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पीठासीन अधिकारी सम्मेलन: लोकसभा अध्यक्ष बोले-न्यायपालिका भी संवैधानिक मर्यादा का पालन करे

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Published : Jan 11, 2023, 6:40 PM IST

Updated : Jan 11, 2023, 8:28 PM IST

83वें पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि (LS Speaker Om Birla on judiciary) न्यायपालिका को भी संवैधानिक मर्यादा का पालन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका अपनी प्रत्यक्ष शक्तियों के पृथक्करण और संतुलन के सिद्धांत को बनाने में भी सहयोग करे.

LS speaker speech in Presiding Officers Conference, Om Birla on behaviour of MPs in Parliament
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला.
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला पीठासीन अधिकारी सम्मेलन को संबोधित करते हुए.

जयपुर. 83वें पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने संसद और विधानसभाओं में सदस्यों के व्यवहार को लेकर चिंता जताते हुए कहा (LS speaker speech in Presiding Officers Conference) कि चाहे हम लोकतंत्र की जननी भारत को मानते हैं, तो हमारी ज्यादा जिम्मेदारी है कि आम जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरें. जनप्रतिनिधि के सदन में व्यवहार में शालीनता और गरिमा हो. साथ ही उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को भी संविधान की मर्यादा का पालन करना चाहिए.

न्यायपालिका भी करे संवैधानिक मर्यादा का पालन: ओम बिरला ने भी कहा कि संसद हमेशा न्यायपालिका का सम्मान करती है. उनके अधिकार और स्वतंत्रता का सम्मान करती हैं. लेकिन हमारा यह भी मानना है कि संविधान में जो मर्यादा दी है, उस मर्यादा का पालन न्यायपालिका भी करे. न्यायपालिका से भी यह अपेक्षा की जाती है कि जो उनको संवैधानिक मैंडेट दिया गया है, वह उसका उपयोग करें, लेकिन अपनी प्रत्यक्ष शक्तियों के पृथक्करण और संतुलन के सिद्धांत को बनाने में भी सहयोग करें. कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को संविधान ने जो शक्तियां, अधिकार दिए हैं, हर संवैधानिक संस्था को अपने क्षेत्राधिकार में रहकर ही काम करना चाहिए.

पढ़ें: 83rd Presiding Officers Conference: स्पीकर जोशी ने कहा- हम हेल्पलेस रेफरी से ज्यादा और कुछ नहीं

उन्होंने कहा कि 50 साल जब आजादी के हुए थे, उस समय भी 2001 में भी ऐसा सम्मेलन हुआ था. जिसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, मुख्य सचेतक, नेता प्रतिपक्ष समेत नेताओं ने यह कहा था कि हमें लोकतंत्र मजबूत करना है, तो सदन में शालीनता और गरिमा होनी चाहिए. चर्चा और डिबेट का स्तर ऊंचा होना चाहिए. बिरला ने कहा कि कानून बनाने में हम लोगों की प्रभावी भूमिका होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि होना यह चाहिए कि हमारे जनप्रतिनिधि परिपक्वता दिखाकर शालीनता, गरिमा रखें. संवाद उच्च कोटि का रखें और कानून बनाते समय व्यापक रूप से समीक्षा कर चर्चा करें. कानून जिस जल्दी से पारित हो रहे हैं, यह देश ओर हमारे लोकतंत्र के लिए विशेष चिंता का प्रश्न है. ऐसे में जरूरत है कि हम हमारी विधान मंडलों की इमेज को अच्छा बनाएं. शालीनता, गरिमा रखें और अनुशासित चर्चा कर प्रभावी लोकतंत्र बनाने की बात करें.

पढ़ें: उपराष्ट्रपति का बड़ा बयान, कहा- संसद और विधानसभा में अशोभनीय घटनाएं चिंताजनक

बिरला ने कहा कि इस सम्मेलन के माध्यम से जनता के अभाव और कठिनाइयों के समाधान का रास्ता निकालें. हमारे संविधान निर्माताओं की मंशा थी की देश में कानून बनाने की हमारी जिम्मेदारी है. कानून बनाने में जनता की सक्रिय भागीदारी हो ताकि कानून उतना ही प्रभावी बने. कानून के माध्यम से हम लोगों के जीवन में बेहतर बदलाव ला सकते हैं. इसके साथ ही बिरला ने कहा कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश ने अपनी विधानसभाओं की डिबेट को कंप्यूटराइज किया है. लगता है कि 2023 में हम एक डिजिटल संसद के प्लेटफार्म को भी जनता को समर्पित कर देंगे.

पढ़ें: उपराष्ट्रपति ने कहा- न्यायपालिका का सम्मान करते हैं, लेकिन पब्लिक प्लेटफॉर्म सही स्थान नहीं

गहलोत बोले-जब अदालत ने वापस लिया फैसला: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जुडिशरी के साथ थोड़े डिफरेंस इसलिए आ जाते हैं कि हम कानून बनाते हैं. उनकी व्याख्या जुडिशरी अलग तरीके से करता है, लेकिन इसके बावजूद 75 साल बाद भी आज देश में सभी संवैधानिक संस्थाएं स्वतंत्रता से काम कर रही हैं. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, तो इसी ज्यूडिशरी ने उसे रद्द किया, लेकिन बाद में स्थिति यह बनी कि उसे अपने फैसले वापस लेते हुए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया.

