नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी कैदी की समय पूर्व रिहाई के लिए उसे दोषी करार दिये जाने की तारीख के समय प्रभावी नीति ही तब तक लागू रहेगी जब तक कि बाद में और अधिक उदार नियम प्रभाव में नहीं आते. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने उत्तराखंड में हत्या के एक दोषी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. व्यक्ति ने इस आधार पर समय पूर्व रिहाई की मांग की थी कि वह 24 साल की वास्तविक कैद की सजा और छूट के साथ 30 साल की सजा काट चुका है.
उत्तराखंड के वकील ने कहा कि नौ नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बनाये जाने के बाद अविभाजित राज्य में कैदियों की समय पूर्व रिहाई की नीति समेत कुछ कानूनों और नीतियों को अपना लिया गया और नये राज्य के अपने कानून बनाने तक वे प्रभाव में रहे. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य नीति (अदालत द्वारा सुनाई गयी उम्रकैद की सजा के मामले में दोषी कैदियों की सजा, माफी, समय पूर्व रिहाई के लिए) 29 नवंबर, 2022 को लागू की गई थी.
पीठ ने कहा, 'कानून भलीभांति स्थापित है. दोषसिद्धि की तारीख वाले दिन प्रभावी नीति ही तब तक लागू रहेगी जब तक बाद में और अधिक उदार नीति प्रभाव में नहीं आ जाती.' याचिकाकर्ता राजेश शर्मा की ओर से वकील ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि इस मामले में उत्तर प्रदेश की नीति लागू होगी.
पीठ ने 10 नवंबर को आदेश दिया था कि 'समय पूर्व रिहाई के लिए मामले पर अभी भी विचार नहीं किया गया है, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता के समय पूर्व रिहाई के मामले पर 30 नवंबर, 2023 को या उससे पहले सकारात्मक तरीके से विचार किया जाए. इस आदेश के अनुपालन में किसी तरह की देरी होने पर कानून के तहत आवश्यक परिणाम होंगे.'
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