के ये वो सुपरस्टार्स हैं जो किसी ना किसी तरह से समाज को बेहतर बनाने में अपनी भूमिका निभाते हैं कोई चैरिटेबल ट्रस्ट बनाकर तो कोई दान देकर और कोई अस्पताल, स्कूल आदि खोलकर समाज के प्रति अपनी भूमिका निभा रहा है. यही वजह है कि वो सिर्फ फैन्स की आंखों नहीं बल्कि दिल में उतरते हैं और उनकी यही छवि उन्हें लोगों के बीच हीरो नहीं भगवान तक का दर्जा दिलाती है.

रील और रियल लाइफ एक जैसी

दरअसल, दक्षिण भारत के सिनेमा प्रेमी अपने सुपरस्टार्स को पर्दे पर जिस हीरो की भूमिका निभाते हुए देखते हैं, तो उनके समाजसेवा के कार्य की उस छवि को रील लाइफ में भी बनाए रखते हैं. लेकिन बॉलीवुड स्टार्स को लेकर ऐसा देखने को नहीं मिलता. रील और रियल लाइफ में उनमें जमीन आसमान का अंतर है.

दरअसल सिनेमा की स्क्रीन पर जो हीरो नजर आता है उसकी छवि एक वक्त के बाद मन से मिटती जाती है. कुछ लोग उसे सिर्फ एक फिल्म का किरदार मानकर भुला देते हैं और ऐसा ज्यादातर बॉलीवुड एक्टर्स के साथ होता है. दक्षिण भारत में फैन्स अपने हीरो को इसीलिये इतना ऊंचा दर्जा देते हैं क्योंकि उनके हीरो की छवि सिर्फ एक किरदार में नहीं बंधी हुई, जो 3 घंटे की फिल्म में है. वो असल जिंदगी में भी अपने सामाजिक कार्यों की बदौलत समाज के बीच एक नायक की तरह ही रहता है.

कोरोना काल में सोनू सूद का प्रवासियों को अपने घर पहुंचाने और उनतक खाना पहुंचाने जैसे कई काम किए गए. जिसने उनको भी कई लोगों के दिलों में भगवान जैसा दर्जा दिलाया. नाना पाटेकर भी महाराष्ट्र के कई पिछड़े गांवों में पानी पहुंचाने से लेकर किसानों की मदद के लिए हाथ बढ़ाते रहे हैं. लेकिन बहुत सोचने के बाद ही बॉलीवुड के कुछ नाम याद आएंगे जो समाजसेवा जैसी चीज करते हैं लेकिन दक्षिण भारत में लगभग हर कलाकार समाजसेवा को जैसे अपना कर्तव्य समझता है.

राजनीति के भी नायक

फिल्मी हीरो का चुनाव लड़ना, जीतना, मंत्री बनना कोई नई या बड़ी बात नहीं है. बंगाल की फिल्म इंडस्ट्री से लेकर मुंबई और दक्षिण भारत की फिल्म इंडस्ट्री तक ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं. लेकिन हिंदी फिल्मों के कलाकार राजनीति में उस तरह से एक्टिव नहीं दिखते जैसा कि दक्षिण के सुपस्टार्स होते हैं. बॉलीवुड से लेकर बंगाल और असम तक के फिल्म स्टार्स राजनीतिक दलों का दामन थामते हैं. सांसद, मंत्री बनकर एक धारा के साथ चलते हैं लेकिन वो जनता की नजर में अपनी फिल्मी छवि से कभी भी बाहर नहीं आ पाते. ऐसे कई उदाहरण आज की राजनीति में भी हैं. लेकिन दक्षिण भारत में ऐसे स्टार्स की लंबी फेहरिस्त है जो सियासत का परचम जन सरोकार के लिए उठाते हैं और जो जनता उनकी फैन और भक्त होती है, उनकी ही मदद से वो सियासत के नायक भी बन जाते है. लेकिन दक्षिण भारत में स्टार्स धारा के विपरीत बहते हैं, यहां कई ऐसे स्टार्स है जिन्होंने अपनी पार्टी बनाकर सियासी रण में कूदे हैं और एक नई लकीर खींचने का माद्दा रखते हैं.

