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भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखने संबंधी याचिका, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को भेजा नोटिस - संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है

सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर केन्द्र और कुछ राज्यों से इस बारे में जवाब मांगा है जिसमें भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रावधानों को निरस्त किये जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Feb 11, 2021, 9:59 AM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने उस याचिका पर केन्द्र और कुछ राज्यों से जवाब मांगा है जिसमें भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रावधानों को निरस्त किये जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

याचिका में कहा गया है कि इन प्रावधानों के चलते लोगों के पास भीख मांगकर अपराध करने या भूखा मरने का 'अनुचित विकल्प' ही बचेगा.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर एस रेड्डी की एक पीठ ने नोटिस जारी करते हुए केन्द्र के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और बिहार से याचिका पर जवाब मांगे है. याचिका में दावा किया गया है कि भीख मांगने को अपराध बनाने संबंधी धाराएं संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है.

पढ़ें : केंद्र सरकार की नौकरियों के नाम पर ठगी करने वाले तीन गिरफ्तार

पीठ ने मेरठ निवासी विशाल पाठक द्वारा दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए कहा, 'जारी किये गये नोटिसों पर छह सप्ताह में जवाब देने को कहा गया है.'

अधिवक्ता एचके चतुर्वेदी द्वारा दाखिल याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के अगस्त 2018 के उस फैसले का जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया था राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगना अब अपराध नहीं होगा.

इसमें कहा गया है कि बम्बई भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम, 1959 के प्रावधान, जिनमें भीख मांगने को एक अपराध के रूप में माना गया है, संवैधानिक रूप से नहीं टिक सकते हैं.

उच्चतम न्यायालय में दाखिल याचिका में 2011 की जनगणना का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भारत में भिखारियों की कुल संख्या 4,13,670 है और पिछली जनगणना से यह संख्या बढ़ी है.

इसमें कहा गया है कि सरकार को सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और सभी को संविधान में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने का अधिकार है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने उस याचिका पर केन्द्र और कुछ राज्यों से जवाब मांगा है जिसमें भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रावधानों को निरस्त किये जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

याचिका में कहा गया है कि इन प्रावधानों के चलते लोगों के पास भीख मांगकर अपराध करने या भूखा मरने का 'अनुचित विकल्प' ही बचेगा.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर एस रेड्डी की एक पीठ ने नोटिस जारी करते हुए केन्द्र के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और बिहार से याचिका पर जवाब मांगे है. याचिका में दावा किया गया है कि भीख मांगने को अपराध बनाने संबंधी धाराएं संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है.

पढ़ें : केंद्र सरकार की नौकरियों के नाम पर ठगी करने वाले तीन गिरफ्तार

पीठ ने मेरठ निवासी विशाल पाठक द्वारा दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए कहा, 'जारी किये गये नोटिसों पर छह सप्ताह में जवाब देने को कहा गया है.'

अधिवक्ता एचके चतुर्वेदी द्वारा दाखिल याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के अगस्त 2018 के उस फैसले का जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया था राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगना अब अपराध नहीं होगा.

इसमें कहा गया है कि बम्बई भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम, 1959 के प्रावधान, जिनमें भीख मांगने को एक अपराध के रूप में माना गया है, संवैधानिक रूप से नहीं टिक सकते हैं.

उच्चतम न्यायालय में दाखिल याचिका में 2011 की जनगणना का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भारत में भिखारियों की कुल संख्या 4,13,670 है और पिछली जनगणना से यह संख्या बढ़ी है.

इसमें कहा गया है कि सरकार को सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और सभी को संविधान में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने का अधिकार है.

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