नई दिल्ली : बॉम्बे हाईकोर्ट में लागू मानक संचालन प्रक्रिया (Standard operating procedure) के तहत 28 जनवरी 2022 तक दोपहर 12 बजे से दोपहर 3 बजे वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई हो सकेगी. इससे हाईकोर्ट की क्रियाशीलता सिर्फ तीन घंटे तक सीमित (Activity limited to only three hours) हो गई है. अब इसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है.
याचिकाकर्ता का तर्क है कि लंबित मामलों की अधिकता को देखते हुए यह उचित नहीं है और शीर्ष अदालत स्वयं वस्तुतः पूर्णकालिक रूप से काम न करे. अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय द्वारा याचिका दायर की गई है. जो कि बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं. उनका कहना है कि COVID की पहली और दूसरी लहर के दौरान जब स्थिति वर्तमान से कहीं अधिक भयावह थी, तब हाईकोर्ट के न्यायाधीश प्रतिदिन देर शाम तक कभी-कभी रात 8 बजे तक बैठते थे. अब उनके लिए सिर्फ तीन घंटे बैठने का कोई कारण नहीं है.
उनका कहना है कि अदालत वस्तुतः काम कर सकती है. इससे न केवल एसओपी के कार्यान्वयन के दौरान बल्कि बाद में भी वादियों और अधिवक्ताओं के लिए कठिनाइयां होती हैं. क्योंकि मामलों का ढेर लग जाएगा. उन्होंने जारी एसओपी को भी चुनौती दी है. मुंबई, पुणे, रायगढ़, अलीबाग और ठाणे में अधीनस्थ अदालतों के लिए हाईकोर्ट ने सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक रोटेशन के आधार पर 50% कर्मचारियों की उपस्थिति के साथ कार्यात्मक बनाने का निर्देश दिया है.
याचिकाकर्ता का तर्क है कि उच्च न्यायालय और अधीनस्थ अदालतों में मामलों की सुनवाई काफी कम हो गई है और नए एसओपी के कारण यह लगभग ठप पड़ी हैं. याचिकाकर्ता ने कहा कि अधीनस्थ अदालतों के न्यायाधीश उनके लिए वायरस के खतरे के कारण सुनवाई से बचने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. कहा कि देश के सभी शहरों के बीच सभी आभासी मंच पर मामलों की सुनवाई के लिए बुनियादी ढांचे की कमी है.
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देश के लगभग हर राज्य में, रिमोट में स्थित न्यायालय सहित सभी अदालतें वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर कार्य कर रहीं हैं और वह भी बहुत प्रभावी ढंग से. उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट को यह सुनिश्चित करने का निर्देश मांगा कि राज्य की सभी अदालतें वकीलों की फिजिकल उपस्थिति से बचने के लिए दिशा-निर्देशों को निर्धारित करते हुए वर्चुअल मोड के माध्यम से पूर्णकालिक कार्य करें.