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जम्मू-कश्मीर : अनुच्छेद 370 निरस्त होने बाद हिरासत में लिए गए दिव्यांगों का दर्द - पीएसए की मार

गृह मंत्रालय के अनुसार पांच अगस्त के बाद 5161 लोगों को हिरासत में लिया गया था, जबकि 396 लोगों को पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया था. इनमें कुछ लोग ऐसे भी थे जो शारीरिक रूप से विकलांग थे फिर भी उन्हें हिरासत में रखा गया. पढ़ें विस्तार से...

शारीरिक रूप से दिव्यांग
शारीरिक रूप से दिव्यांग
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Published : Dec 8, 2020, 11:01 PM IST

श्रीनगर : भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पिछले साल पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के कुछ दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित सैकड़ों लोगों को सार्वजनिक सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत हिरासत में लिया गया था. गृह मंत्रालय के अनुसार पांच अगस्त के बाद 5161 लोगों को हिरासत में लिया गया था, जबकि 396 लोगों को पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया था.

गिरफ्तार किए लोगों में कश्मीर के कुछ ऐसे निवासी थे, जो शारीरिक रूप से दिव्यांग थे और उनके लिए जेल में गुजारा समय बेहद डरावना था.

2010 में अशांति के दौरान एक शेल लगने से आंखो की रोशनी गंवाने वाले 25 वर्षीय वसीम तेली ने ईटीवी भारत से कहा है कि उन्हें पांच अगस्त से कुछ दिन पहले सोपोर पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. उसके बाद मुझे सोपोर पुलिस स्टेशन से सेंट्रल जेल भेज दिया गया, जहां मैं लगभग आठ महीने रहा, यह मेरे लिए बेहद डरावना समय था.

उन्होंने कहा कि पीएसए डोजियर में मुझ पर पथराव करने और कानून-व्यवस्था बिगाड़ने का आरोप लगाया गया है. जब मैं अपनी एक आंख से देख ही नहीं सकता, तो मैं पत्थरों कैसे फेंक सकता हूं और विरोध प्रदर्शन में शामिल कैसे हो सकता हूं.

तेली ने बताया कि जब वह जेल में बंद थे तो, मेरी मां को अपना घर छोड़ना पड़ा और उन्हें मेरी बहनों के साथ रहना पड़ा. वह मुझसे जेल में नहीं मिल सकती थीं. मेरे लिए आठ महीने जेल में बिताया समय भयानक समय था.

तेली के अलावा दक्षिण कश्मीर के अवंतीपोरा इलाके के 34 वर्षीय शब्बीर अहमद वानी को भी पांच महीने के लिए पीएसए के तहत जेल में डाल दिया गया था. शब्बीर ऑस्टियोमाइलाइटिस नामक एक गंभीर हड्डी संक्रमण से पीड़ित हैं. बीमारी के कारण उसके दाहिने पैर की त्वचा में गहरा गड्ढा हो गया है.

उन्होंने बताया कि पांच अगस्त से पहले अवंतीपोरा के पद्गम्पोरा स्थित उनके घर पुलिस आई और उन्हें उठाकर ले गई और बाद में उनको पीएसए के तहत गिरफ्तार कर लिया. जहां उन्होंने पांच महीने जेल में बिताए. इस दौरान उन्हें दिव्यांग होने के कारण कई कष्टों का सामना करना पड़ा.

मानवाधिकार प्रहरी एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पीएसए को काला और ड्रैकोनियन करार दिया था और कहा था कि इसकी स्थापना के समय से ही जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा रहा है.

अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, जम्मू-कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को पीएसए तहत महीनों तक हिरासत में रखा गया था.

तीन दिसंबर को जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा विश्व दिव्यांगता दिवस मनाया गया. इस दौरान शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को प्रदर्शित करने के लिए कई आयोजन हुए.

यह भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर: पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती घर में नजरबंद

तेली और वानी कहते हैं कि शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद, उन्हें पांच अगस्त के बाद प्रशासन द्वारा जेल में रखा गया.

श्रीनगर : भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पिछले साल पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के कुछ दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित सैकड़ों लोगों को सार्वजनिक सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत हिरासत में लिया गया था. गृह मंत्रालय के अनुसार पांच अगस्त के बाद 5161 लोगों को हिरासत में लिया गया था, जबकि 396 लोगों को पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया था.

गिरफ्तार किए लोगों में कश्मीर के कुछ ऐसे निवासी थे, जो शारीरिक रूप से दिव्यांग थे और उनके लिए जेल में गुजारा समय बेहद डरावना था.

2010 में अशांति के दौरान एक शेल लगने से आंखो की रोशनी गंवाने वाले 25 वर्षीय वसीम तेली ने ईटीवी भारत से कहा है कि उन्हें पांच अगस्त से कुछ दिन पहले सोपोर पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. उसके बाद मुझे सोपोर पुलिस स्टेशन से सेंट्रल जेल भेज दिया गया, जहां मैं लगभग आठ महीने रहा, यह मेरे लिए बेहद डरावना समय था.

उन्होंने कहा कि पीएसए डोजियर में मुझ पर पथराव करने और कानून-व्यवस्था बिगाड़ने का आरोप लगाया गया है. जब मैं अपनी एक आंख से देख ही नहीं सकता, तो मैं पत्थरों कैसे फेंक सकता हूं और विरोध प्रदर्शन में शामिल कैसे हो सकता हूं.

तेली ने बताया कि जब वह जेल में बंद थे तो, मेरी मां को अपना घर छोड़ना पड़ा और उन्हें मेरी बहनों के साथ रहना पड़ा. वह मुझसे जेल में नहीं मिल सकती थीं. मेरे लिए आठ महीने जेल में बिताया समय भयानक समय था.

तेली के अलावा दक्षिण कश्मीर के अवंतीपोरा इलाके के 34 वर्षीय शब्बीर अहमद वानी को भी पांच महीने के लिए पीएसए के तहत जेल में डाल दिया गया था. शब्बीर ऑस्टियोमाइलाइटिस नामक एक गंभीर हड्डी संक्रमण से पीड़ित हैं. बीमारी के कारण उसके दाहिने पैर की त्वचा में गहरा गड्ढा हो गया है.

उन्होंने बताया कि पांच अगस्त से पहले अवंतीपोरा के पद्गम्पोरा स्थित उनके घर पुलिस आई और उन्हें उठाकर ले गई और बाद में उनको पीएसए के तहत गिरफ्तार कर लिया. जहां उन्होंने पांच महीने जेल में बिताए. इस दौरान उन्हें दिव्यांग होने के कारण कई कष्टों का सामना करना पड़ा.

मानवाधिकार प्रहरी एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पीएसए को काला और ड्रैकोनियन करार दिया था और कहा था कि इसकी स्थापना के समय से ही जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा रहा है.

अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, जम्मू-कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को पीएसए तहत महीनों तक हिरासत में रखा गया था.

तीन दिसंबर को जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा विश्व दिव्यांगता दिवस मनाया गया. इस दौरान शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को प्रदर्शित करने के लिए कई आयोजन हुए.

यह भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर: पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती घर में नजरबंद

तेली और वानी कहते हैं कि शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद, उन्हें पांच अगस्त के बाद प्रशासन द्वारा जेल में रखा गया.

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