तेलुगू सुपरस्टार चिरंजीवी से लेकर पवन कल्याण और तमिल सुपरस्टार कमल हसन तक अपनी सियासी पार्टी बना चुके हैं. इससे पहले एमजीआर और जयललिता फिल्मी पर्दे से होकर सियासी रण में उतरे और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री तक बने, दोनों ने अपने दल की कमान संभाले रखी. एनटीआर समेत दक्षिण भारत में ऐसे तमाम उदाहरण है. रजनीकांत के सियासत में उतरने की चर्चा थी लेकिन उन्होंने सियासत में आने का फैसला बदल दिया है. दरअसल पर्दे पर हीरो से समाज का हीरो बनने के बाद सियासत का हीरो बनने तक की कहानी के केंद्र में जनता ही सर्वोपरि होती है. फिल्मी पर्दे पर एक किरदार से वो लोगों के दिलों में उतरता है और सामाजिक कार्यों से उस किरदार को सच कर देता है और जब बात सियासत की आती है तो यहां भी वो जन सरोकार को सर्वोपरि बताकर ही राजनीति के मैदान में पैर रखता है.

ये भी पढे़ं : कन्नड़ अभिनेता पुनीत राजकुमार का रविवार को होगा अंतिम संस्कार

हैदराबाद : सिनेमा के प्रति शुरुआती दौर से ही दर्शकों का खास लगाव रहा है. लोग कई फिल्मों और किरदारों में खुद की जिंदगी को अनुभव करते हैं. कुछ लोग किसी कलाकार को अपना आदर्श मानकर उसे फॉलो करने लगते हैं, तो कई कलाकारों के सुख और दुख में खुद को शामिल कर लेते हैं. अभिनय जगत के कलाकारों के प्रति ऐसी दीवानगी हिंदी और साउथ सिनेमा दोनों में ही देखने को मिलती हैं, लेकिन दीवानगी के मामले में दक्षिण भारतीय फैन्स का कोई जवाब नहीं. ऐसे में सवाल उठता है कि वो क्या अंतर है, जो दक्षिण भारत के सिनेमा कलाकारों को अलग दर्जा दिला देते हैं.

आर्यन खान और पुनीत राजकुमार

अक्टूबर में सिनेमा के क्षेत्र से दो चौंकाने वाली खबर सामने आईं. पहली बॉलीवुड के सुपरस्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान का ड्रग्स केस में गिरफ्तार होना और दूसरी अक्टूबर के अंत में कन्नड़ सुपरस्टार पुनीत राजकुमार का 46 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन. दोनों ने ही मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं लेकिन इमोशन के तराजू पर पलड़ा दक्षिण भारतीय फैन्स का ही भारी रहा. आर्यन की गिरफ्तारी पर कुछ लोगों का समर्थन शाहरुख खान को जरूर मिला और बॉलीवुड भी उनके साथ खड़ा नजर आया. लेकिन सोशल मीडिया से लेकर हर गली चौराहे पर जैसे रातों रात शाहरुख खान का स्टारडम का दर्जा चकनाचूर हो गया हो. कई लोग शाहरुख खान को कोसते दिखे.

वहीं दूसरी तरफ पुनीत राजकुमार के निधन पर सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक इमोशन का सैलाब उमड़ पड़ा. फैन्स की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे, इतना ही नहीं शनिवार शाम तक कन्नड़ सुपर स्टार की मौत की खबर सुनकर चार लोगों की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. कुछ लोगों के आत्महत्या की कोशिश की भी खबरें आई. वैसे ये पहली बार नहीं है जब दक्षिण भारतीय सिनेमा में किसी फिल्म स्टार के लिए ऐसा क्रेज दिखा हो. इससे पहले भी फैन्स के किस्से दुनिया जहान की सुर्खियां बटोर चुके हैं.

