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किसी समुदाय को धार्मिक प्रतीक पहनने की अनुमति देना धर्मनिरपेक्षता के उलट : जस्टिस गुप्ता

कर्नाटक हिजाब विवाद (Karnataka hijab ban case) मामले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में विभाजित फैसला आया है (Hijab verdict). बेंच में शामिल दोनों जजों की राय अलग-अलग है. जस्टिस गुप्ता ने कहा है कि किसी समुदाय को धार्मिक प्रतीक पहनने की अनुमति देना धर्मनिरपेक्षता के उलट है. पढ़ें पूरी खबर.

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Published : Oct 13, 2022, 8:25 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के न्यायाधीश हेमंत गुप्ता (Justice Gupta In Hijab Case) ने गुरुवार को विभाजित फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपील खारिज कर दी, जिसमें राज्य सरकार के 5 फरवरी के आदेश को बरकरार रखा गया था, जिसमें प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में कक्षाओं के अंदर हिजाब पहनने पर रोक लगाई गई थी.

न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, 'धर्मनिरपेक्षता सभी नागरिकों पर लागू होती है, इसलिए एक धार्मिक समुदाय को अपने धार्मिक प्रतीकों को पहनने की अनुमति देना धर्मनिरपेक्षता के विपरीत होगा. इस प्रकार, सरकारी आदेश को कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 के तहत धर्मनिरपेक्षता की नैतिकता के खिलाफ या इसके उद्देश्य के खिलाफ नहीं कहा जा सकता है.'

उन्होंने कहा, 'यदि किसी विशेष छात्रा को लगता है कि वह किसी भी बाहरी धार्मिक प्रतीक को पहनने के लिए किसी अन्य छात्रा के साथ समझौता नहीं कर सकती, तो स्कूल को ऐसी छात्रा को अनुमति नहीं देना उचित होगा. यह अनुच्छेद 14 के जनादेश का हिस्सा है, जो संविधान के भाग 3 का केंद्रीय विषय है.'

न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि कक्षा 10 प्लस 1 या 10 प्लस 2 में पढ़ने वाली छात्राओं के लिए स्कूल में हिजाब पहनने की अनुमति नहीं है. उन्होंने कहा, 'छात्राओं के पास उनके आगे कई साल हैं, जहां वे अपने धार्मिक विश्वास को आगे बढ़ा सकती हैं, लेकिन स्कूल ड्रेस पहनने को अनिवार्य करने वाले सरकारी आदेश में गलती नहीं की जा सकती, क्योंकि इसका उद्देश्य संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप है.'

जस्टिस गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने एक विभाजित फैसला दिया. न्यायमूर्ति गुप्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों को खारिज कर दिया, जबकि न्यायमूर्ति धूलिया ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और कर्नाटक सरकार के 5 फरवरी के आदेश को रद्द कर दिया.

न्यायमूर्ति गुप्ता ने यह भी कहा कि यदि एक धर्म की छात्राएं किसी विशेष पोशाक पर जोर देती हैं, तो दूसरों को अपनी आस्था को स्कूल तक ले जाने से रोका नहीं जा सकता और यह उस स्कूल के पवित्र वातावरण के लिए अनुकूल नहीं होगा.

133 पन्ने के फैसले में जानिए क्या : उन्होंने 133 पन्नों के फैसले में कहा, 'वास्तव में स्कूल ड्रेस छात्राओं के बीच 'समानता' की भावना को बढ़ावा देती है - एकता की भावना पैदा करती है, व्यक्तिगत मतभेदों को कम करती है, सीखने पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है, क्योंकि छात्राओं को उनकी सामाजिक स्थिति के बारे में परेशान नहीं किया जाएगा. अनुशासन में सुधार, स्कूल में कम संघर्ष, स्कूल को बढ़ावा देना भावना, स्कूल के प्रति अपनेपन, गर्व, वफादारी की भावना पैदा करता है, माता-पिता पर आर्थिक दबाव से राहत देता है, शैक्षणिक संस्थान के सामने समानता सुनिश्चित करता है, एक विविध समुदाय की जरूरत को पूरा करता है और सांप्रदायिक पहचान की सकारात्मक भावना को बढ़ावा देता है.'

