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जानें, पीएम मोदी के नौ साल ने उनके पसंदीदा कारोबार को कितनी दी उड़ान, कारीगरों को फ़ायदा या नुकसान - काष्ठ कलाकारों का मुनाफा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के 9 साल पूरे हो चुके हैं. बनारस में लकड़ी का कारोबार करने वाले काष्ठ कलाकारों का मुनाफा पहले की तुलना में 10 गुना ज्यादा हुआ है.

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Published : Jun 2, 2023, 7:47 PM IST

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वाराणसी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के 9 साल पूरे हो चुके हैं. 9 साल में सरकार ने बड़े बदलाव का दावा किया था. ऐसे में बनारस की पुश्तैनी और पीएम मोदी की पसंदीदा कला लकड़ी के कारोबार में कितना परिवर्तन आया है, यह जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने लकड़ी कारोबारी व उद्यम विभाग से इसका जायजा लिया. जहां 9 सालों में हुए बदलाव के आंकड़े देखे. 9 साल पहले जिस कला से महज 500 लोग जुड़े थे, उस कला में आज दो हजार से ज्यादा परिवार जुड़े हुए हैं.

कलाकारों का मुनाफा
कलाकारों का मुनाफा

पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में लकड़ी का कारोबार करने वाले काष्ठ कलाकारों का मुनाफा भी बढ़ा है. पहले की तुलना में 10 गुना ज्यादा इस उद्योग को लाभ हुआ है. खास बात यह है कि आज इससे जुड़ा हर कारीगर 500 प्रतिदिन के हिसाब से आसानी से कमा लेता है. आज लकड़ी के कारोबारियों को बनाए जा रहे खिलौने या अन्य वस्तुएं अपने देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भेजी जा रही हैं. इनको बकायदा जीआई टैग भी मिला हुआ है. अभी हाल ही में इन शिल्पकारों में नई संसद का म़ॉडल भी तैयार किया है.


बनारस का लकड़ी का खिलौना
बनारस का लकड़ी का खिलौना

2015 के बाद 2000 से अधिक लोग इस कला से जुड़े : इस बारे में पद्म श्री डॉ. रजनीकांत ने बताया कि 'बनारस का लकड़ी का खिलौना बहुत ही पुराना है. प्राचीन समय में कोई भी ऐसा घर नहीं था जहां पर बनारस के लकड़ी के खिलौने न हों. स्टेशन पर आने वाली ट्रेनों में दक्षिण भारत, उत्तर भारत, पूर्वी भारत के कहीं से भी लोग आते थे, बनारस के लकड़ी के खिलौनों को लेकर जाते थे. बनारस की बनी सिंदूरदानी वैवाहिक अवसरों पर भारत के हर राज्य में जाती थीं. अब वो परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो गई है. 2015 में जीआई टैग मिलने के बाद आज की तारीख में लगभग 2000 से अधिक लोग इस कला के अंदर वापस लौट आए हैं.'

वाराणसी में लकड़ी का कारोबार
वाराणसी में लकड़ी का कारोबार

वाराणसी की लकड़ी से बनी कलाकृतियों की बढ़ी है डिमांड : उन्होंने बताया कि 'आज वाराणसी के लकड़ी की कला की डिमांड बढ़ी है. राम दरबार का मॉडल, काशी विश्वनाथ धाम का मॉडल और आने वाले समय में नए संसद भवन का मॉडल यहां के शिल्पकार बनाते जाएंगे और ये कलाकृतियां बिकती जाएंगी. जो शिल्पकार पहले 80 रुपये, 100 रुपये पर काम करते थे आज वो किसी भी क्राफ्ट में 500 से 600 रुपये से नीचे कोई भी कलाकृति तैयार नहीं कर रहे हैं. आज वाराणसी साड़ियों का भी दौर लौट आया है. उन्होंने बताया कि वाराणसी के लकड़ी के बने उत्पादों की मांग आज देश से बाहर भी है.'

वाराणसी में लकड़ी का कारोबार
वाराणसी में लकड़ी का कारोबार




उत्पादों को बनाने और बिक्री बढ़ाने के लिए चलाई गईं योजनाएं : उद्यम विभाग के आयुक्त उमेश कुमार सिंह ने बताया कि 'आज की तारीख में प्रदेश सरकार की विभिन्न प्रकार की योजनाएं आई हैं. वे हैंडीक्राफ्ट के उत्थान के लिए मील का पत्थर साबित हुई हैं. इसमें प्रशिक्षण, तकनीकी उन्नयन, डिजाइन डेवलपमेंट था. इसके साथ ही नई किस्म की टूलकिट उपलब्ध कराने से संबंधित था. इसके साथ ही तैयार हुए सामानों को बाजार उपलब्ध कराने की विभिन्न योजनाएं लाई गईं. इन शिल्पियों के विशिष्ट प्रकार के उत्पाद हैं. उन्हें इस सरकार में प्रचार-प्रसार मिला है.'

