चंडीगढ़ : कई आईपीएस अफसरों ने रिटायर होने या वीआरएस लेने के बाद पंजाब की राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई. लेकिन जनता की अदालत में कई को सफलता मिली तो कुछ निराश भी हुए. दूसरी तरफ राजनीतिक विश्लेषक प्रो. मनजीत सिंह का मानना है कि पुलिस अफसरों के सेवा के बाद राजनीति में आने के लिए कम से कम पांच साल का अंतर होना चाहिए.
पंजाब के पूर्व डीजीपी रहे पीएस गिल रिटायरमेंट के बाद पंजाब में हुए 2012 के विधानसभा चुनावों में अपनी किस्मत अजमा चुके हैं. उन्होंने शिरोमणि अकाली दल की तरफ से उन्होंने मोगा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था लेकिन वह हार गए थे. गिल पंजाब के साथ-साथ जम्मू कश्मीर में भी डीजीपी रह चुके हैं.
पूर्व डीएसपी सुखपाल सिंह खैरा तीन बार विधायक रहे
इनके अलावा मौजूदा पंजाब के विधायक सुखपाल सिंह खैरा जो इस वक्त आम आदमी पार्टी को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं उनके पिता सुखविंदर सिंह खैरा भी राजनीति में आने से पहले डीएसपी पद पर तैनात थे. इतना ही नहीं उनके पिता भी दो बार मंत्री भी रहे हैं और उन्होंने 1971 में उन्होंने डीएसपी का पद छोड़ कर चुनाव लड़ा था और करीब 3 बार विधायक भी रहे.
पूर्व एसपी परगट सिंह दो विधानसभा चुनाव जीते
इसी प्रकार पंजाब के मौजूदा विधायक एवं पूर्व हॉकी खिलाड़ी परगट सिंह भी पंजाब पुलिस में एसपी रह चुके हैं. उन्होंने 2012 पंजाब विधानसभा के चुनावों के समय वीआरएस लेकर शिरोमणि अकाली दल के टिकट पर चुनाव लड़ा था जीत हासिल की थी. इसके बाद उन्होंने 2017 विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी.
इस मामले पर कुंवर विजय प्रताप से जब टेलीफोन पर बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि वह इस पर कोई कमेंट नहीं करना चाहते. फिर भी उन्होंने कहा कि जब वह राजनीति में आए थे तो उन्होंने इसका कारण लोगों को जागरूक करना बताया था क्योंकि उनका मानना था कि राजनीति में काफी गिरावट आ चुकी है और जब लोग जागरूक होंगे तो राजनीति में रेवोलुशन आएगा. साथ ही उन्होंने प्रीमेच्योर रिटायरमेंट लेने का बड़ा कारण श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट पर इंसाफ ना मिलना बताया था. उनका कहना था कि करीब ढाई साल उन्होंने इस पर मेहनत की लेकिन श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर इंसाफ नहीं मिल पाया.
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वहीं पंजाब में नशे के विरुद्ध अभियान चलाने वाले पूर्व डीजीपी जेल शशिकांत हालांकि सीधे तौर पर किसी राजनीतिक पार्टी के साथ शामिल नहीं हुए और ना ही उन्होंने कोई चुनाव लड़ा लेकिन उनकी एनजीओ ने बहुजन समाज पार्टी में अपने विलय किया था.
पुलिस अधिकारी के राजनीति में आने के लिए एक कानून होना चाहिए : विश्लेषक
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक प्रो. मनजीत सिंह ने कहा कि जो पुलिस अधिकारी वीआरएस लेकर राजनीतिक कॅरियर शुरू करते हैं जो कोई अच्छी बात नहीं है. उन्होंने कहा कि हालांकि हर किसी का अधिकार है कि वह चुनाव लड़ सकता है, लेकिन ज्यादातर बड़े अधिकारियों को लगता है कि उन्हें रिटायरमेंट के बाद घर बैठने से अच्छा है कि नौकरी से भी ज्यादा अच्छा रुतबा रखने का एक ही तरीका है कि राजनीति में जाएं. उन्होंने कहा कि इसके लिए एक कानून होना चाहिए की अगर कोई भी पुलिस अधिकारी राजनीति में जाना चाहता है तो उसकी सर्विस और राजनीतिक कैरियर में कम से कम 5 साल का गैप होना चाहिए, क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो अपनी सर्विस के दौरान वह कानून के दायरे में रहकर काम करने की बजाय अपने वोट बैंक को देखते हुए काम करते हैं जो सरासर गलत है.
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जहां भी रहे लोगों के लिए काम किया : परगट सिंह
इस मामले मे खुद खिलाड़ी और उसके बाद पुलिस अधिकारी रह चुके परगट सिंह ने कहा कि स्थान आपको कहीं भी ले जाता है, लेकिन उन्होंने अपने करियर में जहां भी रहे यही कोशिश कि अपना बेहतर दे सकें और लोगों के लिए काम करें.
बहुत कम अधिकारियों को मिली सफला : सुखदेव सिंह ढींढसा
वहीं शिरोमणि अकाली दल संयुक्त के प्रधान सुखदेव सिंह ढींढसा ने कहा कि यह तो लोगों ने देखना है कि जब यह लोग राजनीति में आते हैं तो किसने कितना काम किया है और किस तरह की छवि उनकी रही है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि इससे किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए पर वैसे बहुत ही कम ऐसे अधिकारी रहे हैं जो कि राजनीति में कामयाब हुए हों.
राजनीति में जाने की सोच वाले अफसर जनता के अधिकारों के साथ न्याय नहीं कर पाते : प्रवीण बंसल
इसी प्रकार पंजाब भाजपा उपाध्यक्ष प्रवीण बंसल ने कहा कि ऐसे अधिकारी हर पार्टी में हैं और उन्हें अधिकार भी है कि वह चुनाव लड़ सकें लेकिन ऐसे अधिकारी जो अपनी नौकरी दौरान ऐसी लालसा रखते हैं कि उन्होंने राजनीति में जाना है वह अपनी कुर्सी और जनता के अधिकारों के साथ न्याय नहीं कर पाते. बंसल ने कहा कि ऐसे अधिकारियों का मकसद राजनीति में आना होता है और वह उसी तरीके से नौकरी में रहते हुए भी काम करते हैं.