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SC electoral bonds scheme: सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड योजना संबंधी याचिकाओं पर 31 अक्टूबर को अंतिम सुनवाई - चुनावी बांड योजना पर 31 अक्टूबर को सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट चुनावी बांड योजना पर दायर की गई याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई करने का फैसला किया है. याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वकील प्रशांत भूषण कर रहे हैं.

Pleas against electoral bonds scheme, SC to begin final hearing on October 31
सुप्रीम कोर्ट चुनावी बांड योजना संबंधी याचिकाओं पर 31 अक्टूबर को सुनवाई शुरू करेगा
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 10, 2023, 1:15 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह राजनीतिक फंडिंग के स्रोत के रूप में केंद्र की चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर 31 अक्टूबर और एक नवंबर को अंतिम सुनवाई शुरू करेगा. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह इस मामले पर 31 अक्टूबर को अंतिम सुनवाई शुरू करेगी. अगर कोई विवाद हुआ तो सुनवाई एक नवंबर को जारी रहेगी.

आज सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि तीन आधार हैं जिन पर चुनावी बांड योजना को चुनौती दी गई है - पहला, यह तथ्य कि यह एक धन विधेयक पारित किया गया था. चुनावी बांड एक गुमनाम स्रोत है जिसे राजनीतिक दलों को फंडिंग के लिए वैध कर दिया गया है. गुमनाम फंडिंग नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है. यह भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देता है, क्योंकि राजनीतिक दलों को बड़ी मात्रा में धन उन कंपनियों से आता है जिन्हें उनसे कुछ लाभ प्राप्त हुआ है. भूषण ने जोर देकर कहा, 'यह एक उपकरण है जो देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है.'

मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया: क्या फंडिंग का स्रोत बैंकिंग चैनलों के माध्यम से होता है? योजना कैसे काम करती है? चुनावी बांड की खरीद बैंक हस्तांतरण या नकद के माध्यम से होती है? भूषण ने कहा कि दोनों को अनुमति है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि अगर यह बैंक हस्तांतरण के माध्यम से है तो खरीदार को गुमनाम माना जाएगा. भूषण ने कहा कि स्रोत भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को पता है और वे इसका खुलासा नहीं करेंगे और कुल राशि 10,000 रुपये से 1 करोड़ रुपये तक हो सकती है.

एक अन्य याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील शदान फरासत ने कहा कि खरीदारी आमतौर पर नकदी के माध्यम से नहीं होती है और आपको एक निश्चित निर्दिष्ट बैंक खाते में खाता रखना होगा और केवल बैंक हस्तांतरण से ही ऐसा किया जा सकता है. फरासत ने कहा कि चुनावी बांड के खरीदार की पहचान गुमनाम रखी जाती है. वास्तविक गुमनामी तब होती है जब आप किसी राजनीतिक दल में स्थानांतरित होते हैं. कौन किस राजनीतिक दल में स्थानांतरित हुआ है, यह सार्वजनिक डोमेन से अज्ञात है. यही हमारी ओर से असली चुनौती है.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि चुनावी बांड एक वाहक बांड की तरह है. क्या यह बांड व्यक्ति के नाम पर है या यह सिर्फ एक वाहक बांड की तरह है? वह व्यक्ति किसी को भी ट्रांसफर कर सकता है? भूषण ने कहा कि इसे राजनीतिक दलों को हस्तांतरित कर दिया गया है. फरासत ने कहा कि जो पार्टी चुनावी बांड भुनाने की हकदार है, उसे एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल होना चाहिए.

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील संजय हेज ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि टाइगर इन्वेस्टमेंट्स के पास अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम में कई कंपनियां हो सकती हैं और हो सकता है कि कोई भी इसे नियंत्रित नहीं कर रहा हो. उन्हें विभिन्न राउंड-ट्रिपिंग मार्गों के माध्यम से विदेशों से पैसा मिलता है. हेज ने तर्क दिया कि टाइगर इन्वेस्टमेंट एक भारतीय कंपनी है. यह चुनावी बांड खरीदती है और दान देती है. दान का स्रोत ज्ञात नहीं है और जिस भी राजनीतिक दल को यह मिलता है, वह धन्यवाद कहता है.

