नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपील और सदन में दिए उनके व्यक्तव्यों के बावजूद तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसान मानने को तैयार नहीं हैं. दिल्ली के सिंघु बॉर्डर स्थित धरना स्थल पर ट्रैक्टर ट्रॉलियों और आंदोलनकारियों की संख्या में आंदोलन शुरू होने के लगभग 80 दिन बाद भी कोई कमी नहीं दिख रही है.
संसद में किसान आंदोलन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणियों से किसान प्रतिनिधि खासे रोष में भी दिख रहे हैं. वहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा है कि तीनों कृषि कानून कहीं से भी किसानों को बाध्य नहीं करते. ऐसे में इन कानूनों से कोई समस्या नहीं होनी चाहिए, लेकिन किसान नेता ऐसा नहीं मानते.
जय किसान आंदोलन के नेता गुरबख्श सिंह बरनाला कहते हैं कि उसी तरह जब प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां कृषि क्षेत्र में आकर किसानों के साथ कॉन्ट्रैक्ट करेंगी तो उनके साथ भी ऐसा ही होगा. शुरुआत में ये कंपनियां प्रलोभन देकर किसानों को अपने जाल में फांस लेंगी और उसके बाद उनका शोषण करेंगी.
किसान नेताओं ने यह भी आरोप लगाया है कि भाजपा के बाद अब कांग्रेस भी उनके आंदोलन को बदनाम करने की कवायद में जुट गई है. बरनाला कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह द्वारा संसद में स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव पर की गई टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे.
राकेश टिकैत द्वारा दो अक्टूबर तक आंदोलन जारी रखने के बयान पर किसान नेताओं ने कहा कि यदि किसानों की मांगें नहीं मानी गईं तो यह आंदोलन 2024 तक भी चल सकता है. जब आंदोलन शुरू हुआ था, तभी किसान कम से कम छह महीने की तैयारी के साथ आए थे और अब सरकार का रुख देखते हुए जत्थे बंदियों ने लंबे संघर्ष के लिए कमर कस ली है.
बता दें कि बुधवार को संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन के आगे के कार्यक्रम की भी घोषणा की जिसमें 18 फरवरी को देशभर में रेल रोको कार्यक्रम भी शामिल है.
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संयुक्त किसान मोर्चा ने गुरुवार को घोषणा की है कि 12 फरवरी से 23 फरवरी के बीच किसान नेता उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में कुल पांच किसान महापंचायतों का आयोजन भी करेंगे.