दक्षिण भारत में फिल्म स्टार का क्रेज

रजनीकांत की फिल्म रिलीज़ होने पर रात 3 बजे से टिकट के लिए लाइन लगाने और रजनीकांत के पोस्टर को दूध से नहलाने जैसी खबरें आपने सुनी होंगी. लेकिन दक्षिण भारत में ऐसा जुनून लगभग हर राज्य में हैं. कन्नड़, तेलगु, तमिल और मलयालम भाषा की फिल्म इंडस्ट्री के अपने-अपने दर्शक हैं. लेकिन अपने फिल्म स्टार्स के लिए कर्नाटक से केरल तक और तेलंगाना से तमिलनाडु तक क्रेज ऐसा ही है. दक्षिण भारत में अभी भी कई सिंगल स्क्रीन थियेटर पर फिल्में लगती हैं और दर्शकों की भीड़ भी उमड़ती है. फिल्म के दौरान दर्शकों का सीटी मारकर या ताली बजाकर स्क्रीन पर हीरो का स्वागत करना नई बात नहीं है. लेकिन ये निशानी है उस क्रेज की जो बॉलीवुड की फिल्मों और फिल्म स्टार्स को लेकर नहीं दिखता.

मुंबई से लेकर दिल्ली तक के पांच सितारा सिनेमा हॉल में गिने चुने फिल्म स्टार्स की फिल्मों पर ही सीटें भर पाती हैं. इसी तरह गिने चुने हीरो की एंट्री पर ही तालियां या सीटियां बजती हैं और रजनीकांत, प्रभाष या पृथ्वीराज सुकुमारन जैसे दक्षिण भारतीय स्टार्स के फैन्स की दीवानगी ना दिल्ली में मिलेगी ना बॉलीवुड की नगरी मुंबई में.

लेकिन ऐसा क्यों है ?

पुनीत राजकुमार के निधन के बाद उनके व्यक्तित्व का एक और पहलू सामने आ रहा है. सोशल मीडिया पर भी वो खूब छाया हुआ है. पुनीत सिर्फ रील लाइफ के नहीं बल्कि रियल लाइफ के भी हीरो थे. जो लोगों के दुख-दर्द को अपना समझते थे. वह कई अनाथालय चलाते थे. 25 अनाथालय, 45 मुक्त स्कूल, 16 वृद्धाश्रम, 19 गौशाला और तकरीबन 1800 बच्चों की शिक्षा का जिम्मा उन्होंने खुद उठाया था. यही कारण है कि वह फैंस की नजरों में भगवान जैसे ही थे. पुनीत के धर्मार्थ के काम के आंकड़े कम या ज्यादा हो सकते हैं लेकिन ये वो सबसे बड़ा पहलू है जो दक्षिण भारतीय स्टार्स को बॉलीवुड स्टार्स से बिल्कुल अलग खड़ा करता है. यहां हम पुनीत के कुछ और सामाजिक कार्यों का उल्लेख करना चाहेंगे.

पुनीत राजकुमार मैसूर के शक्ति धाम आश्रम के जरिए भी लोगों की मदद किया करते थे. इस आश्रम से उनकी मां जुड़ी रहीं हैं. पुनीत ने बेंगलुरु प्रीमियर फुटसाल टीम भी बनाया था. कोविड महामारी के दौरान अभिनेता ने मुख्य मंत्री राहत कोष में पांच मिलियन डॉलर का आर्थिक योगदान किया था. 2019 में उत्तरी कर्नाटक में जब बाढ़ आई थी, तब भी राजकुमार ने आर्थिक मदद की थी. लड़कियों की शिक्षा को लेकर वह हमेशा आगे रहते थे. उन्हें बढ़ावा देने के लिए जो भी अभियान चलाया गया, हर अभियान का वह हिस्सा बने. हर साल वह हजारों छात्रों की फीस चुकाते थे. कन्नड़ भाषा में चलने वाले स्कूलों से उनका विशेष लगाव था. पुनीत और उनकी पत्नी राधिका राज्य शिक्षा विभाग के ब्रैंड अंबेसडर थे. राज्य के स्कूलों में ड्रॉप आउट रेट कम हो, इसके लिए वह हमेशा नया-नया अभियान चलाते थे. पुनीत के पिता के नाम पर एक ट्रस्ट है. इसका नाम डॉ राजकुमार ट्रस्ट है. इसके जरिए अनाथालय और अनाथों की आर्थिक मदद की जाती रही है.

