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Poverty Removal : भारत जैसे देश में फ्रीबी नहीं, सामाजिक सुरक्षा और सम्मानजनक कार्य से मिटेगी गरीबी

वियतनाम जैसे देश में सरकार फ्रीबी नहीं देती है. सामाजिक सुरक्षा जरूर दी जाती है. आपके पास भोजन नहीं है, तो आपको काम करना होगा, तभी भोजन मिलेगा. वहां पर सरकार रोजगार बढ़ाने और उसकी उत्पादकता बढ़ाने पर फोकस करती है, न कि मुफ्तखोरी की आदत डाली जाती है. यही वजह है कि औसत आमदनी वाले देशों की कैटेगरी में शामिल होने के बावजूद वियतनाम ने गरीबी के स्तर को काफी हद तक घटा लिया, लेकिन भारत इसमें कामयाब नहीं हो पा रहा है. पेश है आईसीएफएआई हैदराबाद के पूर्व वीसी एस. महेंद्र देव का एक आलेख. poverty removal and India, decent work and social protection , poverty removal day,

poverty alleviation
गरीबी होगी कम
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 25, 2023, 6:54 PM IST

Updated : Oct 26, 2023, 6:09 PM IST

हैदराबाद : इस साल गरीबी हटाओ दिवस की थीम रखी गई है - सम्मानजनक कार्य और सामाजिक सुरक्षा: सभी के लिए गरिमापूर्ण व्यवहार. आज भी कई देशों में गरीबी व्याप्त है. सितंबर 2023 में विश्व बैंक ने एक नया आंकड़ा जारी किया है. इसके अनुसार पूरी दुनिया में गरीबी रेखा से नीचे 70 करोड़ लोग रहते हैं. इनकी दैनिक आमदनी 2.15 डॉलर से भी कम है. 186 करोड़ ऐसी आबादी है, जिनकी दैनिक आमदनी 3.65 डॉलर प्रति दिन है. सबसे अधिक दक्षिण एशिया में 44 फीसदी और सब-सहारा देशों में 38 फीसदी लोग गरीब हैं. ऊपर से इजराइल हमास युद्ध और रूस-यूक्रेन संघर्ष ने स्थिति को और भी अधिक जटिल बना दिया है.

कुछ दिनों पहले अर्थशास्त्र के क्षेत्र में इस साल का नोबेल अवार्ड क्लाउडिया गोल्डिन को देने की घोषणा की गई थी. वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर हैं. उन्होंने महिला श्रम बाजार पर विशेष अध्ययन किया है. उन्होंने 200 साल पुराने डाटा तक को अपने अध्ययन का हिस्सा बनाया है. इसके आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि किस प्रकार से लिंग भेद के कारण आमदनी और रोजगार दर में बदलाव आता रहा. अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल जीतने वाली वह तीसरी महिला हैं. इससे पहले 2009 में ओलिवर ऑस्ट्रोम और 2019 में डुफलो को यह सम्मान मिल चुका है.

जहां तक भारत का सवाल है, नीति आयोग ने 2023 में भारत में गरीबी के विषय पर नेशनल मल्टीडायमेंशनल पोवर्टी इंडेक्स जारी किया था. इसके लिए आयोग ने 12 इंडिकेटर्स का इस्तेमाल किया था. स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवन स्तर से जुड़े हुए इंटिकेटर्स थे. इसके मुताबिक जीवन स्तर में गिरावट आई है. बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में गरीबी में सबसे अधिक गिरावट आई है. हालांकि, इन राज्यों में राष्ट्रीय पैमाने पर औसत से अधिक गरीबी का अनुपात है. बिहार में 34 फीसदी, झारखंड में 28.8 फीसदी, यूपी में 23 फीसदी, एमपी में 21 फीसदी, असम में 19 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 16 फीसदी. तेलंगाना में यह दर 13 फीसदी से छह फीसदी और आंध्र प्रदेश में 12 फीसदी से छह फीसदी तक हो गया है. आयोग ने 2015-16 से लेकर 2019-21 साल के आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है.

