ETV Bharat / bharat

Change Constitution : संविधान बदलने का दिया सुझाव, भड़का विपक्ष

पीएम मोदी के आर्थिक सलाहकार बिबेक देबरॉय (Bibek Debroy) ने संविधान बदलने की बात कही है, जिसके बाद से विपक्ष निशाना साध रहा है. कांग्रेस, जेडीएस, आरजेडी इसे लेकर आलोचना कर रहे हैं.

Etv Bharat
पीएम मोदी के आर्थिक सलाहकार बिबेक देबरॉय
author img

By

Published : Aug 17, 2023, 4:42 PM IST

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन बिबेक देबरॉय (Bibek Debroy) का एक लेख सामने आने के बाद से कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां हमलावर हैं. दरअसल देबरॉय ने एक लेख लिखा है जिसमें देश में नए संविधान की जरूरत बताई है.

जयराम रमेश का ट्वीट
जयराम रमेश का ट्वीट

इसे मुद्दे को भाजपा और संघ से जोड़ते हुए कांग्रेस ने निशाना साधा है. कांग्रेस ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष ने संविधान को खत्म करने का बिगुल बजा दिया है, जो हमेशा से संघ परिवार का एजेंडा रहा है.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि 'यह हमेशा संघ परिवार का एजेंडा रहा है. सावधान रहें, भारत!' रमेश ने कहा, 'इस 77वें स्वतंत्रता दिवस पर, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष ने संविधान को खत्म करने का बिगुल बजा दिया है - जिसके डॉ. अंबेडकर प्रमुख वास्तुकार थे. वह चाहते हैं कि देश एक बिल्कुल नए संविधान को अपनाए.'

कांग्रेस ही नहीं, आरजेडी और जेडीयू भी इसे लेकर हमलावर हैं. जेडीयू के राष्ट्रीय सचिव राजीव रंजन ने कहा, बिबेक देबरॉय ने भाजपा और आरएसएस की घृणित सोच को फिर सामने ला दिया है.

साथ ही चेतावनी दी कि इस तरह की कोशिशों को भारत की जनता स्वीकार नहीं करेगी. राजीव रंजन ने बिबेक देबरॉय पर निशाना साधते हुए कहा कि वह चाटुकारिता कर रहे हैं. जेडीयू नेता ने कहा, देबरॉय आर्थिक नीतियों पर विचार व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं और जिन विषयों की उनको जानकारी नहीं है उन पर चर्चा कर रहे हैं.

उधर, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता, राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि ये देबरॉय के शब्द नहीं है बल्कि उनसे कहलवाया गया है. झा ने कहा कि संविधान बदलने की जरूरत नहीं है बल्कि विधान बदलने की जरूरत है.

लेख में क्या? अपने लेख में देबरॉय ने लिखा, 'हमारा वर्तमान संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है. इस अर्थ में, यह एक औपनिवेशिक विरासत भी है. 2002 में कामकाज की समीक्षा के लिए गठित एक आयोग ने एक रिपोर्ट दी थी लेकिन यह आधे-अधूरे मन से किया गया प्रयास था

उन्होंने कहा कि ''कानून सुधार के कई पहलुओं की तरह, यहां एक बदलाव और वहां दूसरा काम नहीं करेगा. हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए, जैसा कि संविधान सभा की बहसों में होता है. 2047 के लिए भारत को किस संविधान की आवश्यकता है?.'

देबरॉय ने कहा, 'हम जो भी बहस करते हैं उसका अधिकांश हिस्सा संविधान के साथ शुरू और समाप्त होता है. कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा. हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और पहले सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में इन शब्दों का अब क्या मतलब है: समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक , न्याय, स्वतंत्रता और समानता. हम लोगों को खुद को एक नया संविधान देना होगा.'

ये भी पढ़ें-

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन बिबेक देबरॉय (Bibek Debroy) का एक लेख सामने आने के बाद से कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां हमलावर हैं. दरअसल देबरॉय ने एक लेख लिखा है जिसमें देश में नए संविधान की जरूरत बताई है.

जयराम रमेश का ट्वीट
जयराम रमेश का ट्वीट

इसे मुद्दे को भाजपा और संघ से जोड़ते हुए कांग्रेस ने निशाना साधा है. कांग्रेस ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष ने संविधान को खत्म करने का बिगुल बजा दिया है, जो हमेशा से संघ परिवार का एजेंडा रहा है.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि 'यह हमेशा संघ परिवार का एजेंडा रहा है. सावधान रहें, भारत!' रमेश ने कहा, 'इस 77वें स्वतंत्रता दिवस पर, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष ने संविधान को खत्म करने का बिगुल बजा दिया है - जिसके डॉ. अंबेडकर प्रमुख वास्तुकार थे. वह चाहते हैं कि देश एक बिल्कुल नए संविधान को अपनाए.'

कांग्रेस ही नहीं, आरजेडी और जेडीयू भी इसे लेकर हमलावर हैं. जेडीयू के राष्ट्रीय सचिव राजीव रंजन ने कहा, बिबेक देबरॉय ने भाजपा और आरएसएस की घृणित सोच को फिर सामने ला दिया है.

साथ ही चेतावनी दी कि इस तरह की कोशिशों को भारत की जनता स्वीकार नहीं करेगी. राजीव रंजन ने बिबेक देबरॉय पर निशाना साधते हुए कहा कि वह चाटुकारिता कर रहे हैं. जेडीयू नेता ने कहा, देबरॉय आर्थिक नीतियों पर विचार व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं और जिन विषयों की उनको जानकारी नहीं है उन पर चर्चा कर रहे हैं.

उधर, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता, राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि ये देबरॉय के शब्द नहीं है बल्कि उनसे कहलवाया गया है. झा ने कहा कि संविधान बदलने की जरूरत नहीं है बल्कि विधान बदलने की जरूरत है.

लेख में क्या? अपने लेख में देबरॉय ने लिखा, 'हमारा वर्तमान संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है. इस अर्थ में, यह एक औपनिवेशिक विरासत भी है. 2002 में कामकाज की समीक्षा के लिए गठित एक आयोग ने एक रिपोर्ट दी थी लेकिन यह आधे-अधूरे मन से किया गया प्रयास था

उन्होंने कहा कि ''कानून सुधार के कई पहलुओं की तरह, यहां एक बदलाव और वहां दूसरा काम नहीं करेगा. हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए, जैसा कि संविधान सभा की बहसों में होता है. 2047 के लिए भारत को किस संविधान की आवश्यकता है?.'

देबरॉय ने कहा, 'हम जो भी बहस करते हैं उसका अधिकांश हिस्सा संविधान के साथ शुरू और समाप्त होता है. कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा. हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और पहले सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में इन शब्दों का अब क्या मतलब है: समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक , न्याय, स्वतंत्रता और समानता. हम लोगों को खुद को एक नया संविधान देना होगा.'

ये भी पढ़ें-

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.