विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में वर्तमान समय में लगभग 2.2 बिलियन लोग दृष्टिदोष से पीड़ित है. आंखों की रोशनी कमजोर होना स्वास्थ्य, आनुवंशिकता, खराब जीवनशैली, स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही तथा पर्यावरण सहित कई कारणों पर निर्भर हो सकता है. लेकिन चिकित्सक मानते हैं की सही देखभाल तथा सही समय पर जांच व इलाज से बड़ी संख्या में ना सिर्फ नेत्र संबंधी आम समस्याओं जैसे विजन में कमी या ड्राइनेस तथा आँखों में किसी प्रकार की एलर्जी, रेटिना से जुड़े रोग और यहां तक की मोतियाबिंद व ग्लूकोमा जैसे गंभीर रोगों में भी राहत मिल सकती है, वहीं किसी भी कारण से नेत्रहीनता की आशंका को भी कम किया जा सकता है. इसी के चलते आम जन में नेत्रों को स्वस्थ तथा सुरक्षित रखने के लिए सही देखभाल, नियमित जांच तथा अन्य जरूरी मुद्दों को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा हर साल 1 से 7 अप्रैल तक 'प्रिवेंशन ऑफ ब्लाइंडनेस वीक “ मनाया जाता है.
पिछले कुछ सालों में लगातार हर उम्र के लोगों में आंखों के कमजोर होने या दृष्टि दोष के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है. वहीं स्वास्थ्य कारणों से विशेषकर मोतियाबिंद या ग्लूकोमा जैसे रोगों के कारण लोगों में नेत्रहीनता के मामलों में भी तमाम तरह के इलाज की उपलब्धता के बावजूद ज्यादा कमी नहीं देखी जा रही है. जिसका मुख्य कारण है समस्या की शुरुआत में ही लक्षणों की अनदेखी करना, सही समय पर इलाज ना कराना व देखभाल संबंधी व अन्य जरूरी बातों को लेकर लापरवाही बरतना.
चिकित्सकों की माने तो यदि जन्मजात कारण ना हो तो बड़ी संख्या में सही समय पर सही इलाज तथा देखभाल से ना सिर्फ नेत्रहीनता की आशंका को कम किया जा सकता है वहीं दृष्टि दोष या विजन में कमी की समस्या से भी बचा जा सकता है. नेत्रों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जरूरी बातों को अपने जीवन में शामिल करने, आंखों की नियमित जांच तथा अन्य जरूरी बातों को लेकर आम जन को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल भारत सरकार द्वारा 1 से 7 अप्रैल तक 'प्रिवेंशन ऑफ ब्लाइंडनेस वीक का आयोजन किया जाता है.
उद्देश्य
Prevention Of Blindness Week एक प्रयास है जिसके तहत ना सिर्फ ज्यादा से ज्यादा लोगों को नेत्र संबंधी समस्याओं के शुरुआती लक्षण के बारे में जागरूक करने का प्रयास किया जाता है ,उन्हे नियमित नेत्र जांच, आंखों की सही देखभाल, किसी भी प्रकार की समस्या के लक्षण नजर आने पर इलाज में लापरवाही ना बरतने तथा सही समय पर सही इलाज लेने के लिए प्रेरित किया जाता है. वहीं नेत्रहीन लोगों के उत्थान तथा पुनर्वास से जुड़े मुद्दों को लेकर भी इस अवसर पर प्रयास किए जाते हैं.
