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पेटा इंडिया ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम अधिसूचना का किया स्वागत

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Published : Jan 10, 2021, 9:46 AM IST

पशु क्रूरता के खिलाफ करने वाली एनजीओ पेटा इंडिया के केंद्र सरकार के पशुपालन प्रक्रियाओं के लिए मानवीय तरीकों को अपनाए जाने के लिए नियमों को अधिसूचित किये जाने का स्वागत किया है. PETA इंडिया के अनुरोध पर अधिसूचित किए गए इन नए नियमों का उद्देश्य जानवरों के खिलाल होने वाली क्रूरता को खत्म करना है.

peta India
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नई दिल्ली : पशु क्रूरता के विरुद्ध काम करने वाली एनजीओ पेटा इंडिया ने पशु क्रूरता निवारण नियम 2020 के मसौदे को अधिसूचित किये जाने का स्वागत किया है. बता दें कि पेटा इंडिया काफी समय से यह मांग कर रही थी.

अगर यह कानून का रूप ले लेता है, तो इसके तहत पशुओं की नसबंधी से पूर्व उनको बेहोश किया जाना अनिवार्य हो जायेगा. इस अधिनियम में बहुत-सी पुरानी और दर्दनाक प्रक्रियाओं को बदला गया हैं. जलते सरिये से शरीर पर मुहर अंकित करने की बजाए रेडियो फ्रिक्वेंसी पहचान चिन्ह का इस्तेमाल करना, जानवरों के सींग उखाड़ने की बजाय सींग रहित जानवरों की ब्रीडिंग करना और देखभाल से संबंधित मानवीय तरीकों को अपनाने को अनिवार्य किया गया है.

पशु क्रूरता निवारण नियम 2020 के प्रावधान
इसके अलावा नाक के अंदर से नकेल बांधने की बजाय मोहरा (फेस हाल्टर) बांधना, जो कि बिना नकेल कसे केवल मुंह के ऊपरी हिस्से पर पहनाया जाता है. आंखों पर पट्टी बांधना और खाने के लिए गुड़, मूंगफली, केक या फिर हरी घास देना जैसे नियम बनाये गए हैं. नियमों में यह भी अधिसूचित किया गया है कि जानवर की मुक्ति किसी पंजीकृत पशु चिकित्सक की देखरेख में विश्व पशु स्वास्थ संगठन और कमेटी फॉर द पर्पस ऑफ कंट्रोल एंड सुपरविजन ऑफ एक्सपेरिमेंट्स ऑन एनिमल्स द्वारा निर्धारित किए गए तरीकों के अनुसार ही होनी चाहिए.

सरकार द्वारा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के अंतर्गत जानवरों के लिए दर्दनाक पशुपालन प्रक्रियाओं के निर्धारित तरीकों को परिभाषित करने वाले यह नियम भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड, पशुपालन एवं डेयरी विभाग और पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमलस (PETA) इंडिया की ओर से दिये गए सुझावों, दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका के परिणाम स्वरूप अमल में लाये गए हैं.


PETA इंडिया के CEO और पेशे से पशुचिकित्सक डॉ. मनीलाल वलियते ने कहा कि हम केंद्र सरकार के बहुत आभारी हैं कि उन्होंने पशुपालन प्रक्रियाओं का आधुनिकीकरण करने के लिए इस प्रस्ताव को अधिसूचित किया. इस कदम से भारत की लाखों गायों और बैलों की मानसिक और शारीरिक कल्याण सुनिश्चित किया जा सकेगा. इस कानून के बिना पशु चिकित्सा सेवाओं के तहत जानवरों के दर्द और पीड़ा को कम करने के लिए उन्हें दर्द निवारक, सुन्न करने और बेहोशी की दवा दिये बिना उनकी बर्बर, दर्दनाक और क्रूर तरीकों से चिकित्सा की जाती है.


पढ़ें : बढ़ रहा खतरा, 1200 से ज्यादा पक्षियों की हो चुकी है मौत

नए पशु क्रूरता अधिनियम में ये हैं खास प्रावधान
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 का सेक्शन 11 पशुओं के साथ क्रूरता भरे व्यवहार और उप सेक्शन तीन पशुओं की देखभाल के संबंध में हैं, जिसमें कहा गया है कि पशुओं के सींग निकालना, पशुओं की नसबंदी करने, उनके शरीर पर मुहर अंकित करने और उनकी नकेल डालने की प्रक्रिया अगर निर्धारित नियमों और दिशानिर्देशों के तहत हो तो इन कृत्यों को क्रूर नहीं माना जाएगा. मुक्ति का नियम है कि जानवर को सम्मान जनक मृत्यु मिले, जब कोई गंभीर पीड़ित जानवर को जिंदा रखना उसके साथ क्रूरता करने के समान हो तो उसे मुक्ति दे दी जानी चाहिए.

