ETV Bharat / bharat

'मेन्स लाइव्स मैटर' : यौन अपराधों पर 'जेंडर न्यूट्रल' प्रावधानों की मांग को लेकर SC में याचिका दायर

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है जिसमें आईपीसी के तहत कानूनों पर पुनर्विचार करने की मांग की गई है क्योंकि इन कानूनों का महिलाएं गलत इस्तेमाल कर रही हैं.

supreme court
supreme court
author img

By

Published : Aug 14, 2021, 8:54 AM IST

Updated : Aug 14, 2021, 9:51 AM IST

नई दिल्ली : कानून के दो छात्रों ने महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों पर पुनर्विचार और संशोधन के लिए निर्देश देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, ताकि उन्हें 'लैंगिक तटस्थ' बनाया जा सके.

यह कहते हुए कि 'मेन्स लाइव्स मैटर', याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए कानूनों पर पुनर्विचार करने के लिए निर्देश देने की मांग की है, जिसमें यौन उत्पीड़न (354A-354D) बलात्कार (धारा 376) आपराधिक धमकी (धारा 506) महिलाओं के शील का अपमान (धारा 509) और महिलाओं के प्रति क्रूरता (498A) शामिल है.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि ऐसे प्रावधान लिंग के आधार पर भेदभावपूर्ण हैं और पुरुषों की समानता के मौलिक अधिकार को प्रभावित करते हैं, और इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 (1) का उल्लंघन है.

याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा, नकली नारीवाद (fake feminism) ने देश को प्रदूषित किया है. जनता का आकर्षण हासिल करने के लिए लड़कियां निर्दोष पुरुषों पर हमला करके फेक फेमिनिज्म दिखाती हैं.

महिलाएं जानबूझकर पुरुषों पर हमला करती हैं और मासूम लड़कों की गरिमा और सम्मान को खत्म कर देती हैं.

कानून ने महिलाओं को बिना किसी उचित प्रतिबंध के हथियार जैसी शक्ति प्रदान की है.

पढ़ें :- लखनऊ में युवती का हाई वोल्टेज ड्रामा, नये सीसीटीवी फुटेज से बैकफुट पर पुलिस

दोनों याचिकाकर्ताओं, अनम कामिल और श्रीकांत प्रसाद के अनुसार, ये कानून 150 साल पहले बनाए गए थे, जब वास्तव में महिलाओं के उत्थान के लिए ऐसे कानूनों की आवश्यकता थी, लेकिन अब उनकी जरूरत नहीं है क्योंकि अब महिलाएं सशक्त हैं.

लखनऊ के हालिया मामले का हवाला देते हुए जहां एक लड़की को कैब ड्राइवर को थप्पड़ मारते देखा गया था, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि महिलाओं द्वारा यौन अपराध कानूनों का 'दुरुपयोग' बढ़ रहा है, जो पुरुषों के सम्मान और की गरिमा को तोड़ रहा है.

नई दिल्ली : कानून के दो छात्रों ने महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों पर पुनर्विचार और संशोधन के लिए निर्देश देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, ताकि उन्हें 'लैंगिक तटस्थ' बनाया जा सके.

यह कहते हुए कि 'मेन्स लाइव्स मैटर', याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए कानूनों पर पुनर्विचार करने के लिए निर्देश देने की मांग की है, जिसमें यौन उत्पीड़न (354A-354D) बलात्कार (धारा 376) आपराधिक धमकी (धारा 506) महिलाओं के शील का अपमान (धारा 509) और महिलाओं के प्रति क्रूरता (498A) शामिल है.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि ऐसे प्रावधान लिंग के आधार पर भेदभावपूर्ण हैं और पुरुषों की समानता के मौलिक अधिकार को प्रभावित करते हैं, और इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 (1) का उल्लंघन है.

याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा, नकली नारीवाद (fake feminism) ने देश को प्रदूषित किया है. जनता का आकर्षण हासिल करने के लिए लड़कियां निर्दोष पुरुषों पर हमला करके फेक फेमिनिज्म दिखाती हैं.

महिलाएं जानबूझकर पुरुषों पर हमला करती हैं और मासूम लड़कों की गरिमा और सम्मान को खत्म कर देती हैं.

कानून ने महिलाओं को बिना किसी उचित प्रतिबंध के हथियार जैसी शक्ति प्रदान की है.

पढ़ें :- लखनऊ में युवती का हाई वोल्टेज ड्रामा, नये सीसीटीवी फुटेज से बैकफुट पर पुलिस

दोनों याचिकाकर्ताओं, अनम कामिल और श्रीकांत प्रसाद के अनुसार, ये कानून 150 साल पहले बनाए गए थे, जब वास्तव में महिलाओं के उत्थान के लिए ऐसे कानूनों की आवश्यकता थी, लेकिन अब उनकी जरूरत नहीं है क्योंकि अब महिलाएं सशक्त हैं.

लखनऊ के हालिया मामले का हवाला देते हुए जहां एक लड़की को कैब ड्राइवर को थप्पड़ मारते देखा गया था, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि महिलाओं द्वारा यौन अपराध कानूनों का 'दुरुपयोग' बढ़ रहा है, जो पुरुषों के सम्मान और की गरिमा को तोड़ रहा है.

Last Updated : Aug 14, 2021, 9:51 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.