उन्होंने कहा कि छात्राओं से अनुशासन बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है और स्कूल एक मजबूत नींव रखने के लिए जिम्मेदार है, ताकि छात्राओं को देश की जिम्मेदार नागरिक के रूप में पोषित किया जा सके.

उन्होंने कहा, 'सरकारी आदेश को साक्षरता और शिक्षा को बढ़ावा देने के लक्ष्य के विपरीत नहीं कहा जा सकता. अनुच्छेद 21ए लागू नहीं है, क्योंकि सभी छात्राएं 14 वर्ष से अधिक आयु की हैं. छात्राओं को अनुच्छेद 21 के तहत शिक्षा का अधिकार है, लेकिन वह एक धर्मनिरपेक्ष स्कूल में धर्म के एक हिस्से के रूप में स्कूल ड्रेस अलावा कुछ भी पहनने पर जोर नहीं दे सकतीं.

उन्होंने कहा, 'सरकारी आदेश केवल यह सुनिश्चित करता है कि छात्राएं निर्धारित ड्रेस कोड का पालन करेंगी और यह नहीं कहा जा सकता कि राज्य सरकार इस तरह के आदेश के माध्यम से छात्राओं की शिक्षा तक पहुंच को प्रतिबंधित कर रही है.' न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि कोई छात्रा यह दावा नहीं कर सकती कि उसे जो शिक्षा का अधिकार प्राप्त है, उसका वह अपनी इच्छा के अनुसार का लाभ उठाएगी.

उन्होंने कहा, 'स्कूल के नियमों की अवहेलना वास्तव में अनुशासन का विरोध होगा, इसलिए उन्हें भाईचारे के माहौल में विकसित होना चाहिए न कि विद्रोही या अवज्ञा के माहौल में.' उन्होंने कहा कि प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज सभी जातियों और धर्मो के सभी छात्रों के लिए खुला है और राज्य सरकार का उद्देश्य सभी समुदायों की छात्राओं को धर्मनिरपेक्ष स्कूलों में पढ़ने का अवसर प्रदान करना है. शीर्ष अदालत ने कहा, 'पीठ द्वारा व्यक्त किए गए अलग-अलग विचारों को देखते हुए एक उपयुक्त पीठ के गठन के लिए मामले को भारत के प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए.'

पढ़ें- Hijab verdict : हिजाब विवाद पर फंसा पेंच, सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की राय अलग-अलग

(आईएएनएस)

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के न्यायाधीश हेमंत गुप्ता (Justice Gupta In Hijab Case) ने गुरुवार को विभाजित फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपील खारिज कर दी, जिसमें राज्य सरकार के 5 फरवरी के आदेश को बरकरार रखा गया था, जिसमें प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में कक्षाओं के अंदर हिजाब पहनने पर रोक लगाई गई थी.

न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, 'धर्मनिरपेक्षता सभी नागरिकों पर लागू होती है, इसलिए एक धार्मिक समुदाय को अपने धार्मिक प्रतीकों को पहनने की अनुमति देना धर्मनिरपेक्षता के विपरीत होगा. इस प्रकार, सरकारी आदेश को कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 के तहत धर्मनिरपेक्षता की नैतिकता के खिलाफ या इसके उद्देश्य के खिलाफ नहीं कहा जा सकता है.'

उन्होंने कहा, 'यदि किसी विशेष छात्रा को लगता है कि वह किसी भी बाहरी धार्मिक प्रतीक को पहनने के लिए किसी अन्य छात्रा के साथ समझौता नहीं कर सकती, तो स्कूल को ऐसी छात्रा को अनुमति नहीं देना उचित होगा. यह अनुच्छेद 14 के जनादेश का हिस्सा है, जो संविधान के भाग 3 का केंद्रीय विषय है.'

न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि कक्षा 10 प्लस 1 या 10 प्लस 2 में पढ़ने वाली छात्राओं के लिए स्कूल में हिजाब पहनने की अनुमति नहीं है. उन्होंने कहा, 'छात्राओं के पास उनके आगे कई साल हैं, जहां वे अपने धार्मिक विश्वास को आगे बढ़ा सकती हैं, लेकिन स्कूल ड्रेस पहनने को अनिवार्य करने वाले सरकारी आदेश में गलती नहीं की जा सकती, क्योंकि इसका उद्देश्य संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप है.'

