नई दिल्ली : तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन के 84 दिन पूरे होने के बाद दिल्ली के बोर्डरों पर अब तस्वीर बदलती दिखाई दे रही है. दिल्ली-हरियाणा टीकरी बॉर्डर पर अब किसानों की संख्या में 50 प्रतिशत तक की कमी हो गई है. जहां 26 जनवरी से पहले तक मंच के आस-पास बैठने तक की जगह नहीं होती थी, वहां आज खाली जगह दिखाई देता है.
किसानों के लिए विशेष रूप से शुरू की गई ट्रॉली टाइम्स का प्रकाशन अब भी चल रहा है, लेकिन टीकरी बॉर्डर स्थित उनके कार्यालय और लाइब्रेरी में पाठक नदारद हैं. 36 बिरादरियों के समर्थन का दावा करने वाले खाप पंचायतों के टेंट में मुश्किल से 36 लोग भी बैठे दिखाई नहीं देते. हालांकि, चंद लोगों के समूह में आंदोलनकारी हुक्के और ताश की बाजी का आनंद लेते दिखाई दे जाते हैं. यदि यहां मौजूद सुविधाओं की बात करें, तो संख्या के मुताबिक उनमें भी कमी हो गई है.
आते-जाते रहते हैं किसान
यहां मौजूद किसानों का कहना है कि संख्या में कमी इसलिए है, क्योंकि लोग अपने काम और जरूरतों के हिसाब से गांव को जाते हैं और कुछ दिन बाद वापस आते हैं. आंदोलन के सभी प्रमुख चेहरे भी अलग-अलग राज्यों में संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आयोजित किए जा रहे किसान महापंचायतों में मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं. इसलिए स्थानीय किसान भी वहां पहुंच कर महापंचायत को सफल बनाने का प्रयास करते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि दिल्ली के बॉर्डरों पर किसानों की संख्या में कमी रणनीति का हिस्सा हो सकती है.
किसानों की रणनीति हो सकती है
किसान संगठन अब इस आंदोलन को और देशव्यापी बनाने के लिए गांव, कस्बों का रुख कर रहे हैं और वहीं से इस आंदोलन को और विस्तार दिया जा सकता है. चूंकि सरकार लगातार इस आंदोलन को पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों तक ही केंद्रित बताती रही है. हालांकि, किसान नेता लगातार इस बात का खंडन करते हैं और आंदोलन को देशव्यापी बताते हैं. ऐसे में अलग-अलग राज्यों के जिले में किसान महापंचायत का आयोजन इस आंदोलन के दायरे को और बढ़ाने की एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है.
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सरकार के प्रस्ताव का इंतजार
84 दिन के बाद भी सरकार और किसान मोर्चा के बीच गतिरोध कायम है, ऐसे में कई किसान नेताओं के बयान सामने आए जिसमें उन्होंने कहा है कि सरकार को एक बार फिर प्रस्ताव भेजना चाहिए, लेकिन सरकार की तरफ से अब तक कोई औपचारिक पहल नहीं देखी गई है. टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन की तस्वीरें यह स्पष्ट बताती हैं कि किसान नेता चाहे कितना भी दावा करें, लेकिन अब यहां मौजूद किसानों को अपने काम और अपने घर की चिंता निश्चित रूप से हो रही है.