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राष्ट्रपति ने नागरिकों को दी ओणम की बधाई, इस साल भी लोगों के घर नहीं जा सकेंगे 'महाबली'

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शुक्रवार को ओणम की पूर्व संध्या पर नागरिकों को बधाई देते हुए कहा कि यह त्योहार समाज में सद्भाव, प्रेम और भाईचारे का संदेश देता है. हालांकि कोरोना वायरस महामारी के कारण लगातार दूसरे वर्ष ये पारंपरिक लोक कलाकार वार्षिक तिरू ओणम के मौके पर शनिवार को दशकों पुरानी प्रथा को कायम नहीं रख सकेंगे.

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Published : Aug 21, 2021, 2:19 AM IST

नई दिल्ली : राष्ट्रपति ने शुक्रवार को जारी एक संदेश में कहा कि ओणम के पावन अवसर पर, मैं अपने सभी देशवासियों, विशेष रूप से देश और विदेश में रहने वाले केरल के भाइयों-बहनों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं.

उन्होंने कहा कि खेतों में नई फसल की उपज के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला यह त्योहार, किसानों के अथक परिश्रम और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है. उन्होंने कहा कि यह त्योहार समाज में समरसता, प्रेम और भाईचारे का संदेश भी देता है. राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी एक बयान में राष्ट्रपति के हवाले से कहा गया है कि आइए इस अवसर पर, हम सब मिलकर देश की प्रगति और समृद्धि के लिए एकजुट होकर आगे बढ़ने का संकल्प लें.

क्या है तिरू ओणम

केरल की पौराणिक कथाओं के अनुसार असुर राज महाबली ने हर साल वार्षिक तिरू ओणम दिवस पर अपनी प्रजा से मिलने का भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त किया था. उत्तरी केरल के मालाबार क्षेत्र में महाबली वास्तव में ओणम के अवसर पर उसी तरह के वेशभूषा वाले अभिनेताओं के रूप में गांव के प्रत्येक घर में जाते हैं जहां उनका स्वागत पारंपरिक दीपों और अक्षत (चावल) से भरे बर्तनों से किया जाता है. इसके बदले महाबली परिवार के सदस्यों पर आशीर्वाद देते हैं.

लेकिन कोरोना वायरस महामारी के कारण लगातार दूसरे वर्ष ये पारंपरिक लोक कलाकार वार्षिक तिरू ओणम के मौके पर शनिवार को दशकों पुरानी प्रथा को कायम नहीं रख सकेंगे. हरे-भरे ग्रामीण इलाकों और धान के खेतों से गुजरते हुए, भारी टोपी पहने और पीतल की घंटी बजाने के अलावा हाथ में ओलक्कुड़ा (ताड़ के पत्ते की छतरी) लिए ऐसे कलाकार ओणम के दौरान अक्सर दिखते हैं. ओनापोट्टन के रूप में प्रसिद्ध कलाकार महाबली का लोक प्रतिनिधित्व करते हैं जो एक देवता और समृद्धि के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हैं.

स्थानीय मान्यता के अनुसार मलयालम महीने चिंगम के उथराडोम और तिरू ओणम के दिनों में ओनापोट्टन का घर आना और आशीर्वाद देना शुभ माना जाता है. अनुसूचित जाति में आने वाले मलय समुदाय के सदस्य लोक चरित्र के रूप में तैयार होते हैं और अपनी सदियों पुरानी परंपरा को बनाए रखते हुए लोगों के घरों में जाते हैं.

ऐसे ही एक कलाकार बाबू थलप्प ने कहा कि यह लगातार दूसरा वर्ष है जब हम ओणम के मौसम में ओनापोट्टन के रूप में तैयार नहीं हो रहे हैं. मेरा बेटे और मेरे भाई का बेटा भी इस कला के लिये तैयार होते थे. उन्होंने कहा कि ओणम को याद करना उन लोगों के लिए एक बड़ी पीड़ा है जो परंपरागत रूप से वर्षों से (महाबली के) इस चरित्र को निभा रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनके पास इसे छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं है क्योंकि कुछ जोखिम भी है.

उन्होंने बताया कि जब ओनापोट्टन अपने पूरे मेकअप और रंगीन परिधानों में प्रत्येक घर जाते हैं, तो कई लोग विशेष रूप से बच्चे मनोरंजन के लिए उनके साथ चलते हैं लेकिन महामारी के मद्देनजर यह अच्छा नहीं है. उन्होंने कहा कि घरों में इस महाबली का स्वागत परिवार के सदस्यों द्वारा, विशेष रूप से बुजुर्ग व्यक्तियों द्वारा दीप जलाकर किया जाता है और वर्तमान परिस्थिति में आवश्यक सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन नहीं किया जा सकता है.