ये भी पढ़ें- चुनावी बॉन्ड योजना के विरुद्ध दायर याचिकाओं पर जनवरी के अंतिम हफ्ते में सुनवाई

मुख्य न्यायाधीश ने उत्तर दिया, 'आपके उदाहरण में, टाइगर इन्वेस्टमेंट्स चुनावी बांड खरीदता है. गुमनामी है लेकिन फंडिंग के स्रोत के संबंध में इसे अपने कर में बताना होगा. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'मान लीजिए यह एक करोड़ रुपये का योगदान दे रहा है. सबसे पहले यह सामान्य बैंकिंग चैनलों के माध्यम से एसबीआई को एक करोड़ रुपये हस्तांतरित करता है, और अब टाइगर को अपने मूल्यांकन में अपने आईटीओ को यह बताना होगा कि एक करोड़ रुपये कहां से आए? हेज ने राउंड-ट्रिपिंग पर जोर दिया.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह राजनीतिक फंडिंग के स्रोत के रूप में केंद्र की चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर 31 अक्टूबर और एक नवंबर को अंतिम सुनवाई शुरू करेगा. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह इस मामले पर 31 अक्टूबर को अंतिम सुनवाई शुरू करेगी. अगर कोई विवाद हुआ तो सुनवाई एक नवंबर को जारी रहेगी.

आज सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि तीन आधार हैं जिन पर चुनावी बांड योजना को चुनौती दी गई है - पहला, यह तथ्य कि यह एक धन विधेयक पारित किया गया था. चुनावी बांड एक गुमनाम स्रोत है जिसे राजनीतिक दलों को फंडिंग के लिए वैध कर दिया गया है. गुमनाम फंडिंग नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है. यह भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देता है, क्योंकि राजनीतिक दलों को बड़ी मात्रा में धन उन कंपनियों से आता है जिन्हें उनसे कुछ लाभ प्राप्त हुआ है. भूषण ने जोर देकर कहा, 'यह एक उपकरण है जो देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है.'

मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया: क्या फंडिंग का स्रोत बैंकिंग चैनलों के माध्यम से होता है? योजना कैसे काम करती है? चुनावी बांड की खरीद बैंक हस्तांतरण या नकद के माध्यम से होती है? भूषण ने कहा कि दोनों को अनुमति है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि अगर यह बैंक हस्तांतरण के माध्यम से है तो खरीदार को गुमनाम माना जाएगा. भूषण ने कहा कि स्रोत भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को पता है और वे इसका खुलासा नहीं करेंगे और कुल राशि 10,000 रुपये से 1 करोड़ रुपये तक हो सकती है.

एक अन्य याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील शदान फरासत ने कहा कि खरीदारी आमतौर पर नकदी के माध्यम से नहीं होती है और आपको एक निश्चित निर्दिष्ट बैंक खाते में खाता रखना होगा और केवल बैंक हस्तांतरण से ही ऐसा किया जा सकता है. फरासत ने कहा कि चुनावी बांड के खरीदार की पहचान गुमनाम रखी जाती है. वास्तविक गुमनामी तब होती है जब आप किसी राजनीतिक दल में स्थानांतरित होते हैं. कौन किस राजनीतिक दल में स्थानांतरित हुआ है, यह सार्वजनिक डोमेन से अज्ञात है. यही हमारी ओर से असली चुनौती है.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि चुनावी बांड एक वाहक बांड की तरह है. क्या यह बांड व्यक्ति के नाम पर है या यह सिर्फ एक वाहक बांड की तरह है? वह व्यक्ति किसी को भी ट्रांसफर कर सकता है? भूषण ने कहा कि इसे राजनीतिक दलों को हस्तांतरित कर दिया गया है. फरासत ने कहा कि जो पार्टी चुनावी बांड भुनाने की हकदार है, उसे एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल होना चाहिए.

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील संजय हेज ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि टाइगर इन्वेस्टमेंट्स के पास अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम में कई कंपनियां हो सकती हैं और हो सकता है कि कोई भी इसे नियंत्रित नहीं कर रहा हो. उन्हें विभिन्न राउंड-ट्रिपिंग मार्गों के माध्यम से विदेशों से पैसा मिलता है. हेज ने तर्क दिया कि टाइगर इन्वेस्टमेंट एक भारतीय कंपनी है. यह चुनावी बांड खरीदती है और दान देती है. दान का स्रोत ज्ञात नहीं है और जिस भी राजनीतिक दल को यह मिलता है, वह धन्यवाद कहता है.

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मुख्य न्यायाधीश ने उत्तर दिया, 'आपके उदाहरण में, टाइगर इन्वेस्टमेंट्स चुनावी बांड खरीदता है. गुमनामी है लेकिन फंडिंग के स्रोत के संबंध में इसे अपने कर में बताना होगा. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'मान लीजिए यह एक करोड़ रुपये का योगदान दे रहा है. सबसे पहले यह सामान्य बैंकिंग चैनलों के माध्यम से एसबीआई को एक करोड़ रुपये हस्तांतरित करता है, और अब टाइगर को अपने मूल्यांकन में अपने आईटीओ को यह बताना होगा कि एक करोड़ रुपये कहां से आए? हेज ने राउंड-ट्रिपिंग पर जोर दिया.

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