मुंबई : पॉक्सो एक्ट के एक मामले में कोर्ट ने आरोपी को इसलिए बरी कर दिया क्योंकि पीड़िता अभियोजन का सहयोग नहीं कर रही था. मालमे की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष ने जो जन्म प्रमाण पत्र पेश किया, वह साक्ष्य पीड़िता द्वारा समर्थित नहीं था, इसलिए यह पूर्ण प्रमाण नहीं हो सकता कि पीड़िता नाबालिग थी.
यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत एक विशेष अदालत ने हाल ही में एक महिला के बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को बरी कर दिया. जब महिला ने कहा कि वह आरोपी (महाराष्ट्र राज्य बनाम जैकब मुथुस्वामी नायडू) के खिलाफ मामले को आगे नहीं बढ़ाना नहीं चाहती है.
मुंबई के डिंडोशी में विशेष न्यायाधीश एचसी शेंडे ने कहा कि बलात्कार या यौन उत्पीड़न के मामले में पीड़िता अभियोजन पक्ष की मुख्य गवाह है क्योंकि उसकी एकमात्र गवाही आरोपी को दोषी ठहराने के लिए भरोसेमंद है.
यदि पीड़िता अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन नहीं कर रही है कि आरोपी ने उसके साथ बलात्कार किया है तो यह कहना अन्यायपूर्ण होगा कि वह आरोपी, पीड़ित लड़की के यौन उत्पीड़न का दोषी है.
अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में अभियोजन पक्ष के गवाहों (पीड़ित और उसकी मां) के गैर-सहायक रवैये के कारण आरोपी के खिलाफ कुछ भी रिकार्ड में नहीं आ सका है. इसलिए विशेष न्यायाधीश ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) और पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराधों के लिए आरोपी को बरी करने का निर्णय दिया.
यह है पूरा मामला
मामला यह था कि 17 वर्षीय नाबालिग जनवरी 2019 में आरोपी से मिली और कुछ मुलाकातों के बाद आरोपी के आवास पर उसे बुलाया गया. जहां आरोपी ने उसे प्रपोज किया और बाद में दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. मार्च 2019 में पीड़िता को मासिक धर्म नहीं आया.
हालांकि उसे संदेह था कि यह इसलिए हुआ क्योंकि वह पीलिया से पीड़ित थी. तब उसने कोई कार्रवाई नहीं की लेकिन जून 2019 में उसे पता चला कि वह 24 सप्ताह की गर्भवती है. तब पीड़िता की मां ने सांताक्रूज पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई.
सुनवाई के दौरान आरोपी जैकब नायडू ने अपने खिलाफ लगे सभी आरोपों से इनकार किया. उसने तर्क दिया कि उसे दोनों के बीच गलतफहमी में फंसाया गया है और प्रस्तुत किया कि वह और पीड़िता एक-दूसरे से शादी कर चुके हैं और खुशी से रह रहे थे. पीड़िता ने यह भी कहा कि वह कभी शिकायत दर्ज कराने थाने नहीं गई.
उसने गवाही दी कि उसने अक्टूबर 2019 में नायडू से शादी की थी और उनकी एक बेटी है. उसने स्पष्ट रूप से कहा कि उसे नायडू के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है और वह उसके खिलाफ मामला आगे नहीं बढ़ाना चाहती. इसके बाद उनकी मां ने भी केस से अपना समर्थन वापस ले लिया.
पीड़िता की उम्र के संबंध में अभियोजन पक्ष ने जन्म प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया लेकिन कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह मुख्य गवाहों के साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि यह एक पूर्ण प्रमाण है कि पीड़िता संबंधित मामले में उस समय नाबालिग थी.
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इसलिए अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे यह साबित करने में विफल रहा कि अपराध के समय पीड़िता नाबालिग थी. इसलिए POCSO अधिनियम के तहत अपराध नहीं बनता. अदालत ने आरोपी को बरी करते हुए आदेश दिया कि अभियोजन पक्ष को गवाह के खिलाफ कानूनी कदम उठाने का निर्देश दिया जाता है, जिसने अभियोजन पक्ष के अनुसार अभियोजन मामले का समर्थन नहीं किया.