गरीबी को घटाने में स्कूलिंग, शिक्षा, सफाई, ईंधन और पौष्टिक आहार ने बड़ी भूमिका निभाई है. हालांकि, खाद्य सुरक्षा की स्थिति और विश्व में पोषण 2023 से पता चला कि भारत की लगभग 74 फीसदी आबादी स्वास्थ्य पर खर्च करने में असमर्थ थी. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेक्षण-5 के अनुसार 2019-21 में 15-49 वर्ष की 57 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं.

कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने कहा था कि हंगर के मुख्य रूप से तीन पहलू होते हैं. पहला है अनाज में कैलोरी की कमी. दूसरा है प्रोटीन की कमी, जो मुख्य रूप से दूध, अंडा, मछली और मीट में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. और तीसरा है खनिज की कमी, जैसे आइरन, आयोडिन, जिंक, विटामिन ए, विटामिन बी12 वगैरह. गरीबी को कम करने के लिए आमदनी बढ़ानी होगी और उसके लिए प्रोडक्टिव रोजगार का होना जरूरी है.

आप सोचिए वैसे लोगों के बारे में जो असगंठित क्षेत्रों में काम करते हैं, जिनका कोई भी लेखा-जोखा नहीं है, उनके सामने कितनी विकट स्थिति होगी. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक लैटिन अमेरिका, सब-सहारन और फिर द. एशिया के देशों में दो अरब से अधिक लोग गैर संगठित क्षेत्रों में काम करते हैं.

58 फीसदी इन्फॉर्मल सेक्टर ऐसे हैं, जहां पर महिलाओं के साथ भेदभाव होता है. महिलाओं को पेमेंट भी कम किया जाता है. सेक्सुअली शोषण का भी खतरा बना रहता है. भारत में कृषि, निर्माण और सेवा के क्षेत्रों में 90 फीसदी तक वर्कफोर्स असंगठित क्षेत्र से जुड़े हैं. प्लेफॉर्म वर्कर भी एक नए प्रकार का इन्फॉर्मल सेक्टर है. 80 लाख लोग इसमें कार्यरत हैं. यह मुख्य रूप से स्मार्टफोन क्रांति से जुड़ा है. इन्हें गिग वर्क भी कहा जाता है.

गिग वर्क रोजगार का नया माध्यम है. वैसे युवा जो मेहनती हैं, और अधिक कमाई के लिए अलग से कुछ करना चाहते हैं, उनके पास एक्स्ट्रा समय है, इस सेक्टर से ऐसे ही लोग जुड़ रहे हैं. प्लेटफॉर्म वर्कर्स पर खूब बहस भी हो चुकी है, मसलन कितना पेमेंट किया जाता है, काम की स्थिति कैसी है, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा वगैरह को लेकर भी. एनसीएईआर ने इस पर एक आंकड़ा भी जारी किया है.

इसके अनुसार फूड डेलिवरी प्लेटफॉर्म सेक्टर को सबसे अधिक पंसद किया जा रहा है. इनमें कार्यरत 61.9 फीसदी लोगों के सामने भूख की नौबत नहीं आई. इनमें से 12.2 फीसदी के पास आयुष्मान हेल्थ कार्ड था. 11 फीसदी के पास राज्य सरकार का स्वास्थ्य बीमा था. 7.1 फीसदी का नाम ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर्ड था. 4 फीसदी ने अटल पेंशन योजना ले रखी थी.

सामाजिक सुरक्षा का मतबल- स्वास्थ्य बीमा और पेंशन से जुड़ा है. सवाल बस यही है कि इसे कौन उपलब्ध करवाएगा, सरकार या प्लेटफॉर्म कंपनी. इन्हें कंपनी का कर्मचारी नहीं माना जाता है. लिहाजा उन्हें संंबंधि लाभ भी नहीं उपलब्ध करवाया जाता है. ऐसी स्थिति में सरकार ही सबसे बेहतर माध्यम हो सकती है. हां, प्लेटफॉर्म कंपनी फंड के जरिए इसमें योगदान कर सकती है. ऐसे प्लेटफॉर्म को नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के साथ टाईअप करना चाहिए. कॉरपोरेशन प्लेटफॉर्म कंपनी से जुड़े युवाओं को स्किल डेवलपमेंट सर्टिफिकेट प्रदान कर सकती है, ताकि उन्हें आगे आसानी से काम मिल सके.