यहां हम आपको दक्षिण भारत के सुपर स्टार रजनीकांत का उदाहरण रखना चाहेंगे. आप इससे समझिए आखिर यहां पर फिल्म स्टार के पीछे लोग क्यों क्रेजी होती हैं. क्यों उनके जाने पर अपनी जान देने तक उतारू हो जाते हैं. आपको बता दें कि रजनीकांत ने 'रजनी मक्कल मंड्रम' नाम से एक संस्था बनाई है. आर्थिक रूप से कमजोर कोई भी व्यक्ति इस संस्था से मदद प्राप्त कर सकता है. मेडिकल हेल्प के मामले में संस्था का काम बहुत ही सराहनीय रहा है. जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है, तो मदद करने वालों में पहला नाम रजनीकांत का ही होता है. 2014-15 में चेन्नई में बारिश की वजह से जब बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी, तब उन्होंने तुरंत लोगों की मदद करने की घोषणा कर दी थी. 10 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद की. सीएम रिलीफ फंड में योगदान दिया. उस साल उन्होंने अपना जन्मदिन नहीं मनाने का फैसला किया. कई फिल्म निर्माताओं के पैसे उन्होंने लौटा दिए. फंड 'श्रीराघवेंद्र पब्लिक चैरिटेब ट्रस्ट' की ओर से दिया गया था. ट्रस्ट रजनीकांत का है. ऐसा कहा जाता है कि रजनीकांत जितना पैसा कमाते हैं, उसका आधा वह चैरिटी के रूप में वापस कर देते हैं. 2014 में 'हुदहुद' चक्रवात आया था, तब रजनीकांत ने आंध्र प्रदेश सीएम रिलीफ फंड में सहयोग किया था. 2002 में जब महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पलारू और कावेरी नदियों को जोड़ने की बात चली थी, तब रजनीकांत ने सबसे पहले एक करोड़ दान देने का ऐलान कर दिया था.

अब अंदाजा लगाइए अगर रजनीकांत इस तरह से सामाजिक कार्य करेंगे, तो लोगों की उम्मीदें और उनके लिए शुभकामनाएं, दोनों कभी कम नहीं होंगी. तेलगु अभिनेता महेश बाबू का भी उदाहरण है. मोहन बाबू ने श्रीविद्यानिकेतन एजुकेशनल ट्रस्ट की स्थापना की है. इसके तहत आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस ट्रस्ट की ओर से स्कूल, कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज और मेडिकल कॉलेज चलाए जाते हैं. आंध्र प्रदेश के रॉयलसीमा इलाके में गंभीर सूखे की स्थिति से निपटने के लिए अभिनेता ने वहां पर कई कार्यक्रम चला रखे हैं. जब वह राज्यसभा के सदस्य बने थे, तो उन्होंने अपने क्षेत्र की समस्याओं को जोर-शोर से उठाया था. 1995 में टीडीपी ने उन्हें राज्यसभा भेजा था. तब उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान चित्तूर जिले के लिए बहुत काम किए थे. वहां की सड़कें बनवाईं. स्वच्छ पानी का इंतजाम करवाया. उन्होंने वन संरक्षण समिति का गठन किया. यानी आप कह सकते हैं कि लोगों से जुड़े रहे.

चिरंजीवी ने 1998 में चिरंजीवी चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की थी. इसके तहत ब्लड और चक्षु दान केंद्र है. तब से लेकर आज तक इस संस्था से हजारों लोगों ने फायदा उठाया है. लाखों लोगों ने इस संस्था के जरिए आंख दान करने का संकल्प ले रखा है. चिरंजीवी ने मई 2021 में ऑक्सीजन बैंक और एंबुलेंस सेवा की भी शुरुआत की है.