नई दिल्ली : पशु क्रूरता के विरुद्ध काम करने वाली एनजीओ पेटा इंडिया ने पशु क्रूरता निवारण नियम 2020 के मसौदे को अधिसूचित किये जाने का स्वागत किया है. बता दें कि पेटा इंडिया काफी समय से यह मांग कर रही थी.

अगर यह कानून का रूप ले लेता है, तो इसके तहत पशुओं की नसबंधी से पूर्व उनको बेहोश किया जाना अनिवार्य हो जायेगा. इस अधिनियम में बहुत-सी पुरानी और दर्दनाक प्रक्रियाओं को बदला गया हैं. जलते सरिये से शरीर पर मुहर अंकित करने की बजाए रेडियो फ्रिक्वेंसी पहचान चिन्ह का इस्तेमाल करना, जानवरों के सींग उखाड़ने की बजाय सींग रहित जानवरों की ब्रीडिंग करना और देखभाल से संबंधित मानवीय तरीकों को अपनाने को अनिवार्य किया गया है.

पशु क्रूरता निवारण नियम 2020 के प्रावधान
इसके अलावा नाक के अंदर से नकेल बांधने की बजाय मोहरा (फेस हाल्टर) बांधना, जो कि बिना नकेल कसे केवल मुंह के ऊपरी हिस्से पर पहनाया जाता है. आंखों पर पट्टी बांधना और खाने के लिए गुड़, मूंगफली, केक या फिर हरी घास देना जैसे नियम बनाये गए हैं. नियमों में यह भी अधिसूचित किया गया है कि जानवर की मुक्ति किसी पंजीकृत पशु चिकित्सक की देखरेख में विश्व पशु स्वास्थ संगठन और कमेटी फॉर द पर्पस ऑफ कंट्रोल एंड सुपरविजन ऑफ एक्सपेरिमेंट्स ऑन एनिमल्स द्वारा निर्धारित किए गए तरीकों के अनुसार ही होनी चाहिए.

सरकार द्वारा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के अंतर्गत जानवरों के लिए दर्दनाक पशुपालन प्रक्रियाओं के निर्धारित तरीकों को परिभाषित करने वाले यह नियम भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड, पशुपालन एवं डेयरी विभाग और पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमलस (PETA) इंडिया की ओर से दिये गए सुझावों, दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका के परिणाम स्वरूप अमल में लाये गए हैं.


PETA इंडिया के CEO और पेशे से पशुचिकित्सक डॉ. मनीलाल वलियते ने कहा कि हम केंद्र सरकार के बहुत आभारी हैं कि उन्होंने पशुपालन प्रक्रियाओं का आधुनिकीकरण करने के लिए इस प्रस्ताव को अधिसूचित किया. इस कदम से भारत की लाखों गायों और बैलों की मानसिक और शारीरिक कल्याण सुनिश्चित किया जा सकेगा. इस कानून के बिना पशु चिकित्सा सेवाओं के तहत जानवरों के दर्द और पीड़ा को कम करने के लिए उन्हें दर्द निवारक, सुन्न करने और बेहोशी की दवा दिये बिना उनकी बर्बर, दर्दनाक और क्रूर तरीकों से चिकित्सा की जाती है.


पढ़ें : बढ़ रहा खतरा, 1200 से ज्यादा पक्षियों की हो चुकी है मौत

नए पशु क्रूरता अधिनियम में ये हैं खास प्रावधान
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 का सेक्शन 11 पशुओं के साथ क्रूरता भरे व्यवहार और उप सेक्शन तीन पशुओं की देखभाल के संबंध में हैं, जिसमें कहा गया है कि पशुओं के सींग निकालना, पशुओं की नसबंदी करने, उनके शरीर पर मुहर अंकित करने और उनकी नकेल डालने की प्रक्रिया अगर निर्धारित नियमों और दिशानिर्देशों के तहत हो तो इन कृत्यों को क्रूर नहीं माना जाएगा. मुक्ति का नियम है कि जानवर को सम्मान जनक मृत्यु मिले, जब कोई गंभीर पीड़ित जानवर को जिंदा रखना उसके साथ क्रूरता करने के समान हो तो उसे मुक्ति दे दी जानी चाहिए.

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