नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश, यूयू ललित की अगुवाई वाली सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की पीठ, दीवाली की छुट्टी के बाद 31 अक्टूबर को 3 साल के भीतर न्यायाधीशों की संख्या को दोगुना करने और न्यायिक चार्टर को लागू करने वाली जनहित (पीआईएल) (Public interest litigation) पर सुनवाई करेगी. भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 2009 में पेंडेंसी को कम करने का वादा किया था.
लेकिन इस मुद्दे के संबंध में कानून आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए कुछ नहीं किया. उन्होंने कहा कि त्वरित न्याय का अधिकार अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है, लेकिन केंद्र और राज्यों ने अभी भी जानबूझकर इसके महत्व की उपेक्षा की है. याचिका में कहा गया है कि तहसील से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक करीब 5 करोड़ मामले लंबित हैं. औसतन हर परिवार में 6 सदस्य होते हैं, यानी करीब 30 करोड़ लोग शारीरिक मानसिक और आर्थिक तनाव से जूझ रहे हैं.
याचिका में आगे कहा गया कि कानून के सुलझे हुए सवालों पर 10 साल से अधिक समय से तहसीलदार, एसडीएम, एडीएम, सीओ, एसओसी, डीडीसी के समक्ष लाखों मामले लंबित हैं. लोग आत्महत्या तब करते हैं, जब मामले बहुत लंबे समय तक लंबित रहते हैं, न कि उस गंदगी का उल्लेख करने के लिए जो वे पीछे छोड़ते हैं. याचिका में कहा गया है कि बड़े पैमाने पर लंबित मामलों ने न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को हिला दिया है और यह बढ़ते अपराधीकरण का मूल कारण भी है.
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याचिकाकर्ता ने कहा कि लोग कानून अपने हाथ में ले रहे हैं, क्योंकि उनका न्यायपालिका पर से विश्वास उठ रहा है, जो उस अंतिम उद्देश्य को विफल कर देता है जिसके लिए कानून बनाए गए थे. याचिकाकर्ता का कहना है कि न्याय प्रणाली के प्रशासन को प्रभावी और सार्थक बनाने के लिए न केवल केंद्र और राज्यों को बल्कि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय को भी तुरंत उचित कदम उठाने चाहिए ताकि निष्पक्ष सुनवाई और त्वरित न्याय के महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार कागजों पर न रहें या एक औपचारिकता मात्र न बनकर रह जाएं.