निगम की भी भूमिका हो सकती है. यहां पर राजस्थान का उदाहरण लिया जा सकता है. जैसे राजस्थान सरकार ने राजस्थान प्लेटफॉर्म बेस्ड गिग वर्कर्स बिल के जरिए इन्हें सामाजिक सुरक्षा देने की कोशिश की है. बिल के अनुसार एक वेलफेयर बोर्ड का गठन किया जाएगा. यह उनके कल्याण के लिए नीति निर्धारित करेगा. हालांकि, इस पर स्थिति और भी साफ होनी है. एक सोशल वेलफेयर कॉर्पस फंड बनाए जाने की भी चर्चा है. सेस के जरिए इसकी फंडिंग की जा सकती है. संबंधित प्लेटफॉर्म पर आने वाले ग्राहकों से सेस कलेक्ट किया जा सकता है. थाईलैंड और मलेशिया के ट्रांसपोर्ट सेक्टर में इस तरह के प्लेटफॉर्म हैं, जो इसी तर्ज पर काम कर रहे हैं. वहां पर दो फीसदी का सेस हरेक राइड पर चार्ज किया जाता है.

भारत में भी कई सामाजिक सुरक्षा प्रोग्राम हैं. लेकिन आप फ्रीबी से इसकी तुलना नहीं कर सकते हैं. अब जबकि चुनाव नजदीक आ रहे हैं, फ्रीबी की घोषणाएं हो सकती हैं. और यह सरकारी खजाने पर बोझ बनता है, यह भी एक सच्चाई है. फ्रीबी और सामाजिक सुरक्षा, दोनों अलग-अलग विषय हैं.

आरबीआई के पूर्व गवर्नर डॉ सी. रंगराजन ने इस संबंध में एक सुझाव दिया था कि किसी भी राज्य सरकार या केंद्र सरकार को अपनी आमदनी (रेवेन्यू) का अधिकतम 10 फीसदी ही फ्रीबी पर खर्च करने की अनुमति दी जानी चाहिए. हां, यदि वे अपना रेवेन्यू बढ़ा लेती हैं, तो इस प्रतिशत को बढ़ा सकती हैं.

वियतनाम ने गरीबी घटाने के लिए एक अलग तरीका अपनाया है. उससे भी सीखा जा सकता है. वियतनाम ने उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया. सभी सेक्टर्स में रोजगार बढ़ाने पर जोर दिया. उन्होंने 1980 में कृषि सुधार अपनाया था. आने वाले दशकों में इस पर लगातार फोकस बनाए रखा. किसानों को इंसेटिव दिया गया, जबतक कि उन्होंने उत्पादकता को नहीं बढ़ाया और उसमें विविधिकरण नहीं लाया. यानी उन्हें फ्रीबी पर निर्भर नहीं बनाया.

व्यापार का उदारीकरण और इनवार्ड इनवेस्टमेंट ने वियतनाम में ग्रोथ की गति बढ़ा दी. उसके बाद उसे व्यापार से जोड़ा. ग्रामीण इलाकों में आमदनी बढ़ने से घरेलू सेवाओं को नया बल मिला. रिटेल, ट्रांसपोर्ट, लॉजिस्टिक, वित्त और बिजनेस सेवाएं बढ़ती गईं. वियतनाम में स्वास्थ्य, शिक्षा और मूल ढांचा (बिजली, पानी, संचार और सफाई) की सुविधाएं सभी को मिलती हैं. वह सरकार की ओर उपलब्ध करवाया जाता है. लेकिन सरकार ने पैसे या भोजन नहीं दिए. बल्कि उन्हें बताया जाता है कि आप किस तरह से अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, फिर चाहे वह फार्मिंग से हो या पशुपालन से या अन्य क्षेत्र से. सरकार आपकी मदद करेगी, लेकिन काम आपको करना होगा. यही वजह रही कि कम या औसत आमदनी वाले देश होते हुए भी वियतनाम ने गरीबी को बहुत हद तक घटा लिया. हम भी 2047 तक एक विकसित देश बनना चाहता है. लेकिन ऐसा तभी होगा जब हम गरीबी को कम करने में कामयाब होंगे. हमें भी शिक्षा और कौशल बढ़ाने होंगे. रोजगार की उत्पादकता बढ़ानी होगी.