गौरतलब है कि इस साप्ताहिक आयोजन के दौरान पूरे सप्ताह तक कई सरकारी केंद्रों तथा निजी चिकित्सालयों में सरकारी व गैर सरकारी संगठनों द्वारा आंखों की देखभाल तथा जांच को लेकर शिविर आयोजित किए जाते हैं. साथ ही इस अवसर पर आम लोगों से विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से आंखों के स्वास्थ्य तथा आंखों की रोशनी को बनाए रखने के लिए जरूरी तरीकों को अपनाने तथा हर उम्र में आंखों की नियमित जांच कराने की अपील की जाती है. इसके अलावा ऐसे लोग जो जन्मजात नेत्रहीनता का शिकार हों, किसी दुर्घटना में अपनी दृष्टि खो चुके हों या किसी स्वास्थ्य संबंधी समस्या के कारण नेत्रहीनता का शिकार हो गये हों उनके उत्थान, पुनर्वास तथा उनसे जुड़े मुद्दों को लेकर भी इस अवसर पर विशेष चर्चाओं तथा कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है तथा अन्य प्रयास किए जाते हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े
आईएपीबी यानी इंटरनेशनल एजेंसी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ ब्लाइंडनेस विजन ( एटलस) के आंकड़ों की माने तो दुनियाभर में लगभग 4.3 करोड़ लोग नेत्रहीनता से पीड़ित हैं, जबकि 29.5 करोड़ लोग ऐसे हैं जो मध्यम या गंभीर दृष्टि दोष से पीड़ित हैं. यदि सिर्फ भारत की बात करें तो उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार यहां हर साल दृष्टि दोष से जुड़े लगभग 20 लाख मामले संज्ञान में आते हैं. और राहत की बात यह है कि उनमें से लगभग 73% मामले ऐसे होते हैं जिनका पूरी तरह से इलाज संभव होता है. बशर्ते उनका इलाज तथा समस्या से जुड़ी देखभाल समय से शुरू हो जाए.
कारण तथा बचाव
चिकित्सकों की माने तो सिर्फ दुनिया भर में सबसे ज्यादा नेत्रहीनता के लिए मोतियाबिंद तथा ग्लूकोमा रोग होना तथा उनका समय पर इलाज ना होना जिम्मेदार होता है. वहीं दृष्टिदोष या देखने में समस्या तथा नेत्र संबंधी कई अन्य समस्याओं के लिए खराब जीवन शैली विशेषकर आहार शैली को भी जिम्मेदार माना जा सकता है. पिछले कुछ सालों में लोगों विशेषकर बच्चों के आहार में अपौष्टिक आहार जैसे जंक फूड, प्रोसेस्ड फूड, चिप्स तथा अन्य कई प्रकार के ऐसे आहार की मात्रा बढ़ी है जो शरीर को फायदा नहीं बल्कि नुकसान पहुंचाते हैं . इसके अलावा इस प्रकार के आहार से शरीर के लिए विशेषकर आंखों को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी पोषक तत्वों की पूर्ति भी नहीं हो पाती है जिससे आंखों के कमजोर होने का जोखिम ज्यादा बढ़ जाता है.
इसके अलावा पिछले कुछ सालों में टीवी, मोबाइल, लैपटॉप ने भी लोगों के नेत्र स्वास्थ्य को काफी ज्यादा प्रभावित किया है. आज के दौर में छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग तक मनोरंजन, पढ़ाई तथा कार्य के लिए ज्यादा समय स्मार्ट स्क्रीन डिवाइस के समक्ष बिताते हैं. जिससे निकलने वाली यूवी रेज़् के चलते ना सिर्फ उनकी आंखों में ड्राइनेस बल्कि धुंधलेपन सहित और भी कई समस्याओं के होने की आशंका बढ़ जाती है. Prevention of blindness week 1 April to 7 April
- हमारी आंखे स्वस्थ रहे इसके लिए पौष्टिक आहार के सेवन के साथ और भी सावधानियों को ध्यान में रखना व अपनाना बहुत जरूरी है.जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- हर उम्र में आंखों की नियमित जांच जरूर करवाएं . जिससे सही समय पर समस्या के बारे में पता चल सके. और उसका इलाज कराया जा सके.
- स्मार्ट स्क्रीन के उपयोग में सावधानी बरतें जैसे लगातार लंबे समय तक टीवी देखने या मोबाइल व कंप्यूटर पर काम करने से बचे, बल्कि काम में बीच छोटे-छोटे अंतराल लेते रहे.
- यदि किसी व्यक्ति को मधुमेह या उच्च रक्तचाप जैसी समस्या है उनके लिए आंखों की नियमित जांच बेहद जरूरी है.
- आंखों से जुड़े व्यायाम भी नियमित रूप से करें.
- आंखों में खुजली, शुष्कता या अस्थाई धुंधलेपन को अनदेखा ना करें और चिकित्सक से संपर्क करें.
- धूप व धूल बहरे वातावरण में काम करते समय आंखों पर अच्छी क्वालिटी का धूप का चश्मा जरूर पहने.
- दिन में दो बार आंखों को साफ पानी से हल्के हाथ से धोए.
- पूरी नींद लें तथा काम के बीच में भी थोड़े-थोड़े अंतराल पर आंखों को आराम देने का प्रयास करें.
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