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पढ़ें, ऑटो चलाकर घर चलाने में मदद करने वाली एमपी की बेटी की कहानी

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Published : Jul 11, 2021, 7:30 PM IST

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले की पूनम मेश्राम ऑटो चलाकर अपने पिता का हाथ बंटा रही है. पूनम बालाघाट जिले की पहली महिला ऑटो चालक है.

mp ki daughter story
एमपी की बेटी की कहानी

भोपाल: बेटियों को पराया धन कहा जाता है, लेकिन जब यही बेटियां परिवार का हाथ बंटाने के लिए पैसे कमाती है तो परिवार वालों का सर फक्र से ऊंचा हो उठता है. मध्य प्रदेश की बालाघाट जिले की रहने वाली एक ऐसी बेटी दूसरी लड़कियों के लिए मिसाल बन चुकी है. इस लड़की का नाम पूनम मेश्राम है और उसने लॉकडाउन के दौरान ठप हो चुके पिता के ऑटो चलाने के काम को फिर से पटरी पर लाने के लिए खुद पिता का ऑटो चलाने का फैसला लिया. अब पूनम ऑटो चलाने में माहिर है और उसकी इस ऑटो की सवारी में सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी करते हैं.

एमपी की बेटी की कहानी

ऑटो चलाकर पिता का सहारा बनती बालाघाट की यह बेटी

जिला मुख्यालय से तकरीबन 15 किमी दूर ग्राम हट्टा की निवासी पूनम मेश्राम ऑटो चलाकर अपने पिता का हाथ बंटा रही है. पूनम ने बताया कि लॉकडाउन होने के कारण घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी और कमाने वाले सिर्फ पिता ही थे. जिसके चलते उसने अपने पिता का हाथ बंटाया. ऑटो चलाने के साथ-साथ वह पढ़ाई भी करती है. रोज वह ऑटो में सवारी लेकर लिंगा से बालाघाट और हट्टा जाती है.

इसे भी पढ़ें: अतुल्य भारत : रेलवे के 'विस्टाडोम' डिब्बों से दिखेगा पश्चिमी घाट का मनमोहक नजारा

पूनम फराटे से चलाती है ऑटो

18 वर्षीय पूनम लिंगा से हट्टा के बीच ऑटो चलाती है. पूनम की 5 बहनें है. परिवार के गुजारे के लिए वह भी पिता का हाथ बंटाने लगी है. पूनम ने बताया कि वह 12वीं तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी है और कंप्यूटर में टेली का काम भी सीख रही है. वह हर दिन लिंगा से हट्टा तक अपने ऑटो में सवारी बैठाकर ले जाती है .हट्टा से वापस सवारी लेकर लिंगा आती है. जरूरी होने पर वह ऑटो लेकर बालाघाट तक भी आती है.

पूनम के इस काम में परिवार ने दिया साथ

पूनम ने बताया कि उसके ऑटो में केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी सवारी करते है और अब तक उसके साथ किसी ने भी गलत व्यवहार नहीं किया है. सभी ने उसे सराहा है. बेटियां पिता का दर्द और तकलीफ बेटों की तुलना में ज्यादा महसूस करती है और उसे दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं. पूनम भी अपने पिता की समस्या को अच्छी तरह से समझने लगी है और उसे पता चल गया है कि दो पैसे कमाने के लिए कितना परिश्रम करना पड़ता है.

बालाघाट जिले की पहली महिला ऑटो चालक बनी पूनम

एक शौक के तौर सम्पन्न घरों की महिलाओं और युवतियों को कार-जीप चलाते आसानी से देखा जा सकता है, लेकिन एक युवती को परिवार की गुजर-बसर के लिए दो पैसे कमाने के लिए ऑटो चलाकर सवारी ढोने का संघर्ष करते देखना प्रेरणादायक है. पूनम एक तरह से बालाघाट जिले की पहली महिला ऑटो चालक है. जो अपने ऑटो से सवारी ढोने का काम करती है. पूनम कहती है उन्हे ऑटो चलाने में कोई परेशानी नहीं होती अगर ऑटो खराब भी होता है तो दूसरे ऑटो चालक ही ऑटो सुधार देते है.