ये भी पढ़ें : Problems of Farmers in India: किसान दान नहीं, बल्कि अपने अथक परिश्रम का चाहते हैं उचित मुआवजा

हैदराबाद : इस साल गरीबी हटाओ दिवस की थीम रखी गई है - सम्मानजनक कार्य और सामाजिक सुरक्षा: सभी के लिए गरिमापूर्ण व्यवहार. आज भी कई देशों में गरीबी व्याप्त है. सितंबर 2023 में विश्व बैंक ने एक नया आंकड़ा जारी किया है. इसके अनुसार पूरी दुनिया में गरीबी रेखा से नीचे 70 करोड़ लोग रहते हैं. इनकी दैनिक आमदनी 2.15 डॉलर से भी कम है. 186 करोड़ ऐसी आबादी है, जिनकी दैनिक आमदनी 3.65 डॉलर प्रति दिन है. सबसे अधिक दक्षिण एशिया में 44 फीसदी और सब-सहारा देशों में 38 फीसदी लोग गरीब हैं. ऊपर से इजराइल हमास युद्ध और रूस-यूक्रेन संघर्ष ने स्थिति को और भी अधिक जटिल बना दिया है.

कुछ दिनों पहले अर्थशास्त्र के क्षेत्र में इस साल का नोबेल अवार्ड क्लाउडिया गोल्डिन को देने की घोषणा की गई थी. वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर हैं. उन्होंने महिला श्रम बाजार पर विशेष अध्ययन किया है. उन्होंने 200 साल पुराने डाटा तक को अपने अध्ययन का हिस्सा बनाया है. इसके आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि किस प्रकार से लिंग भेद के कारण आमदनी और रोजगार दर में बदलाव आता रहा. अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल जीतने वाली वह तीसरी महिला हैं. इससे पहले 2009 में ओलिवर ऑस्ट्रोम और 2019 में डुफलो को यह सम्मान मिल चुका है.

जहां तक भारत का सवाल है, नीति आयोग ने 2023 में भारत में गरीबी के विषय पर नेशनल मल्टीडायमेंशनल पोवर्टी इंडेक्स जारी किया था. इसके लिए आयोग ने 12 इंडिकेटर्स का इस्तेमाल किया था. स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवन स्तर से जुड़े हुए इंटिकेटर्स थे. इसके मुताबिक जीवन स्तर में गिरावट आई है. बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में गरीबी में सबसे अधिक गिरावट आई है. हालांकि, इन राज्यों में राष्ट्रीय पैमाने पर औसत से अधिक गरीबी का अनुपात है. बिहार में 34 फीसदी, झारखंड में 28.8 फीसदी, यूपी में 23 फीसदी, एमपी में 21 फीसदी, असम में 19 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 16 फीसदी. तेलंगाना में यह दर 13 फीसदी से छह फीसदी और आंध्र प्रदेश में 12 फीसदी से छह फीसदी तक हो गया है. आयोग ने 2015-16 से लेकर 2019-21 साल के आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है.

गरीबी को घटाने में स्कूलिंग, शिक्षा, सफाई, ईंधन और पौष्टिक आहार ने बड़ी भूमिका निभाई है. हालांकि, खाद्य सुरक्षा की स्थिति और विश्व में पोषण 2023 से पता चला कि भारत की लगभग 74 फीसदी आबादी स्वास्थ्य पर खर्च करने में असमर्थ थी. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेक्षण-5 के अनुसार 2019-21 में 15-49 वर्ष की 57 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं.

कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने कहा था कि हंगर के मुख्य रूप से तीन पहलू होते हैं. पहला है अनाज में कैलोरी की कमी. दूसरा है प्रोटीन की कमी, जो मुख्य रूप से दूध, अंडा, मछली और मीट में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. और तीसरा है खनिज की कमी, जैसे आइरन, आयोडिन, जिंक, विटामिन ए, विटामिन बी12 वगैरह. गरीबी को कम करने के लिए आमदनी बढ़ानी होगी और उसके लिए प्रोडक्टिव रोजगार का होना जरूरी है.

आप सोचिए वैसे लोगों के बारे में जो असगंठित क्षेत्रों में काम करते हैं, जिनका कोई भी लेखा-जोखा नहीं है, उनके सामने कितनी विकट स्थिति होगी. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक लैटिन अमेरिका, सब-सहारन और फिर द. एशिया के देशों में दो अरब से अधिक लोग गैर संगठित क्षेत्रों में काम करते हैं.

58 फीसदी इन्फॉर्मल सेक्टर ऐसे हैं, जहां पर महिलाओं के साथ भेदभाव होता है. महिलाओं को पेमेंट भी कम किया जाता है. सेक्सुअली शोषण का भी खतरा बना रहता है. भारत में कृषि, निर्माण और सेवा के क्षेत्रों में 90 फीसदी तक वर्कफोर्स असंगठित क्षेत्र से जुड़े हैं. प्लेफॉर्म वर्कर भी एक नए प्रकार का इन्फॉर्मल सेक्टर है. 80 लाख लोग इसमें कार्यरत हैं. यह मुख्य रूप से स्मार्टफोन क्रांति से जुड़ा है. इन्हें गिग वर्क भी कहा जाता है.

गिग वर्क रोजगार का नया माध्यम है. वैसे युवा जो मेहनती हैं, और अधिक कमाई के लिए अलग से कुछ करना चाहते हैं, उनके पास एक्स्ट्रा समय है, इस सेक्टर से ऐसे ही लोग जुड़ रहे हैं. प्लेटफॉर्म वर्कर्स पर खूब बहस भी हो चुकी है, मसलन कितना पेमेंट किया जाता है, काम की स्थिति कैसी है, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा वगैरह को लेकर भी. एनसीएईआर ने इस पर एक आंकड़ा भी जारी किया है.

इसके अनुसार फूड डेलिवरी प्लेटफॉर्म सेक्टर को सबसे अधिक पंसद किया जा रहा है. इनमें कार्यरत 61.9 फीसदी लोगों के सामने भूख की नौबत नहीं आई. इनमें से 12.2 फीसदी के पास आयुष्मान हेल्थ कार्ड था. 11 फीसदी के पास राज्य सरकार का स्वास्थ्य बीमा था. 7.1 फीसदी का नाम ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर्ड था. 4 फीसदी ने अटल पेंशन योजना ले रखी थी.

सामाजिक सुरक्षा का मतबल- स्वास्थ्य बीमा और पेंशन से जुड़ा है. सवाल बस यही है कि इसे कौन उपलब्ध करवाएगा, सरकार या प्लेटफॉर्म कंपनी. इन्हें कंपनी का कर्मचारी नहीं माना जाता है. लिहाजा उन्हें संंबंधि लाभ भी नहीं उपलब्ध करवाया जाता है. ऐसी स्थिति में सरकार ही सबसे बेहतर माध्यम हो सकती है. हां, प्लेटफॉर्म कंपनी फंड के जरिए इसमें योगदान कर सकती है. ऐसे प्लेटफॉर्म को नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के साथ टाईअप करना चाहिए. कॉरपोरेशन प्लेटफॉर्म कंपनी से जुड़े युवाओं को स्किल डेवलपमेंट सर्टिफिकेट प्रदान कर सकती है, ताकि उन्हें आगे आसानी से काम मिल सके.

