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विशेष : खेलों में राजनीति और भ्रष्टाचार का 'खेल'

पिछले कुछ वर्षों में हमारे अधिकांश खेल संघों एवं महासंघों ने राजनीति और भ्रष्टाचार के ऐसे शरणस्थल के रूप में बदनामी हासिल की है, जो दायरे से बाहर जाकर अयोग्य लोगों को खेलने के अवसर प्रदान करते हैं. पिछले साल जून में केंद्र सरकार ने मानदंडों के उल्लंघन को लेकर 54 खेल संस्थाओं की मान्यता रद्द कर दी थी, लेकिन बाद में उसे अपने निर्णय से पीछे हटना पड़ा.

राजनीति का खेल
राजनीति का खेल
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Published : Jan 9, 2021, 6:53 AM IST

हैदराबाद : केंद्र सरकार ने 14 खेल संस्थाओं के शासी निकायों के लिए दिसंबर के अंत तक हर हाल में चुनाव करा लेने को कहा था. निर्देश के बाद क्या कुछ बदला है? अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन) के कार्यकाल के विस्तार पर सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बोबडे ने एक सीधा सवाल किया, आप कार्यकाल पूरा होने के बाद भी चुनाव क्यों नहीं करा रहे हैं? इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला. भारतीय बॉक्सिंग महासंघ (बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया) की दिसंबर के तीसरे सप्ताह में आमसभा होने वाली थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित कर दी गई. अखिल भारतीय शतरंज महासंघ (एआईसीएफ) दो गुटों में बंटा हुआ है. चौहान खेमे ने अपने प्रतिद्वंद्वी समूह की ओर से दाखिल किए गए नामांकन को चुनौती दी. इसने महासंघ के ऑनलाइन मतदान पर भी संदेह जताया. अंत में एआईसीएफ के प्रमुख पद यूपी, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड और सिक्किम जैसे राज्यों के, जो शतरंज से जुड़ी गतिविधियों के लिए लोकप्रिय नहीं हैं. अखिल भारतीय गोल्फ संघ के चुनाव में बहुत अधिक विवाद हुआ, क्योंकि आरोप लगाया गया कि एक राज्य में रहने वाले लोग किसी दूसरे राज्य की ओर से चुनाव लड़ते थे.

भारतीय ओलंपिक संघ और भारतीय राष्ट्रीय खेल महासंघ सरकारी कर्मचारियों के खेल निकायों में चुनाव से जुड़े नए मानदंड को लेकर गुस्से में हैं. साढ़े चार दशक पुराना भारतीय योग महासंघ (योग फेडरेशन ऑफ इंडिया) राष्ट्रीय योगासन क्रीड़ा फेडरेशन नामक एक नए निकाय को आधिकारिक दर्जा दिए जाने को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय गया था. ये सभी खेलों के विकास के मोर्चे पर दयनीय स्थिति के उदाहरण हैं.

सूरीनाम और बुरुंडी जैसे छोटे देश जब ओलंपिक में चमक रहे हैं, भारत खराब प्रदर्शन करने वालों में से एक रहा. यह एक निर्विवाद तथ्य है कि देश भर के शिक्षण संस्थानों में खेल के मैदानों और खेल शिक्षकों की कमी है. दुर्भाग्य से वैसे मेधावी बच्चे, जिन्हें अपने माता-पिता का समर्थन हैं और प्रायोजकों से धन भी पा रहे है उन्हें अपने खेल कौशल में सुधार करने के लिए उचित प्रशिक्षक और बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. वैसे युवाओं के ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं, जिन्होंने जूनियर स्तर पर अपनी प्रतिभा को साबित किया, लेकिन खेल संघों और महासंघों के अंदर प्रचलित ओछी और मतलबी राजनीति के कारण सभी उम्मीदें खो दीं और आगे नहीं बढ़ सके.

शतरंज के विलक्षण प्रतिभा संपन्न निहाल सरीन वर्ष 2014 में अंडर-10 के चैंपियन बने थे. 14 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल किया, इसके अलावा साइना नेहवाल, पी.वी. सिंधु और सानिया मिर्जा साबित करती हैं कि भारत में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है. खेल की दुनिया के कोहिनूरों में सम्मानित की जा सकने वाली कच्ची प्रतिभाओं की जमीनी स्तर पर पहचान करने में चूक है.

पढ़ें : ममता ने 26वें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का उदघाटन किया

चीन से लेकर ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन से लेकर केन्या और जमैका जैसे देश तक अपनी नैसर्गिक प्रतिभा की पहचान कर रहे हैं, जिनका पालन-पोषण सावधानी से किया जाता है ताकि खेल मंचों पर उनके राष्ट्रीय गौरव चमक सके. इसके विपरीत, भारत में असंख्य संघ और महासंघ देश में खेलों के योजनाबद्ध तरीके से विकास के मकसद में बाधक बने हुए हैं. यह सच है कि एकाग्रता, दृढ़ संकल्प और संघर्ष की भावना विकसित करने वाले खेलों को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी खेल संघों और महासंघों को सौंपी जानी चाहिए, ताकि प्रतिभाशाली लोगों के बीच के रत्नों को अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भारत को गौरवान्वित करने के लिए चुना जाए. खेल निकायों केवल उनके कामकाज को और अधिक पारदर्शी बनने के लिए सुधार करके और उनके शासी निकायों के लिए योग्य लोगों को चुनकर ही दुख पहुंचाने वाली उनकी सड़ांध को साफ किया जा सकता है.