केजीएफ जैसी सुपर-डुपर हिट फिल्म देने वाले कन्नड़ अभिनेता यश रॉकी ने यशो मार्ग फाउंडेशन की स्थापना की है. इसमें उनकी पत्नी राधिका पंडित भी भागीदार हैं. वह भी अभिनेत्री हैं. इस संस्था के जरिए वह लोगों की मदद करते हैं. कर्नाटक के कोप्पल जिले में पानी की गंभीर समस्या से निपटने के लिए उन्होंने वहां पर चार करोड़ रुपये का योगदान किया. वहां की झीलों को साफ करवाया. उसके बाद आसपास के लोगों को साफ पानी मिलना शुरू हुआ.

तमिल सिनेमा के सबसे बड़े चेहरे एमजीआर, जो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी बने. उन्होंने एआईएडीएमके पार्टी की स्थापना की थी. जयललिता उनकी राजनीतिक वारिस बनीं थीं. राजनीति में कदम रखने से पहले एमजीआर ने राज्य में अलग-अलग मुद्दों पर जनता का खूब साथ दिया था. भारत-चीन के युद्ध के समय उन्होंने खुद ब्लड डोनेट किया था. थाई नाम से मैगजीन निकाली. अन्ना नाम से अखबार निकाला. मूकांबिका मंदिर में आधा किलो सोना दान किया.

तेलगु अभिनेता एनटीआर जूनियर. वह तेलगु सुपर स्टार एनटीरामा राव के बेटे हैं. वह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे. एनटीआर जूनियर की 2013 में एक फिल्म आई थी बादशाह. इससे जुड़े एक कार्यक्रम में एक फैन की भगदड़ में मौत हो गई थी. एनटीआर जू. ने तुरंत उनके परिवार को पांच लाख रू. की आर्थिक मदद की. उन्होंने परिवार की सारी जिम्मेदारी भी उठाने का भरोसा दिया. आंध्र प्रदेश में 2014 में चक्रवात की वजह से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई थी. तब उन्होंने मुख्य मंत्री रिलीफ फंड में 20 लाख रु का योगदान किया.

इसी तरह से विक्रम, जूनियर एनटीआर शिवराजकुमार, प्रभाष, अजीत कुमार, सुदीप किच्छा, सूर्या, मोहनलाल, कमल हसन, अल्लू अर्जुन, पवन कल्याण, थलपति विजय, नागार्जुन, ममूटी, राम चरण तेजा आदि ये फेहरिस्त और भी लंबी है. तमिल, तेलुगु, कन्नड़ मलायलम सिनेमा के ये वो सुपरस्टार्स हैं जो किसी ना किसी तरह से समाज को बेहतर बनाने में अपनी भूमिका निभाते हैं कोई चैरिटेबल ट्रस्ट बनाकर तो कोई दान देकर और कोई अस्पताल, स्कूल आदि खोलकर समाज के प्रति अपनी भूमिका निभा रहा है. यही वजह है कि वो सिर्फ फैन्स की आंखों नहीं बल्कि दिल में उतरते हैं और उनकी यही छवि उन्हें लोगों के बीच हीरो नहीं भगवान तक का दर्जा दिलाती है.

रील और रियल लाइफ एक जैसी

दरअसल, दक्षिण भारत के सिनेमा प्रेमी अपने सुपरस्टार्स को पर्दे पर जिस हीरो की भूमिका निभाते हुए देखते हैं, तो उनके समाजसेवा के कार्य की उस छवि को रील लाइफ में भी बनाए रखते हैं. लेकिन बॉलीवुड स्टार्स को लेकर ऐसा देखने को नहीं मिलता. रील और रियल लाइफ में उनमें जमीन आसमान का अंतर है.

