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सकारात्मक सोच व सही उपचार से कोरोना से जीत में मिली मदद

सकारात्मकता सोच और सही उपचार से कोरोना मरीजों को शत-प्रतिशत ठीक होने में मदद मिल रही है. यही कारण है कि 102 साल की सुशीला पाठक ने कोरोना को हरा दिया है.

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Published : May 1, 2021, 2:47 AM IST

ठाणे : कोरोना की दूसरी लहर पहले वाले से अधिक घातक साबित हुई है. दूसरी लहर के दौरान मृत्यु दर भी बहुत अधिक है. हालांकि कुछ घटनाएं इस निराशाजनक परिदृश्य में आशा जगाती हैं. 102 वर्ष की आयु की एक दादी ने कोरोना को हराया है.

कोरोना पर जीत हासिल करने वाली सुशीला पाठक ने सलाह दी है कि समय रहते इलाज कराओ, घबराओ मत, तुम जीत जाओगे. दादी सुशीला पाठक का पंद्रह दिनों तक ठाणे के क्षितिज प्राइम अस्पताल में इलाज किया गया था. वह आशा और हिम्मत के साथ अपनी उम्र के बावजूद कोरोना को मात देने में कामयाब रहीं.

हालांकि रिश्तेदारों और परिचितों को डर लेकिन बुरी तरह बीमार सुशीला पाठक महामारी से पूरी तरह से उबरने के बाद घर वापस आने में कामयाब रहीं. उनके पोते डॉ. सुजीत बोपर्डेकर और डॉ. अभिजीत बोपर्डेकर जानते हैं कि वे जीवन में दृढ़ इच्छाशक्ति से भरपूर हैं. इसलिए उन्होंने उसे इलाज के साथ-साथ आशा भी दी.

परिणामस्वरूप पाठक एक पखवाड़े के भीतर घर वापस आ गई हैं. क्षितिज प्राइम के डॉक्टरों और कर्मचारियों के प्रयासों ने एक प्रमुख भूमिका निभाई है. पाठक ने भी डॉक्टरों के निर्देशों का सख्ती से पालन किया और अच्छी प्रतिक्रिया दी. उनके सकारात्मक रवैये और उपचार ने कोरोना को हराने में मदद की.

यह भी पढें-सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा, केंद्र और राज्यों को दिए जाने वाले टीकों की कीमत में अंतर क्यों

दृढ़ इच्छाशक्ति और अच्छा इलाज काम करता है. डॉक्टरों द्वारा सही उपचार पाठक को ठीक करने में महत्वपूर्ण था लेकिन उसकी सकारात्मकता ने उन्हें लड़ने के लिए साहस दिया. उनकी इच्छा के कारण ही उनके उपचार को अच्छी प्रतिक्रिया मिली. अस्पताल के कर्मचारी भी उनकी सकारात्मकता से प्रभावित हुए और खुश होकर उन्हें घर भेजने से पहले केक काटा गया.

ठाणे : कोरोना की दूसरी लहर पहले वाले से अधिक घातक साबित हुई है. दूसरी लहर के दौरान मृत्यु दर भी बहुत अधिक है. हालांकि कुछ घटनाएं इस निराशाजनक परिदृश्य में आशा जगाती हैं. 102 वर्ष की आयु की एक दादी ने कोरोना को हराया है.

कोरोना पर जीत हासिल करने वाली सुशीला पाठक ने सलाह दी है कि समय रहते इलाज कराओ, घबराओ मत, तुम जीत जाओगे. दादी सुशीला पाठक का पंद्रह दिनों तक ठाणे के क्षितिज प्राइम अस्पताल में इलाज किया गया था. वह आशा और हिम्मत के साथ अपनी उम्र के बावजूद कोरोना को मात देने में कामयाब रहीं.

हालांकि रिश्तेदारों और परिचितों को डर लेकिन बुरी तरह बीमार सुशीला पाठक महामारी से पूरी तरह से उबरने के बाद घर वापस आने में कामयाब रहीं. उनके पोते डॉ. सुजीत बोपर्डेकर और डॉ. अभिजीत बोपर्डेकर जानते हैं कि वे जीवन में दृढ़ इच्छाशक्ति से भरपूर हैं. इसलिए उन्होंने उसे इलाज के साथ-साथ आशा भी दी.

परिणामस्वरूप पाठक एक पखवाड़े के भीतर घर वापस आ गई हैं. क्षितिज प्राइम के डॉक्टरों और कर्मचारियों के प्रयासों ने एक प्रमुख भूमिका निभाई है. पाठक ने भी डॉक्टरों के निर्देशों का सख्ती से पालन किया और अच्छी प्रतिक्रिया दी. उनके सकारात्मक रवैये और उपचार ने कोरोना को हराने में मदद की.

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दृढ़ इच्छाशक्ति और अच्छा इलाज काम करता है. डॉक्टरों द्वारा सही उपचार पाठक को ठीक करने में महत्वपूर्ण था लेकिन उसकी सकारात्मकता ने उन्हें लड़ने के लिए साहस दिया. उनकी इच्छा के कारण ही उनके उपचार को अच्छी प्रतिक्रिया मिली. अस्पताल के कर्मचारी भी उनकी सकारात्मकता से प्रभावित हुए और खुश होकर उन्हें घर भेजने से पहले केक काटा गया.

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