निगम की भी भूमिका हो सकती है. यहां पर राजस्थान का उदाहरण लिया जा सकता है. जैसे राजस्थान सरकार ने राजस्थान प्लेटफॉर्म बेस्ड गिग वर्कर्स बिल के जरिए इन्हें सामाजिक सुरक्षा देने की कोशिश की है. बिल के अनुसार एक वेलफेयर बोर्ड का गठन किया जाएगा. यह उनके कल्याण के लिए नीति निर्धारित करेगा. हालांकि, इस पर स्थिति और भी साफ होनी है. एक सोशल वेलफेयर कॉर्पस फंड बनाए जाने की भी चर्चा है. सेस के जरिए इसकी फंडिंग की जा सकती है. संबंधित प्लेटफॉर्म पर आने वाले ग्राहकों से सेस कलेक्ट किया जा सकता है. थाईलैंड और मलेशिया के ट्रांसपोर्ट सेक्टर में इस तरह के प्लेटफॉर्म हैं, जो इसी तर्ज पर काम कर रहे हैं. वहां पर दो फीसदी का सेस हरेक राइड पर चार्ज किया जाता है.

भारत में भी कई सामाजिक सुरक्षा प्रोग्राम हैं. लेकिन आप फ्रीबी से इसकी तुलना नहीं कर सकते हैं. अब जबकि चुनाव नजदीक आ रहे हैं, फ्रीबी की घोषणाएं हो सकती हैं. और यह सरकारी खजाने पर बोझ बनता है, यह भी एक सच्चाई है. फ्रीबी और सामाजिक सुरक्षा, दोनों अलग-अलग विषय हैं.

आरबीआई के पूर्व गवर्नर डॉ सी. रंगराजन ने इस संबंध में एक सुझाव दिया था कि किसी भी राज्य सरकार या केंद्र सरकार को अपनी आमदनी (रेवेन्यू) का अधिकतम 10 फीसदी ही फ्रीबी पर खर्च करने की अनुमति दी जानी चाहिए. हां, यदि वे अपना रेवेन्यू बढ़ा लेती हैं, तो इस प्रतिशत को बढ़ा सकती हैं.

वियतनाम ने गरीबी घटाने के लिए एक अलग तरीका अपनाया है. उससे भी सीखा जा सकता है. वियतनाम ने उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया. सभी सेक्टर्स में रोजगार बढ़ाने पर जोर दिया. उन्होंने 1980 में कृषि सुधार अपनाया था. आने वाले दशकों में इस पर लगातार फोकस बनाए रखा. किसानों को इंसेटिव दिया गया, जबतक कि उन्होंने उत्पादकता को नहीं बढ़ाया और उसमें विविधिकरण नहीं लाया. यानी उन्हें फ्रीबी पर निर्भर नहीं बनाया.

व्यापार का उदारीकरण और इनवार्ड इनवेस्टमेंट ने वियतनाम में ग्रोथ की गति बढ़ा दी. उसके बाद उसे व्यापार से जोड़ा. ग्रामीण इलाकों में आमदनी बढ़ने से घरेलू सेवाओं को नया बल मिला. रिटेल, ट्रांसपोर्ट, लॉजिस्टिक, वित्त और बिजनेस सेवाएं बढ़ती गईं. वियतनाम में स्वास्थ्य, शिक्षा और मूल ढांचा (बिजली, पानी, संचार और सफाई) की सुविधाएं सभी को मिलती हैं. वह सरकार की ओर उपलब्ध करवाया जाता है. लेकिन सरकार ने पैसे या भोजन नहीं दिए. बल्कि उन्हें बताया जाता है कि आप किस तरह से अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, फिर चाहे वह फार्मिंग से हो या पशुपालन से या अन्य क्षेत्र से. सरकार आपकी मदद करेगी, लेकिन काम आपको करना होगा. यही वजह रही कि कम या औसत आमदनी वाले देश होते हुए भी वियतनाम ने गरीबी को बहुत हद तक घटा लिया. हम भी 2047 तक एक विकसित देश बनना चाहता है. लेकिन ऐसा तभी होगा जब हम गरीबी को कम करने में कामयाब होंगे. हमें भी शिक्षा और कौशल बढ़ाने होंगे. रोजगार की उत्पादकता बढ़ानी होगी.

ये भी पढ़ें : Problems of Farmers in India: किसान दान नहीं, बल्कि अपने अथक परिश्रम का चाहते हैं उचित मुआवजा

Last Updated : Oct 26, 2023, 6:09 PM IST
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