नई दिल्ली : संसद की एक स्थायी समिति ने इस बात का संज्ञान लिया है कि देश की जेलों में भीड़भाड़ है और न्याय में देरी चिंता का विषय बन गई है, जिसके कैदियों के साथ ही न्याय प्रणाली के लिए भी गंभीर परिणाम हो रहे हैं.
समिति ने यह भी सिफारिश की है कि जेल में पैदा हुए बच्चों को 12 साल की उम्र तक उनकी माताओं के साथ रहने की अनुमति दी जाए, ताकि उनका कल्याण और विकास सुनिश्चित करते हुए उनके शुरुआती वर्षों के दौरान उन्हें अच्छा वातावरण प्रदान किया जा सके.
भारतीय जनता पार्टी के सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने यह भी सिफारिश की कि उच्चतम न्यायालय के फैसले की तर्ज पर गर्भवती महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. न्यायालय ने कहा था कि प्रसव पूर्व और प्रसव बाद महिला कैदियों के साथ-साथ उनके बच्चों की देखभाल के लिए जेलों में पर्याप्त सुविधाएं होनी चाहिए.
समिति ने इस बात का भी संज्ञान लिया है कि जेलों में भीड़भाड़ और न्याय में देरी का मुद्दा एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है, जिससे कैदियों और समग्र रूप से आपराधिक न्याय प्रणाली, दोनों पर इनके कई परिणाम देखने को मिल रहे हैं. समिति की सिफारिश है कि भीड़भाड़ वाली जेलों से कैदियों को उसी राज्य या अन्य राज्यों की जेलों में खाली कोठरियों में, इस संबंध में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके स्थानांतरित किया जा सकता है। इस प्रकार की व्यवस्था समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले राज्यों के बीच पारस्परिक प्रकृति की हो सकती है.
समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय जेलों में अत्यधिक भीड़ लंबे समय से देश की आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए चिंता का विषय है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जेलों से कैदियों की संख्या कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों के बावजूद, भारत में कैदियों की संख्या जेलों की कुल कैदी क्षमता 4.25 लाख की तुलना में 5.54 लाख है. देशभर की जेलों में कैदियों की राष्ट्रीय औसत दर 130.2 प्रतिशत है तथा उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा राज्यों की जेलों में देश के कुल कैदियों की 50 प्रतिशत से अधिक संख्या है.
समिति ने पाया है कि भारतीय जेलों में भीड़भाड़ की समस्या ज्यादातर विचाराधीन कैदियों की अत्यधिक संख्या के कारण है क्योंकि देश के कुल कैदियों में से 50 प्रतिशत से अधिक विचाराधीन कैदी हैं.
कैदी माताओं के बच्चों के मामले में समिति ने इस बात को रेखांकित किया कि दिशानिर्देशों के अनुसार, भोजन, आश्रय, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा और शारीरिक विकास की दृष्टि से संबंधित बच्चों की उचित देखभाल पर जोर दिया जाना चाहिए. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)द्वारा तैयार प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2021 रिपोर्ट के अनुसार, देश में 22,918 महिला कैदी हैं। कुल महिला कैदियों में से 1,650 महिला कैदियों के साथ 1,867 बच्चे हैं.
रिपोर्ट में साथ ही कहा गया है कि इसके अलावा इन बच्चों को खेल और मनोरंजन की सुविधाएं भी मुहैया कराई जानी चाहिए. समिति ने यह भी कहा कि ट्रांसजेंडर कैदियों को अन्य कैदियों के लिए उपलब्ध स्वास्थ्य देखभाल के समान सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए और उनकी लैंगिक पहचान के आधार पर भेदभाव किए बिना आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की उन्हें सुविधा मिलनी चाहिए.
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