चमोली: हिंदुओं के पवित्र धार्मिक स्थल बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए 3 बजकर 35 पर बंद हो गए हैं. मंदिर को सुंदर तरीके से रंग बिरंगे फूलों से सजाया गया है. कपाट बंद होने से पहले हजारों श्रद्धालु बदरीनाथ धाम पहुंचे, जो कपाट बंद होने की धार्मिक प्रक्रिया के साक्षात गवाह बने.
बदरीनाथ धाम के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल के मुताबिक कपाट बंद होने से पहले ही भगवान बदरी विशाल को ऊनी घृत कंबल ओढ़ाया गया. यह ऊनी घृत कंबल माणा गांव की महिला मंगल दल की महिलाओं ने तैयार किया है, जिसे घी में भिगोकर तैयार किया गया है.
इस घृत कंबल को मंदिर के मुख्य पुजारी ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी भगवान को अर्पित किया. इससे पहले रावल यानी मुख्य पुजारी ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी स्त्री का वेश धारण कर माता लक्ष्मी की प्रतिमा को बदरीनाथ धाम के गर्भ गृह में प्रतिष्ठापित किया. बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के साथ ही उत्तराखंड में स्थित गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ धाम की यात्रा भी संपन्न हो गई.
इतने यात्री कर चुके हैं दर्शन: इस साल साढ़े 17 लाख से ज्यादा तीर्थयात्री भगवान बदरीनाथ के दर्शन कर चुके हैं. बदरीनाथ के कपाट बंद होने के बाद उद्धव और कुबेर जी की डोली बामणी गांव में पहुंचेगी. जबकि शंकराचार्य जी की गद्दी रावल निवास में आज रात्रि विश्राम करेगी. रविवार सुबह को पावन गद्दी और उद्धव-कुबेर जी की मूर्ति पांडुकेश्वर के लिए रवाना होगी. 21 नवंबर को शंकराचार्य जी की गद्दी जोशीमठ के नरसिंह मंदिर पहुंचेगी और शीतकाल तक यहीं रहेगी.
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शीतकाल में दिसंबर महीने से लेकर मई महीने तक बदरीनाथ धाम बर्फ की सफेद चादर में लिपटा रहता है. दिसंबर से फरवरी तक धाम से हनुमान चट्टी तक तकरीबन 10 किलोमीटर तक बर्फ जम जाती है. इस दौरान बदरीनाथ धाम में पुलिस के कुछ जवानों के साथ ही मंदिर समिति के कर्मचारी तैनात रहते हैं. चीन सीमा से जुड़ा इलाका होने के कारण माणा गांव में आईटीबीपी के जवान तैनात रहते हैं. कपाट बंद होने पर बामणी और माणा गांव के लोग और अन्य व्यवसायी बदरीनाथ धाम छोड़ कर निचले हिस्सों में चले जाते हैं. इस दौरान सेना के जवानों को छोड़कर किसी भी आम व्यक्ति को हनुमान चट्टी से आगे जाने की अनुमति नहीं होती है.