लकड़ी का कारोबार
लकड़ी का कारोबार

बाजार और ग्राहक की डिमांड के अनुसार तैयार होते हैं प्रोडक्ट : उन्होंने बताया कि 'एक जनपद एक उत्पाद योजना में शामिल होने के बाद इन उत्पादों की ब्रांडिंग हुई. इन लोगों के पास काम की कोई कमी नहीं है. नए लोग भी इस काम से आकर्षित होकर इसमें आ रहे हैं. नए तरह के उत्पाद अब तैयार किए जा रहे हैं. पहले जो पारंपरिक उत्पाद थे उससे अलग ग्राहक और बाजार की डिमांड के अनुसार उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं. अब जो बड़े-बड़े व्यापारी हैं जो दिल्ली-मुंबई से निर्यात करते हैं, उन्होंने इन शिल्पियों से जुड़ने का काम किया है. इसके साथ ही लगातार उनके द्वारा उत्पाद की डिमांड की जा रही है.'





लकड़ी के कारोबार में हो रहा 25 से 30 करोड़ का व्यापार : लकड़ी खिलौना कारोबारी रामेश्वर सिंह ने बताया कि 'लगभग 80 प्रतिशत का सालाना फायदा हुआ है, जिसमें अब 25 से 30 करोड़ का व्यापार लकड़ी के कारोबार में हो रहे हैं. आज के समय में शिल्पकार जो पहले 80 से 100 रुपये में प्रोडक्ट तैयार करते थे, वे अब 500 से कम में कोई प्रोडक्ट नहीं बना रहे हैं. उनके उत्पादों की क्वालिटी भी बढ़ी है, वहीं लकड़ी शिल्पकारों ने बताया कि हम बहुत समय से इस कारोबार से जुड़े हुए हैं, लेकिन कमाई मेहनत की अपेक्षा बहुत कम होती थी. इस समय हमारे उत्पाद लोग खरीद रहे हैं और हमें इसके अच्छे दाम भी मिल जा रहे हैं.'

यह भी पढ़ें : यूपी की जेलों में शुरू होगी टेली मेडिसिन सुविधा, अपराधी और माफिया नहीं कर पाएंगे यह काम

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वाराणसी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के 9 साल पूरे हो चुके हैं. 9 साल में सरकार ने बड़े बदलाव का दावा किया था. ऐसे में बनारस की पुश्तैनी और पीएम मोदी की पसंदीदा कला लकड़ी के कारोबार में कितना परिवर्तन आया है, यह जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने लकड़ी कारोबारी व उद्यम विभाग से इसका जायजा लिया. जहां 9 सालों में हुए बदलाव के आंकड़े देखे. 9 साल पहले जिस कला से महज 500 लोग जुड़े थे, उस कला में आज दो हजार से ज्यादा परिवार जुड़े हुए हैं.

कलाकारों का मुनाफा
कलाकारों का मुनाफा

पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में लकड़ी का कारोबार करने वाले काष्ठ कलाकारों का मुनाफा भी बढ़ा है. पहले की तुलना में 10 गुना ज्यादा इस उद्योग को लाभ हुआ है. खास बात यह है कि आज इससे जुड़ा हर कारीगर 500 प्रतिदिन के हिसाब से आसानी से कमा लेता है. आज लकड़ी के कारोबारियों को बनाए जा रहे खिलौने या अन्य वस्तुएं अपने देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भेजी जा रही हैं. इनको बकायदा जीआई टैग भी मिला हुआ है. अभी हाल ही में इन शिल्पकारों में नई संसद का म़ॉडल भी तैयार किया है.


बनारस का लकड़ी का खिलौना
बनारस का लकड़ी का खिलौना

2015 के बाद 2000 से अधिक लोग इस कला से जुड़े : इस बारे में पद्म श्री डॉ. रजनीकांत ने बताया कि 'बनारस का लकड़ी का खिलौना बहुत ही पुराना है. प्राचीन समय में कोई भी ऐसा घर नहीं था जहां पर बनारस के लकड़ी के खिलौने न हों. स्टेशन पर आने वाली ट्रेनों में दक्षिण भारत, उत्तर भारत, पूर्वी भारत के कहीं से भी लोग आते थे, बनारस के लकड़ी के खिलौनों को लेकर जाते थे. बनारस की बनी सिंदूरदानी वैवाहिक अवसरों पर भारत के हर राज्य में जाती थीं. अब वो परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो गई है. 2015 में जीआई टैग मिलने के बाद आज की तारीख में लगभग 2000 से अधिक लोग इस कला के अंदर वापस लौट आए हैं.'