प्रेरणा है पूनम

पूनम के पिता का कहना वो कभी कबार ही ऑटो चलाने का काम करती है. पढ़ाई के साथ पूनम पांच बहनों का खर्च भी वहन कर रही है. पूनम के हाथ बंटाने से आर्थिक तौर पर काफी मदद मिल रही है.

भोपाल: बेटियों को पराया धन कहा जाता है, लेकिन जब यही बेटियां परिवार का हाथ बंटाने के लिए पैसे कमाती है तो परिवार वालों का सर फक्र से ऊंचा हो उठता है. मध्य प्रदेश की बालाघाट जिले की रहने वाली एक ऐसी बेटी दूसरी लड़कियों के लिए मिसाल बन चुकी है. इस लड़की का नाम पूनम मेश्राम है और उसने लॉकडाउन के दौरान ठप हो चुके पिता के ऑटो चलाने के काम को फिर से पटरी पर लाने के लिए खुद पिता का ऑटो चलाने का फैसला लिया. अब पूनम ऑटो चलाने में माहिर है और उसकी इस ऑटो की सवारी में सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी करते हैं.

एमपी की बेटी की कहानी

ऑटो चलाकर पिता का सहारा बनती बालाघाट की यह बेटी

जिला मुख्यालय से तकरीबन 15 किमी दूर ग्राम हट्टा की निवासी पूनम मेश्राम ऑटो चलाकर अपने पिता का हाथ बंटा रही है. पूनम ने बताया कि लॉकडाउन होने के कारण घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी और कमाने वाले सिर्फ पिता ही थे. जिसके चलते उसने अपने पिता का हाथ बंटाया. ऑटो चलाने के साथ-साथ वह पढ़ाई भी करती है. रोज वह ऑटो में सवारी लेकर लिंगा से बालाघाट और हट्टा जाती है.

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पूनम फराटे से चलाती है ऑटो

18 वर्षीय पूनम लिंगा से हट्टा के बीच ऑटो चलाती है. पूनम की 5 बहनें है. परिवार के गुजारे के लिए वह भी पिता का हाथ बंटाने लगी है. पूनम ने बताया कि वह 12वीं तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी है और कंप्यूटर में टेली का काम भी सीख रही है. वह हर दिन लिंगा से हट्टा तक अपने ऑटो में सवारी बैठाकर ले जाती है .हट्टा से वापस सवारी लेकर लिंगा आती है. जरूरी होने पर वह ऑटो लेकर बालाघाट तक भी आती है.

पूनम के इस काम में परिवार ने दिया साथ

पूनम ने बताया कि उसके ऑटो में केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी सवारी करते है और अब तक उसके साथ किसी ने भी गलत व्यवहार नहीं किया है. सभी ने उसे सराहा है. बेटियां पिता का दर्द और तकलीफ बेटों की तुलना में ज्यादा महसूस करती है और उसे दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं. पूनम भी अपने पिता की समस्या को अच्छी तरह से समझने लगी है और उसे पता चल गया है कि दो पैसे कमाने के लिए कितना परिश्रम करना पड़ता है.

बालाघाट जिले की पहली महिला ऑटो चालक बनी पूनम

एक शौक के तौर सम्पन्न घरों की महिलाओं और युवतियों को कार-जीप चलाते आसानी से देखा जा सकता है, लेकिन एक युवती को परिवार की गुजर-बसर के लिए दो पैसे कमाने के लिए ऑटो चलाकर सवारी ढोने का संघर्ष करते देखना प्रेरणादायक है. पूनम एक तरह से बालाघाट जिले की पहली महिला ऑटो चालक है. जो अपने ऑटो से सवारी ढोने का काम करती है. पूनम कहती है उन्हे ऑटो चलाने में कोई परेशानी नहीं होती अगर ऑटो खराब भी होता है तो दूसरे ऑटो चालक ही ऑटो सुधार देते है.

प्रेरणा है पूनम

पूनम के पिता का कहना वो कभी कबार ही ऑटो चलाने का काम करती है. पढ़ाई के साथ पूनम पांच बहनों का खर्च भी वहन कर रही है. पूनम के हाथ बंटाने से आर्थिक तौर पर काफी मदद मिल रही है.

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