यह भी पढ़ें-आज ही खामोश हुई थी उस्ताद की शहनाई, जानें 21 अगस्त की महत्वपूर्ण घटनाएं

बच्चों की कहानी की किताबों में असुर राजा रेशम की पोशाक, शाही आभूषण और मुकुट में होते हैं लेकिन मालाबार में इन महाबली को कमर के नीचे एक सामान्य लाल रंग का कपड़ा लपेटे हुए और हाथों में ताड़ के पत्ते की छतरी लिए हुए देखा जा सकता है. इस लोक चरित्र का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि महाबली के रूप में तैयार होने के बाद कलाकार किसी से बात नहीं करते. पोट्टन का अर्थ स्थानीय भाषा में बोलने में अक्षम व्यक्ति होता है.

नई दिल्ली : राष्ट्रपति ने शुक्रवार को जारी एक संदेश में कहा कि ओणम के पावन अवसर पर, मैं अपने सभी देशवासियों, विशेष रूप से देश और विदेश में रहने वाले केरल के भाइयों-बहनों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं.

उन्होंने कहा कि खेतों में नई फसल की उपज के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला यह त्योहार, किसानों के अथक परिश्रम और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है. उन्होंने कहा कि यह त्योहार समाज में समरसता, प्रेम और भाईचारे का संदेश भी देता है. राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी एक बयान में राष्ट्रपति के हवाले से कहा गया है कि आइए इस अवसर पर, हम सब मिलकर देश की प्रगति और समृद्धि के लिए एकजुट होकर आगे बढ़ने का संकल्प लें.

क्या है तिरू ओणम

केरल की पौराणिक कथाओं के अनुसार असुर राज महाबली ने हर साल वार्षिक तिरू ओणम दिवस पर अपनी प्रजा से मिलने का भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त किया था. उत्तरी केरल के मालाबार क्षेत्र में महाबली वास्तव में ओणम के अवसर पर उसी तरह के वेशभूषा वाले अभिनेताओं के रूप में गांव के प्रत्येक घर में जाते हैं जहां उनका स्वागत पारंपरिक दीपों और अक्षत (चावल) से भरे बर्तनों से किया जाता है. इसके बदले महाबली परिवार के सदस्यों पर आशीर्वाद देते हैं.

लेकिन कोरोना वायरस महामारी के कारण लगातार दूसरे वर्ष ये पारंपरिक लोक कलाकार वार्षिक तिरू ओणम के मौके पर शनिवार को दशकों पुरानी प्रथा को कायम नहीं रख सकेंगे. हरे-भरे ग्रामीण इलाकों और धान के खेतों से गुजरते हुए, भारी टोपी पहने और पीतल की घंटी बजाने के अलावा हाथ में ओलक्कुड़ा (ताड़ के पत्ते की छतरी) लिए ऐसे कलाकार ओणम के दौरान अक्सर दिखते हैं. ओनापोट्टन के रूप में प्रसिद्ध कलाकार महाबली का लोक प्रतिनिधित्व करते हैं जो एक देवता और समृद्धि के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हैं.

स्थानीय मान्यता के अनुसार मलयालम महीने चिंगम के उथराडोम और तिरू ओणम के दिनों में ओनापोट्टन का घर आना और आशीर्वाद देना शुभ माना जाता है. अनुसूचित जाति में आने वाले मलय समुदाय के सदस्य लोक चरित्र के रूप में तैयार होते हैं और अपनी सदियों पुरानी परंपरा को बनाए रखते हुए लोगों के घरों में जाते हैं.

ऐसे ही एक कलाकार बाबू थलप्प ने कहा कि यह लगातार दूसरा वर्ष है जब हम ओणम के मौसम में ओनापोट्टन के रूप में तैयार नहीं हो रहे हैं. मेरा बेटे और मेरे भाई का बेटा भी इस कला के लिये तैयार होते थे. उन्होंने कहा कि ओणम को याद करना उन लोगों के लिए एक बड़ी पीड़ा है जो परंपरागत रूप से वर्षों से (महाबली के) इस चरित्र को निभा रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनके पास इसे छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं है क्योंकि कुछ जोखिम भी है.

उन्होंने बताया कि जब ओनापोट्टन अपने पूरे मेकअप और रंगीन परिधानों में प्रत्येक घर जाते हैं, तो कई लोग विशेष रूप से बच्चे मनोरंजन के लिए उनके साथ चलते हैं लेकिन महामारी के मद्देनजर यह अच्छा नहीं है. उन्होंने कहा कि घरों में इस महाबली का स्वागत परिवार के सदस्यों द्वारा, विशेष रूप से बुजुर्ग व्यक्तियों द्वारा दीप जलाकर किया जाता है और वर्तमान परिस्थिति में आवश्यक सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन नहीं किया जा सकता है.

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बच्चों की कहानी की किताबों में असुर राजा रेशम की पोशाक, शाही आभूषण और मुकुट में होते हैं लेकिन मालाबार में इन महाबली को कमर के नीचे एक सामान्य लाल रंग का कपड़ा लपेटे हुए और हाथों में ताड़ के पत्ते की छतरी लिए हुए देखा जा सकता है. इस लोक चरित्र का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि महाबली के रूप में तैयार होने के बाद कलाकार किसी से बात नहीं करते. पोट्टन का अर्थ स्थानीय भाषा में बोलने में अक्षम व्यक्ति होता है.

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