जस्टिस गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने एक विभाजित फैसला दिया. न्यायमूर्ति गुप्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों को खारिज कर दिया, जबकि न्यायमूर्ति धूलिया ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और कर्नाटक सरकार के 5 फरवरी के आदेश को रद्द कर दिया.

न्यायमूर्ति गुप्ता ने यह भी कहा कि यदि एक धर्म की छात्राएं किसी विशेष पोशाक पर जोर देती हैं, तो दूसरों को अपनी आस्था को स्कूल तक ले जाने से रोका नहीं जा सकता और यह उस स्कूल के पवित्र वातावरण के लिए अनुकूल नहीं होगा.

133 पन्ने के फैसले में जानिए क्या : उन्होंने 133 पन्नों के फैसले में कहा, 'वास्तव में स्कूल ड्रेस छात्राओं के बीच 'समानता' की भावना को बढ़ावा देती है - एकता की भावना पैदा करती है, व्यक्तिगत मतभेदों को कम करती है, सीखने पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है, क्योंकि छात्राओं को उनकी सामाजिक स्थिति के बारे में परेशान नहीं किया जाएगा. अनुशासन में सुधार, स्कूल में कम संघर्ष, स्कूल को बढ़ावा देना भावना, स्कूल के प्रति अपनेपन, गर्व, वफादारी की भावना पैदा करता है, माता-पिता पर आर्थिक दबाव से राहत देता है, शैक्षणिक संस्थान के सामने समानता सुनिश्चित करता है, एक विविध समुदाय की जरूरत को पूरा करता है और सांप्रदायिक पहचान की सकारात्मक भावना को बढ़ावा देता है.'

उन्होंने कहा कि छात्राओं से अनुशासन बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है और स्कूल एक मजबूत नींव रखने के लिए जिम्मेदार है, ताकि छात्राओं को देश की जिम्मेदार नागरिक के रूप में पोषित किया जा सके.

उन्होंने कहा, 'सरकारी आदेश को साक्षरता और शिक्षा को बढ़ावा देने के लक्ष्य के विपरीत नहीं कहा जा सकता. अनुच्छेद 21ए लागू नहीं है, क्योंकि सभी छात्राएं 14 वर्ष से अधिक आयु की हैं. छात्राओं को अनुच्छेद 21 के तहत शिक्षा का अधिकार है, लेकिन वह एक धर्मनिरपेक्ष स्कूल में धर्म के एक हिस्से के रूप में स्कूल ड्रेस अलावा कुछ भी पहनने पर जोर नहीं दे सकतीं.

उन्होंने कहा, 'सरकारी आदेश केवल यह सुनिश्चित करता है कि छात्राएं निर्धारित ड्रेस कोड का पालन करेंगी और यह नहीं कहा जा सकता कि राज्य सरकार इस तरह के आदेश के माध्यम से छात्राओं की शिक्षा तक पहुंच को प्रतिबंधित कर रही है.' न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि कोई छात्रा यह दावा नहीं कर सकती कि उसे जो शिक्षा का अधिकार प्राप्त है, उसका वह अपनी इच्छा के अनुसार का लाभ उठाएगी.

उन्होंने कहा, 'स्कूल के नियमों की अवहेलना वास्तव में अनुशासन का विरोध होगा, इसलिए उन्हें भाईचारे के माहौल में विकसित होना चाहिए न कि विद्रोही या अवज्ञा के माहौल में.' उन्होंने कहा कि प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज सभी जातियों और धर्मो के सभी छात्रों के लिए खुला है और राज्य सरकार का उद्देश्य सभी समुदायों की छात्राओं को धर्मनिरपेक्ष स्कूलों में पढ़ने का अवसर प्रदान करना है. शीर्ष अदालत ने कहा, 'पीठ द्वारा व्यक्त किए गए अलग-अलग विचारों को देखते हुए एक उपयुक्त पीठ के गठन के लिए मामले को भारत के प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए.'

पढ़ें- Hijab verdict : हिजाब विवाद पर फंसा पेंच, सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की राय अलग-अलग

(आईएएनएस)

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