नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश, यूयू ललित की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच 31 अक्टूबर को हर जिले में भ्रष्टाचार रोधी न्यायालय की स्थापना की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करेगी. भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा याचिका दायर की गई है, जिन्होंने तर्क दिया है कि केंद्र और राज्यों ने भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए उचित कदम नहीं उठाए हैं और कोई भी कल्याणकारी योजना और सरकारी विभाग भ्रष्टाचार मुक्त नहीं चलता है.
उन्होंने कहा कि यह नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है जो सम्मान के साथ कानून और जीवन के शासन की बात करता है. याचिका में कहा गया कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के कारण, हम जीवन की गुणवत्ता सूचकांक में 43 वें स्थान पर हैं. वहीं, लोकतंत्र सूचकांक में 51, कानून के शासन में 68, वायु गुणवत्ता सूचकांक में 84, भूख सूचकांक में 102, मानव पूंजी सूचकांक में 115, लिंग भेदभाव में 125, जीवन प्रत्याशा सूचकांक में 130, 134 युवा विकास सूचकांक में, वैश्विक शांति सूचकांक में 136, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में 139, प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 142, वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में 144, शिक्षा सूचकांक में 145, साक्षरता दर में 168 और साक्षरता दर में 168 और पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में 177 है.
याचिका में कहा गया है कि केंद्र और राज्यों के बजट का लगभग 10% काला धन बन जाता है. सरकार 100 रुपये से ऊपर की मुद्रा को वापस लेकर, 5000 रुपये से अधिक के नकद लेनदेन को प्रतिबंधित करके, 50,000 रुपये से अधिक की संपत्ति को आधार से जोड़कर और 100% काला धन जब्त करके, संपत्ति और लुटेरों को उम्रकैद की सजा देकर इसे बचा सकती है.
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याचिकाकर्ता का तर्क है कि भ्रष्टाचार के कारण आर्थिक प्रदर्शन कम है और यह संपूर्ण सार्वजनिक वितरण को बाधित करता है और साथ ही गरीबों को गंभीर चोट पहुंचाता है. याचिका में केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को काले धन, बेनामी संपत्ति, रिश्वत, मनी लॉन्ड्रिंग, तस्करी आदि से संबंधित मामलों का फैसला करने के लिए हर जिले में भ्रष्टाचार रोधी अदालतें स्थापित करने के निर्देश देने की मांग की गई है. इसके अलावा उच्च न्यायालयों को यह निर्देश देने की मांग की गयी है कि एक साल के भीतर ऐसे मामलों के निपटारे के लिए कदम उठाएं.