दरअसल सिनेमा की स्क्रीन पर जो हीरो नजर आता है उसकी छवि एक वक्त के बाद मन से मिटती जाती है. कुछ लोग उसे सिर्फ एक फिल्म का किरदार मानकर भुला देते हैं और ऐसा ज्यादातर बॉलीवुड एक्टर्स के साथ होता है. दक्षिण भारत में फैन्स अपने हीरो को इसीलिये इतना ऊंचा दर्जा देते हैं क्योंकि उनके हीरो की छवि सिर्फ एक किरदार में नहीं बंधी हुई, जो 3 घंटे की फिल्म में है. वो असल जिंदगी में भी अपने सामाजिक कार्यों की बदौलत समाज के बीच एक नायक की तरह ही रहता है.

कोरोना काल में सोनू सूद का प्रवासियों को अपने घर पहुंचाने और उनतक खाना पहुंचाने जैसे कई काम किए गए. जिसने उनको भी कई लोगों के दिलों में भगवान जैसा दर्जा दिलाया. नाना पाटेकर भी महाराष्ट्र के कई पिछड़े गांवों में पानी पहुंचाने से लेकर किसानों की मदद के लिए हाथ बढ़ाते रहे हैं. लेकिन बहुत सोचने के बाद ही बॉलीवुड के कुछ नाम याद आएंगे जो समाजसेवा जैसी चीज करते हैं लेकिन दक्षिण भारत में लगभग हर कलाकार समाजसेवा को जैसे अपना कर्तव्य समझता है.

राजनीति के भी नायक

फिल्मी हीरो का चुनाव लड़ना, जीतना, मंत्री बनना कोई नई या बड़ी बात नहीं है. बंगाल की फिल्म इंडस्ट्री से लेकर मुंबई और दक्षिण भारत की फिल्म इंडस्ट्री तक ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं. लेकिन हिंदी फिल्मों के कलाकार राजनीति में उस तरह से एक्टिव नहीं दिखते जैसा कि दक्षिण के सुपस्टार्स होते हैं. बॉलीवुड से लेकर बंगाल और असम तक के फिल्म स्टार्स राजनीतिक दलों का दामन थामते हैं. सांसद, मंत्री बनकर एक धारा के साथ चलते हैं लेकिन वो जनता की नजर में अपनी फिल्मी छवि से कभी भी बाहर नहीं आ पाते. ऐसे कई उदाहरण आज की राजनीति में भी हैं. लेकिन दक्षिण भारत में ऐसे स्टार्स की लंबी फेहरिस्त है जो सियासत का परचम जन सरोकार के लिए उठाते हैं और जो जनता उनकी फैन और भक्त होती है, उनकी ही मदद से वो सियासत के नायक भी बन जाते है. लेकिन दक्षिण भारत में स्टार्स धारा के विपरीत बहते हैं, यहां कई ऐसे स्टार्स है जिन्होंने अपनी पार्टी बनाकर सियासी रण में कूदे हैं और एक नई लकीर खींचने का माद्दा रखते हैं.

तेलुगू सुपरस्टार चिरंजीवी से लेकर पवन कल्याण और तमिल सुपरस्टार कमल हसन तक अपनी सियासी पार्टी बना चुके हैं. इससे पहले एमजीआर और जयललिता फिल्मी पर्दे से होकर सियासी रण में उतरे और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री तक बने, दोनों ने अपने दल की कमान संभाले रखी. एनटीआर समेत दक्षिण भारत में ऐसे तमाम उदाहरण है. रजनीकांत के सियासत में उतरने की चर्चा थी लेकिन उन्होंने सियासत में आने का फैसला बदल दिया है. दरअसल पर्दे पर हीरो से समाज का हीरो बनने के बाद सियासत का हीरो बनने तक की कहानी के केंद्र में जनता ही सर्वोपरि होती है. फिल्मी पर्दे पर एक किरदार से वो लोगों के दिलों में उतरता है और सामाजिक कार्यों से उस किरदार को सच कर देता है और जब बात सियासत की आती है तो यहां भी वो जन सरोकार को सर्वोपरि बताकर ही राजनीति के मैदान में पैर रखता है.

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Last Updated : Oct 31, 2021, 7:03 PM IST
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