रांची: हजारीबाग के बड़कागांव में 2015 में हुए कफन सत्याग्रह के दौरान हिंसा और उसमें दोषी बनाए गए झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री योगेंद्र साव और 2015 में वहां के तत्कालीन विधायक और योगेंद्र साव की पत्नी निर्मला देवी को 10-10 साल की सजा सुनाई गई है. 24 मार्च 2022 को कोर्ट ने जिस फैसले को लिखा है वह उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में एक ऐसा अध्याय जुड़ गया जिसमें ऐसा पहली बार हो रहा है जब किसी एक मामले में किसी राजनीतिक परिवार के पति और पत्नी दोनों को एक ही सजा सुनाई गई हो, वह भी 10 साल की. बिहार झारखंड की राजनीति का यह पहला मामला है, संभवत: पूरे देश में भी यह पहला मामला ही होगा, जिसमें किसी एक मामले में पति और पत्नी दोनों को तक 10-10 साल की सजा सुनाई गई हो.
दरअसल, 2015 में हजारीबाग के बड़कागांव में एनटीपीसी अपना प्लांट लगा रहा था, जिसका स्थानीय किसान विरोध कर रहे थे. उन तमाम स्थानीय लोगों के साथ झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री योगेंद्र साव और वहां की तत्कालीन विधायक निर्मला देवी कफन सत्याग्रह करते हुए पुलिस का विरोध करने लगे. हालांकि पुलिस ने विरोध कर रही बड़कागांव विधायक निर्मला देवी को गिरफ्तार कर लिया, जिसके बाद वहां की भीड़ उग्र हो गई और पुलिस से निर्मला देवी को छुड़ा लिया. इस हिंसक झड़प के बाद मामला ज्यादा बिगड़ गया और पुलिस ने फायरिंग की. जिसमें 4 ग्रामीणों की मौत हो गई थी और यह मामला जब अपने अंतिम परिणाम तक पहुंचा तो योगेंद्र साव और उनकी पत्नी निर्मला देवी को दोषी करार दिया गया. 22 मार्च को कोर्ट ने इन दोनों लोगों को दोषी करार दिया था और 24 मार्च को इन दोनों लोगों को 10-10 साल की सजा सुनाई गई.
बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का दबदबा हुआ करता था यह तब की बात है जब बिहार-झरखंड एक हुआ करता था. बिहार झारखंड अलग होने के बाद भी बिहार की राजनीति धनबल बाहुबल और जाति बल पर ही चलती रही. ऐसे में कई ऐसे नेता हुए जिन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हुए. उसमें आनंद मोहन, राजन तिवारी, सूरज भान सिंह, शहाबुद्दीन, सुनील पांडे, बोगो सिंह या फिर धनबाद में कोयले की लड़ाई में हुई बड़ी जंग के कई राजनीतिक घराने इनमें से हैं जिन लोगों को कोर्ट से सजा सुनाई गई लेकिन इस तमाम केसों में ऐसा नहीं रहा है, जिसमें पति और पत्नी दोनों एक धारा के तहत एक मामले में दोषी बनाए गए हो और उन्हें इतनी लंबी सजा दी गई हो.
देश में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम लागू होने के बाद इस नियम के तहत भ्रष्टाचार के आरोप में 5 साल से ऊपर की सजा पाने वाले पहले नेता लालू यादव बने थे. यह अधिनियम जब अपने वजूद में आया तो पूरे देश में लालू यादव पहले ऐसे नेता थे जिन पर इसी अधिनियम के तहत वे तमाम नियम लगाए गए जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत रखे गए थे. यह था 5 साल से ऊपर दोषी पाए जाने पर चुनाव नहीं लड़ना, सरकार से मिलने वाले तमाम सुख-सुविधाओं का खत्म हो जाना, यह सब कुछ शामिल है और यह बिहार में ही शुरू हुआ. 24 मार्च 2022 को कोर्ट ने जिस आदेश को सुनाया है यह भी देश की राजनीति में अनोखा ही है क्योंकि एक मामले में 10 साल से ऊपर की सजा भारतीय राजनीति में संभवत है, पति पत्नी को एक साथ मिला हो यह सुनने को नहीं मिला है.
बहरहाल कोर्ट ने बड़कागांव मामले में योगेंद्र साव और उनकी पत्नी निर्मला देवी को 10-10 साल की सश्रम कारावास की सजा सुना दी है. अगली अदालत में अपील होगी, सजा को लेकर दलील भी दी जाएगी. हालांकि विधानसभा में योगेंद्र साव और निर्मला देवी की बेटी अंबा प्रसाद विधायक हैं और अपने माता पिता को छुड़ाने के लिए हाथ में तख्ती लेकर पूरे दिन सदन में बैठी भी रहीं और यह भी कहा कि उनके साथ न्याय होना चाहिए. जांच की दिशा भी ठीक होनी चाहिए यह सब कुछ सियासत में चल रहा है और आगे कोर्ट में अपील भी होगी और बड़ी अदालतें इस पर कोई नया फैसला भी दे सकती हैं. लेकिन एक बात तो साफ है योगेंद्र साव और निर्मला देवी पर जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के मामले भी लागू होंगे साथ ही देश की राजनीति के लिए यह भी एक मिसाल बन गया, जिसमें एक केस में पति पत्नी को इतनी लंबी सजा दी गई हो.
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