कोलकाता : कालीघाट के प्रसिद्ध कालिका मंदिर के चार विशाल द्वारों पर भक्तों की भीड़ कलकत्ता की नगर देवी की एक झलक पाने के लिए व्याकुल है. इस दौरान मंदिर के बाहर बोर्ड पर मोटे अक्षरों में सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करने के लिए लिखे नियमों का बहुत कम ही लोग पालन करते नजर आए.
बंगाल, उत्तर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रामीणों और नगरवासियों से पंडों ने फूलों, मालाओं, मिठाइयों के डब्बे और नोट को प्रसाद के रूप में ले लिया क्योंकि पुलिसकर्मियों ने विशाल द्वार को बहुत धूमधाम से बंद कर दिया.
लोककथाओं में देवी मां को सौभाग्यदात्री माना जाता है. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ से लेकर मंदिर परिसर से कुछ ही दूरी पर रहने वाली राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक और आगामी भवानीपुर विधानसभा उपचुनाव में उनकी प्रतिद्वंद्वी व भाजपा उम्मीदवार प्रियंका टिबरेवाल तक, हर कोई यहां किसी न किसी दिन आता ही है.
सेबायित (वंशानुगत सेवक) की कार्यकारी परिषद के सचिव दीपांकर भट्टाचार्य (58) ने कहा कि यहां सब आते हैं. मंत्री, उद्योगपति, पुलिस आयुक्त, वैज्ञानिक, किसान, संत, पापी. कोई पुजारी रखता है तो कोई चुपचाप प्रार्थना करता है. मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूं कि माता सबकी सुनती हैं, उनसे बात करने के लिए आपको मंत्र या तंत्र की जरूरत नहीं है.
उन्होंने कहा कि चुनाव का समय व्यस्तता वाला होता है, नेता और उनके समर्थक नियमित रूप से आपको यहां नजर आएंगे. हालांकि कम्युनिस्ट बंगाल के उन कुछ राजनेताओं में से थे, जिन्होंने अपनी नास्तिक छवि को साबित करने के लिए मंदिर से दूर रहने का विकल्प चुना था. राजनीतिक विश्लेषक और विचारक संस्था कलकत्ता रिसर्च ग्रुप के सदस्य रजत रॉय ने कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु कभी कालीघाट नहीं गए, लेकिन उनकी पत्नी यहां आया करती थीं.
कम्युनिस्ट नेताओं के बारे में हालांकि ऐसी अपुष्ट अफवाहें हैं कि वे मीडियाकर्मियों की नजरों से बचते हुए आधी रात के वक्त मंदिर जाते थे. चटर्जी ने कहा कि समय के साथ साल दर साल श्रद्धालुओं की कतार कम होने के बजाय, बढ़ते चले गए. अपने सभी वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर नई तकनीकी पीढ़ी ने उत्साहपूर्वक मां की पूजा की है.
इतिहासकारों का कहना है कि काली एक स्थानीय जनजातीय देवी थीं जिन्हें हिंदू पंथ में भी शामिल किया गया था और दुर्गा से जुड़े शाक्त संप्रदाय की पीठासीन देवियों में से एक बनी. 1990 के दशक में देश के आर्थिक हालात में सुधार शुरू होने के दौरान देवी के उपासकों की संख्या और धार्मिकता भी बढ़ी.
चटर्जी हालांकि इस तर्क से कन्नी काटते नजर आए कि पिछले कुछ वर्षों में देश जिस आर्थिक तंगी और दयनीय अर्थव्यवस्था का सामना कर रहा है, उसने भी नए श्रद्धालुओं को जन्म दिया है, जिन्हें महामारी भी घर पर नहीं रख पाई है.
यह भी पढ़ें-UP Assembly Election : सभी दलों के लिए अयोध्या व राम मंदिर चुनावी समर में खासे अहम
उन्होंने कहा कि यहां आने वालों में उन लोगों की भी बड़ी संख्या होती है जो परेशान रहते हैं और ऐसा लगता है कि समस्याएं बढ़ गई हैं. दक्षिण काली कहे जाने वाली देवी की तीन आंखें, एक विशाल सुनहरी जीभ और चार सुनहरे हाथ हैं. उनके एक हाथ में तलवार है जो ज्ञान का प्रतीक है और दूसरे में एक असुर मुंड, जो अहंकार को दर्शाता है, जिसका शमन किया जाना चाहिए. दो अन्य हाथ अभय (भय को दूर करने वाले) और वरद (करुणा) मुद्रा में हैं.
(पीटीआई-भाषा)