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नागपुर : वेश्यावृत्ति पर रोक के पुलिस के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती - यौनकर्मियों का मौलिक अधिकार

शहर के गंगा जमुना क्षेत्र में वेश्यावृत्ति पर स्थायी रोक लगाने के पुलिस आयुक्त के आदेश को बंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है जिस पर अदालत की नागपुर पीठ ने निर्देश दिया कि रिट याचिका को जनहित याचिका के रूप में दर्ज किया जाए.

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Published : Oct 26, 2021, 10:02 PM IST

नागपुर : याचिकाकर्ता मुकेश शाहू ने अपने वकीलों- चंद्रशेखर सखारे और प्रीति फड़के के माध्यम से नागपुर पुलिस आयुक्त की अधिसूचना को चुनौती देते हुए दावा किया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि 'खोलियों' या अधिसूचित क्षेत्रों के कमरों में रहने का अधिकार वेश्याओं/यौनकर्मियों का मौलिक अधिकार है और कानून के अनुपालन को छोड़कर, उन्हें उनके निवास में रहने से नहीं रोका जा सकता है.

इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि केवल इस वजह से कि ये महिलाएं वेश्यावृत्ति के धंधे में हैं, उन्हें उनके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय को अधिसूचना रद्द करनी चाहिए और पुलिस को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह वेश्याओं के कमरों में उनकी अनुमति या वैध वारंट के बिना प्रवेश नहीं करे.

न्यायमूर्ति सुनील शुक्रे और न्यायमूर्ति अनिल पानसरे की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि रिट याचिका को जनहित याचिका के रूप में दर्ज किया जाए. मामला 17 नवंबर को सुनवाई के लिए आएगा.

पढ़ें : ST/SC को पदोन्नति में आरक्षण देने के मुद्दे पर न्यायालय ने सुरक्षित रखा फैसला

(पीटीआई-भाषा)

नागपुर : याचिकाकर्ता मुकेश शाहू ने अपने वकीलों- चंद्रशेखर सखारे और प्रीति फड़के के माध्यम से नागपुर पुलिस आयुक्त की अधिसूचना को चुनौती देते हुए दावा किया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि 'खोलियों' या अधिसूचित क्षेत्रों के कमरों में रहने का अधिकार वेश्याओं/यौनकर्मियों का मौलिक अधिकार है और कानून के अनुपालन को छोड़कर, उन्हें उनके निवास में रहने से नहीं रोका जा सकता है.

इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि केवल इस वजह से कि ये महिलाएं वेश्यावृत्ति के धंधे में हैं, उन्हें उनके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय को अधिसूचना रद्द करनी चाहिए और पुलिस को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह वेश्याओं के कमरों में उनकी अनुमति या वैध वारंट के बिना प्रवेश नहीं करे.

न्यायमूर्ति सुनील शुक्रे और न्यायमूर्ति अनिल पानसरे की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि रिट याचिका को जनहित याचिका के रूप में दर्ज किया जाए. मामला 17 नवंबर को सुनवाई के लिए आएगा.

पढ़ें : ST/SC को पदोन्नति में आरक्षण देने के मुद्दे पर न्यायालय ने सुरक्षित रखा फैसला

(पीटीआई-भाषा)

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