गहलोत ने कहा कि हमारे लिए गर्व की बात है कि आज राज्यसभा और लोकसभा दोनों के चेयरमैन राजस्थान के हैं और दोनों राजस्थान विधानसभा के सदस्य रहे हैं. वहीं स्पीकर सीपी जोशी की मांगों को लेकर गहलोत ने जवाब देते हुए कहा कि सीपी जोशी हमारे क्रांतिकारी नेता हैं और इन्हीं के चलते हमने संविधान पार्क बनाया. इन्हीं की सोच थी कि हमने विधायकों को फ्लैट बनाकर दिए.

लोकसभा स्पीकर ओम बिरला पीठासीन अधिकारी सम्मेलन को संबोधित करते हुए.

जयपुर. 83वें पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने संसद और विधानसभाओं में सदस्यों के व्यवहार को लेकर चिंता जताते हुए कहा (LS speaker speech in Presiding Officers Conference) कि चाहे हम लोकतंत्र की जननी भारत को मानते हैं, तो हमारी ज्यादा जिम्मेदारी है कि आम जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरें. जनप्रतिनिधि के सदन में व्यवहार में शालीनता और गरिमा हो. साथ ही उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को भी संविधान की मर्यादा का पालन करना चाहिए.

न्यायपालिका भी करे संवैधानिक मर्यादा का पालन: ओम बिरला ने भी कहा कि संसद हमेशा न्यायपालिका का सम्मान करती है. उनके अधिकार और स्वतंत्रता का सम्मान करती हैं. लेकिन हमारा यह भी मानना है कि संविधान में जो मर्यादा दी है, उस मर्यादा का पालन न्यायपालिका भी करे. न्यायपालिका से भी यह अपेक्षा की जाती है कि जो उनको संवैधानिक मैंडेट दिया गया है, वह उसका उपयोग करें, लेकिन अपनी प्रत्यक्ष शक्तियों के पृथक्करण और संतुलन के सिद्धांत को बनाने में भी सहयोग करें. कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को संविधान ने जो शक्तियां, अधिकार दिए हैं, हर संवैधानिक संस्था को अपने क्षेत्राधिकार में रहकर ही काम करना चाहिए.

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उन्होंने कहा कि 50 साल जब आजादी के हुए थे, उस समय भी 2001 में भी ऐसा सम्मेलन हुआ था. जिसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, मुख्य सचेतक, नेता प्रतिपक्ष समेत नेताओं ने यह कहा था कि हमें लोकतंत्र मजबूत करना है, तो सदन में शालीनता और गरिमा होनी चाहिए. चर्चा और डिबेट का स्तर ऊंचा होना चाहिए. बिरला ने कहा कि कानून बनाने में हम लोगों की प्रभावी भूमिका होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि होना यह चाहिए कि हमारे जनप्रतिनिधि परिपक्वता दिखाकर शालीनता, गरिमा रखें. संवाद उच्च कोटि का रखें और कानून बनाते समय व्यापक रूप से समीक्षा कर चर्चा करें. कानून जिस जल्दी से पारित हो रहे हैं, यह देश ओर हमारे लोकतंत्र के लिए विशेष चिंता का प्रश्न है. ऐसे में जरूरत है कि हम हमारी विधान मंडलों की इमेज को अच्छा बनाएं. शालीनता, गरिमा रखें और अनुशासित चर्चा कर प्रभावी लोकतंत्र बनाने की बात करें.

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बिरला ने कहा कि इस सम्मेलन के माध्यम से जनता के अभाव और कठिनाइयों के समाधान का रास्ता निकालें. हमारे संविधान निर्माताओं की मंशा थी की देश में कानून बनाने की हमारी जिम्मेदारी है. कानून बनाने में जनता की सक्रिय भागीदारी हो ताकि कानून उतना ही प्रभावी बने. कानून के माध्यम से हम लोगों के जीवन में बेहतर बदलाव ला सकते हैं. इसके साथ ही बिरला ने कहा कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश ने अपनी विधानसभाओं की डिबेट को कंप्यूटराइज किया है. लगता है कि 2023 में हम एक डिजिटल संसद के प्लेटफार्म को भी जनता को समर्पित कर देंगे.

पढ़ें: उपराष्ट्रपति ने कहा- न्यायपालिका का सम्मान करते हैं, लेकिन पब्लिक प्लेटफॉर्म सही स्थान नहीं

गहलोत बोले-जब अदालत ने वापस लिया फैसला: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जुडिशरी के साथ थोड़े डिफरेंस इसलिए आ जाते हैं कि हम कानून बनाते हैं. उनकी व्याख्या जुडिशरी अलग तरीके से करता है, लेकिन इसके बावजूद 75 साल बाद भी आज देश में सभी संवैधानिक संस्थाएं स्वतंत्रता से काम कर रही हैं. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, तो इसी ज्यूडिशरी ने उसे रद्द किया, लेकिन बाद में स्थिति यह बनी कि उसे अपने फैसले वापस लेते हुए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया.

गहलोत ने कहा कि हमारे लिए गर्व की बात है कि आज राज्यसभा और लोकसभा दोनों के चेयरमैन राजस्थान के हैं और दोनों राजस्थान विधानसभा के सदस्य रहे हैं. वहीं स्पीकर सीपी जोशी की मांगों को लेकर गहलोत ने जवाब देते हुए कहा कि सीपी जोशी हमारे क्रांतिकारी नेता हैं और इन्हीं के चलते हमने संविधान पार्क बनाया. इन्हीं की सोच थी कि हमने विधायकों को फ्लैट बनाकर दिए.

Last Updated : Jan 11, 2023, 8:28 PM IST
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