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जबरन धर्मांतरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर - guidelines to stop forceful religious conversion

सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है ताकि केंद्र और राज्य सरकारों को काले जादू और जबरदस्ती धार्मिक धर्मांतरण को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए जा सकें.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Apr 1, 2021, 6:55 PM IST

नई दिल्ली : देश की सर्वोच्च अदालत में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है ताकि केंद्र और राज्य सरकारों को काले जादू और जबरदस्ती धार्मिक धर्मांतरण को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए जा सके. याचिका में कहा गया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14,21 और 25 का उल्लंघन है. इसके साथ-साथ यह संविधान के मूल ढांचे के अभिन्न अंग धर्मनिर्पेक्षता के खिलाफ है.

बता दें, वकील और भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है. याचिका में उन्होंने कहा कि धर्म का दुरुपयोग रोकने के लिए एक कमेटी गठित की जाए. इसके साथ-साथ उन्होंने अनुरोध करते हुए कहा कि धर्म परिवर्तन कानून बनाने की संभावना का पता लगाने के लिए निर्देश भी दिए जाएं.

पढ़ें -अमेरिकी अदालत ने दी राणा को अतिरिक्त जवाब दाखिल करने की मंजूरी

याचिका में कहा गया कि अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि केंद्र और राज्य जादू-टोना, अंधविश्वास और छल से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने में नाकाम रहे हैं, जबकि अनुच्छेद 51 ए के तहत इस पर रोक लगाना उनका दायित्व है. समाज की कुरीतियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई कर पाने में नाकामी का आरोप लगाते हुए याचिका में कहा गया है कि केंद्र एक कानून बना सकता है, जिसमें तीन साल की न्यूनतम कैद की सजा हो, जिसे 10 साल की सजा तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

इस पर अदालत ने धर्मांतरण पर नजर रखने और इससे संबंधी कानून को लागू कराने वाली कमेटी का गठन करने का निर्देश दिया.

नई दिल्ली : देश की सर्वोच्च अदालत में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है ताकि केंद्र और राज्य सरकारों को काले जादू और जबरदस्ती धार्मिक धर्मांतरण को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए जा सके. याचिका में कहा गया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14,21 और 25 का उल्लंघन है. इसके साथ-साथ यह संविधान के मूल ढांचे के अभिन्न अंग धर्मनिर्पेक्षता के खिलाफ है.

बता दें, वकील और भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है. याचिका में उन्होंने कहा कि धर्म का दुरुपयोग रोकने के लिए एक कमेटी गठित की जाए. इसके साथ-साथ उन्होंने अनुरोध करते हुए कहा कि धर्म परिवर्तन कानून बनाने की संभावना का पता लगाने के लिए निर्देश भी दिए जाएं.

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याचिका में कहा गया कि अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि केंद्र और राज्य जादू-टोना, अंधविश्वास और छल से धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने में नाकाम रहे हैं, जबकि अनुच्छेद 51 ए के तहत इस पर रोक लगाना उनका दायित्व है. समाज की कुरीतियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई कर पाने में नाकामी का आरोप लगाते हुए याचिका में कहा गया है कि केंद्र एक कानून बना सकता है, जिसमें तीन साल की न्यूनतम कैद की सजा हो, जिसे 10 साल की सजा तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

इस पर अदालत ने धर्मांतरण पर नजर रखने और इससे संबंधी कानून को लागू कराने वाली कमेटी का गठन करने का निर्देश दिया.

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