वाराणसी में लकड़ी का कारोबार
वाराणसी में लकड़ी का कारोबार

वाराणसी की लकड़ी से बनी कलाकृतियों की बढ़ी है डिमांड : उन्होंने बताया कि 'आज वाराणसी के लकड़ी की कला की डिमांड बढ़ी है. राम दरबार का मॉडल, काशी विश्वनाथ धाम का मॉडल और आने वाले समय में नए संसद भवन का मॉडल यहां के शिल्पकार बनाते जाएंगे और ये कलाकृतियां बिकती जाएंगी. जो शिल्पकार पहले 80 रुपये, 100 रुपये पर काम करते थे आज वो किसी भी क्राफ्ट में 500 से 600 रुपये से नीचे कोई भी कलाकृति तैयार नहीं कर रहे हैं. आज वाराणसी साड़ियों का भी दौर लौट आया है. उन्होंने बताया कि वाराणसी के लकड़ी के बने उत्पादों की मांग आज देश से बाहर भी है.'

वाराणसी में लकड़ी का कारोबार
वाराणसी में लकड़ी का कारोबार




उत्पादों को बनाने और बिक्री बढ़ाने के लिए चलाई गईं योजनाएं : उद्यम विभाग के आयुक्त उमेश कुमार सिंह ने बताया कि 'आज की तारीख में प्रदेश सरकार की विभिन्न प्रकार की योजनाएं आई हैं. वे हैंडीक्राफ्ट के उत्थान के लिए मील का पत्थर साबित हुई हैं. इसमें प्रशिक्षण, तकनीकी उन्नयन, डिजाइन डेवलपमेंट था. इसके साथ ही नई किस्म की टूलकिट उपलब्ध कराने से संबंधित था. इसके साथ ही तैयार हुए सामानों को बाजार उपलब्ध कराने की विभिन्न योजनाएं लाई गईं. इन शिल्पियों के विशिष्ट प्रकार के उत्पाद हैं. उन्हें इस सरकार में प्रचार-प्रसार मिला है.'

लकड़ी का कारोबार
लकड़ी का कारोबार

बाजार और ग्राहक की डिमांड के अनुसार तैयार होते हैं प्रोडक्ट : उन्होंने बताया कि 'एक जनपद एक उत्पाद योजना में शामिल होने के बाद इन उत्पादों की ब्रांडिंग हुई. इन लोगों के पास काम की कोई कमी नहीं है. नए लोग भी इस काम से आकर्षित होकर इसमें आ रहे हैं. नए तरह के उत्पाद अब तैयार किए जा रहे हैं. पहले जो पारंपरिक उत्पाद थे उससे अलग ग्राहक और बाजार की डिमांड के अनुसार उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं. अब जो बड़े-बड़े व्यापारी हैं जो दिल्ली-मुंबई से निर्यात करते हैं, उन्होंने इन शिल्पियों से जुड़ने का काम किया है. इसके साथ ही लगातार उनके द्वारा उत्पाद की डिमांड की जा रही है.'





लकड़ी के कारोबार में हो रहा 25 से 30 करोड़ का व्यापार : लकड़ी खिलौना कारोबारी रामेश्वर सिंह ने बताया कि 'लगभग 80 प्रतिशत का सालाना फायदा हुआ है, जिसमें अब 25 से 30 करोड़ का व्यापार लकड़ी के कारोबार में हो रहे हैं. आज के समय में शिल्पकार जो पहले 80 से 100 रुपये में प्रोडक्ट तैयार करते थे, वे अब 500 से कम में कोई प्रोडक्ट नहीं बना रहे हैं. उनके उत्पादों की क्वालिटी भी बढ़ी है, वहीं लकड़ी शिल्पकारों ने बताया कि हम बहुत समय से इस कारोबार से जुड़े हुए हैं, लेकिन कमाई मेहनत की अपेक्षा बहुत कम होती थी. इस समय हमारे उत्पाद लोग खरीद रहे हैं और हमें इसके अच्छे दाम भी मिल जा रहे हैं.'

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