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पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम के राजनीतिक सफर पर एक नजर - सुखराम के राजनीतिक सफर पर एक नजर

पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम (pandit sukh ram passes away) का निधन हो गया है. सुखराम ने सदर विधानसभा क्षेत्र से 13 बार चुनाव लड़े और हर बार जीत हासिल की. इसके साथ ही उन्होंने लोकसभा के चुनाव भी (political journey of pandit sukh ram) लड़े और केंद्र में अलग-अलग मंत्री पद पर आसीन हुए. 1984 में सुखराम ने कांग्रेस के टिकट से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था और भारी बहुमत से जीत कर संसद पहुंचे.

पंडित सुखराम के राजनीतिक सफर पर एक नजर
पंडित सुखराम के राजनीतिक सफर पर एक नजर
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Published : May 11, 2022, 7:55 AM IST

मंडी: हिमाचल में राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले वाले पंडित सुखराम ((pandit sukh ram passes away) का निधन हो गया है. पंडित सुखराम 95 वर्ष के थे. प्रदेश समेत देश की राजनीति में सुखराम (political journey of pandit sukh ram) का प्रभाव रहा है. केंद्र सरकार में सुखराम मंत्री पद पर भी आसीन रहे हैं. प्रदेश और देश में संचार क्रांति के लिए भी इन्हें जाना जाता है. हालांकि केंद्र में दूरसंचार मंत्री रहते हुए सुखराम पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे.

सुखराम ने सदर विधानसभा क्षेत्र (Mandi Sadar Assembly Constituency) से 13 बार चुनाव लड़े और हर बार जीत हासिल की. इसके साथ ही उन्होंने लोकसभा के चुनाव भी लड़े और केंद्र में अलग-अलग मंत्री पद पर आसीन हुए. 1984 में सुखराम ने कांग्रेस के टिकट से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था और भारी बहुमत से जीत कर संसद पहुंचे.

1989 के लोकसभा चुनाव में सुखराम को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा के महेश्वर सिंह जीतकर संसद पहुंचे. 1991 के लोकसभा चुनाव में सुखराम ने महेश्वर सिंह को हराकर संसद में कदम रखा. 1996 में सुखराम फिर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे.

1998 में पंडित सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) के नाम से अपनी पार्टी बनाई. हालांकि हिविकां लोकसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर पाई और उनकी पार्टी से सिर्फ कर्नल धनीराम शांडिल ही जीतकर संसद पहुंच पाए.

हिविकां ने प्रदेश की राजनीति में खूब चर्चा बटोरी. 1998 के चुनाव में हिविकां ने 5 सीटें जीती. भाजपा-कांग्रेस के पाले में 31-31 सीटें आई. जिसके बाद सरकार बनाने के लिए हिविकां ने अहम रोल निभाया. हिविकां ने भाजपा को समर्थन दिया. वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बनने से चूक गए और प्रेम कुमार धूमल पहली बार सीएम के पद पर आसीन हुए.

पंडित सुखराम ने 2003 में अपना आखिरी विधानसभा का चुनाव लड़ा और फिर 2007 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अनिल शर्मा को सौंप दी. 2017 के विधानसभा चुनाव में पंडित सुखराम परिवार ने बीजेपी का दामन थाम लिया और अनिल शर्मा ने बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा और जीते भी. उन्हें जयराम सरकार में मंत्री पद भी मिला.

लोकसभा चुनाव 2019 में पंडित सुखराम पोते आश्रय को टिकट दिलाने के लिए फिर से कांग्रेस में शामिल हुए. आश्रय के कांग्रेस में जाने के बाद जयराम सरकार से अनिल शर्मा ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है और मंत्री पद की सारी सुविधाएं उनसे वापस ले ली गई है.

ये भी पढ़ें: पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम का निधन

मंडी: हिमाचल में राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले वाले पंडित सुखराम ((pandit sukh ram passes away) का निधन हो गया है. पंडित सुखराम 95 वर्ष के थे. प्रदेश समेत देश की राजनीति में सुखराम (political journey of pandit sukh ram) का प्रभाव रहा है. केंद्र सरकार में सुखराम मंत्री पद पर भी आसीन रहे हैं. प्रदेश और देश में संचार क्रांति के लिए भी इन्हें जाना जाता है. हालांकि केंद्र में दूरसंचार मंत्री रहते हुए सुखराम पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे.

सुखराम ने सदर विधानसभा क्षेत्र (Mandi Sadar Assembly Constituency) से 13 बार चुनाव लड़े और हर बार जीत हासिल की. इसके साथ ही उन्होंने लोकसभा के चुनाव भी लड़े और केंद्र में अलग-अलग मंत्री पद पर आसीन हुए. 1984 में सुखराम ने कांग्रेस के टिकट से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था और भारी बहुमत से जीत कर संसद पहुंचे.

1989 के लोकसभा चुनाव में सुखराम को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा के महेश्वर सिंह जीतकर संसद पहुंचे. 1991 के लोकसभा चुनाव में सुखराम ने महेश्वर सिंह को हराकर संसद में कदम रखा. 1996 में सुखराम फिर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे.

1998 में पंडित सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) के नाम से अपनी पार्टी बनाई. हालांकि हिविकां लोकसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर पाई और उनकी पार्टी से सिर्फ कर्नल धनीराम शांडिल ही जीतकर संसद पहुंच पाए.

हिविकां ने प्रदेश की राजनीति में खूब चर्चा बटोरी. 1998 के चुनाव में हिविकां ने 5 सीटें जीती. भाजपा-कांग्रेस के पाले में 31-31 सीटें आई. जिसके बाद सरकार बनाने के लिए हिविकां ने अहम रोल निभाया. हिविकां ने भाजपा को समर्थन दिया. वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बनने से चूक गए और प्रेम कुमार धूमल पहली बार सीएम के पद पर आसीन हुए.

पंडित सुखराम ने 2003 में अपना आखिरी विधानसभा का चुनाव लड़ा और फिर 2007 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अनिल शर्मा को सौंप दी. 2017 के विधानसभा चुनाव में पंडित सुखराम परिवार ने बीजेपी का दामन थाम लिया और अनिल शर्मा ने बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा और जीते भी. उन्हें जयराम सरकार में मंत्री पद भी मिला.

लोकसभा चुनाव 2019 में पंडित सुखराम पोते आश्रय को टिकट दिलाने के लिए फिर से कांग्रेस में शामिल हुए. आश्रय के कांग्रेस में जाने के बाद जयराम सरकार से अनिल शर्मा ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है और मंत्री पद की सारी सुविधाएं उनसे वापस ले ली गई है.

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