हैदराबाद : केंद्र सरकार ने 14 खेल संस्थाओं के शासी निकायों के लिए दिसंबर के अंत तक हर हाल में चुनाव करा लेने को कहा था. निर्देश के बाद क्या कुछ बदला है? अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन) के कार्यकाल के विस्तार पर सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बोबडे ने एक सीधा सवाल किया, आप कार्यकाल पूरा होने के बाद भी चुनाव क्यों नहीं करा रहे हैं? इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला. भारतीय बॉक्सिंग महासंघ (बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया) की दिसंबर के तीसरे सप्ताह में आमसभा होने वाली थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित कर दी गई. अखिल भारतीय शतरंज महासंघ (एआईसीएफ) दो गुटों में बंटा हुआ है. चौहान खेमे ने अपने प्रतिद्वंद्वी समूह की ओर से दाखिल किए गए नामांकन को चुनौती दी. इसने महासंघ के ऑनलाइन मतदान पर भी संदेह जताया. अंत में एआईसीएफ के प्रमुख पद यूपी, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड और सिक्किम जैसे राज्यों के, जो शतरंज से जुड़ी गतिविधियों के लिए लोकप्रिय नहीं हैं. अखिल भारतीय गोल्फ संघ के चुनाव में बहुत अधिक विवाद हुआ, क्योंकि आरोप लगाया गया कि एक राज्य में रहने वाले लोग किसी दूसरे राज्य की ओर से चुनाव लड़ते थे.

भारतीय ओलंपिक संघ और भारतीय राष्ट्रीय खेल महासंघ सरकारी कर्मचारियों के खेल निकायों में चुनाव से जुड़े नए मानदंड को लेकर गुस्से में हैं. साढ़े चार दशक पुराना भारतीय योग महासंघ (योग फेडरेशन ऑफ इंडिया) राष्ट्रीय योगासन क्रीड़ा फेडरेशन नामक एक नए निकाय को आधिकारिक दर्जा दिए जाने को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय गया था. ये सभी खेलों के विकास के मोर्चे पर दयनीय स्थिति के उदाहरण हैं.

सूरीनाम और बुरुंडी जैसे छोटे देश जब ओलंपिक में चमक रहे हैं, भारत खराब प्रदर्शन करने वालों में से एक रहा. यह एक निर्विवाद तथ्य है कि देश भर के शिक्षण संस्थानों में खेल के मैदानों और खेल शिक्षकों की कमी है. दुर्भाग्य से वैसे मेधावी बच्चे, जिन्हें अपने माता-पिता का समर्थन हैं और प्रायोजकों से धन भी पा रहे है उन्हें अपने खेल कौशल में सुधार करने के लिए उचित प्रशिक्षक और बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. वैसे युवाओं के ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं, जिन्होंने जूनियर स्तर पर अपनी प्रतिभा को साबित किया, लेकिन खेल संघों और महासंघों के अंदर प्रचलित ओछी और मतलबी राजनीति के कारण सभी उम्मीदें खो दीं और आगे नहीं बढ़ सके.

शतरंज के विलक्षण प्रतिभा संपन्न निहाल सरीन वर्ष 2014 में अंडर-10 के चैंपियन बने थे. 14 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल किया, इसके अलावा साइना नेहवाल, पी.वी. सिंधु और सानिया मिर्जा साबित करती हैं कि भारत में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है. खेल की दुनिया के कोहिनूरों में सम्मानित की जा सकने वाली कच्ची प्रतिभाओं की जमीनी स्तर पर पहचान करने में चूक है.

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चीन से लेकर ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन से लेकर केन्या और जमैका जैसे देश तक अपनी नैसर्गिक प्रतिभा की पहचान कर रहे हैं, जिनका पालन-पोषण सावधानी से किया जाता है ताकि खेल मंचों पर उनके राष्ट्रीय गौरव चमक सके. इसके विपरीत, भारत में असंख्य संघ और महासंघ देश में खेलों के योजनाबद्ध तरीके से विकास के मकसद में बाधक बने हुए हैं. यह सच है कि एकाग्रता, दृढ़ संकल्प और संघर्ष की भावना विकसित करने वाले खेलों को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी खेल संघों और महासंघों को सौंपी जानी चाहिए, ताकि प्रतिभाशाली लोगों के बीच के रत्नों को अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भारत को गौरवान्वित करने के लिए चुना जाए. खेल निकायों केवल उनके कामकाज को और अधिक पारदर्शी बनने के लिए सुधार करके और उनके शासी निकायों के लिए योग्य लोगों को चुनकर ही दुख पहुंचाने वाली उनकी सड़ांध को साफ किया जा सकता है.

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