नई दिल्ली: इस तथ्य से अवगत होने के बाद कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (Central Armed Police Forces) के जवानों की आतंकवाद से प्रभावित जम्मू और कश्मीर में रहने की स्थिति अनुकूल नहीं है. गृह मामलों की एक संसदीय समिति ने गृह मंत्रालय (MHA) को सुझाव दिया है कि शिविर में कर्मियों के रहने की स्थिति में सुधार के लिए आवश्यक धन आवंटित करने के अलावा इस मामले को सीएपीएफ के साथ मिलकर हल करें.
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की यात्रा के दौरान संसदीय समिति के सदस्यों ने शिविर में रहने की खराब स्थिति देखी. समिति ने श्रीनगर में एमए रोड पर 132बटालियन के केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) शिविर का दौरा किया था. जहां आवास सहित अन्य सुविधाओं की समीक्षा की थी. शिविर में रहने की खराब स्थिति के अलावा सीआरपीएफ प्रतिनिधि द्वारा समिति को बताया गया कि शिविर के लिए जमीन की कमी है. जिसकी वजह से किराए के आवास में रहना पड़ता है. इसके बाद समिति ने सिफारिश की है कि किराए के आवास से चल रहे सभी शिविरों की स्थिति की गृह मंत्रालय द्वारा समीक्षा की जाए.
महिलाओं का प्रतिनिधित्व चिंताजनक
राज्यसभा में पेश रिपोर्ट में समिति ने पाया है कि सीएपीएफ के 2110 राजपत्रित पद पिछले साल दिसंबर तक खाली पड़े थे. विडंबना यह है कि समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि विभिन्न सीएपीएफ में महिलाओं का प्रतिनिधित्व वांछित 33 प्रतिशत के मुकाबले 3.68 प्रतिशत तक ही है. सीआरपीएफ में स्वीकृत 324654 कर्मियों की तुलना में 9854 महिलाओं के प्रतिनिधित्व के साथ कुल 309686 कर्मियों की तैनाती की गई है.
इसी तरह बीएसएफ में 265277 कर्मियों की स्वीकृत शक्ति के मुकाबले 7339 महिलाओं के प्रतिनिधित्व के साथ 244610 कर्मियों की तैनाती की गई है. सीआईएसएफ ने 9245 महिलाओं के प्रतिनिधित्व के साथ 164124 की स्वीकृत शक्ति के मुकाबले 145201 कर्मियों की तैनाती की है. आईटीबीपी ने केवल 2386 महिला प्रतिनिधियों के साथ 88430 की स्वीकृत शक्ति के मुकाबले 84233 की तैनाती की है.
सरकारी आंकड़ें बता रहे सच्चाई
समिति को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार एसएसबी में 97790 की वास्तविक ताकत के मुकाबले 87600 की पोस्ट भरे गये हैं. जिसमें महिला प्रतिनिधि केवल 3607 हैं. इसी तरह एआर में 59416 कर्मियों की कुल तैनाती ताकत है जबकि केवल 1791 महिला कर्मियों के साथ 65143 पद भरे गये हैं. समिति का मानना है कि 2016 में सरकार द्वारा सीआरपीएफ और सीआईएसएफ में महिलाओं द्वारा भरे जाने वाले पद के लिए कांस्टेबल स्तर पर 33 प्रतिशत पद आरक्षित करने और बीएसएफ, एसएसबी सहित सीमा सुरक्षा बलों में कांस्टेबल स्तर पर 14-15 प्रतिशत पदों को आरक्षित करने का निर्णय लिया गया था. समिति ने इस तथ्य पर निराशा व्यक्त की है कि सीएपीएफ की कुल संख्या में महिलाओं की संख्या केवल 3.68 प्रतिशत ही है.
जवानों की आत्महत्या का मुद्दा
समिति ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की है कि सीएपीएफ में आत्महत्या की घटनाएं बेरोकटोक जारी हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में असम राइफल्स के 14, बीएसएफ के 42, सीआईएसएफ के 19, सीआरपीएफ के 58, आईटीबीपी के 10, एनएसजी के 2 और एसएसबी के 8 जवानों ने आत्महत्या की है. एमएचए ने संसदीय समिति को सौंपे गए जवाब में कहा है कि नौकरी का तनाव और एकरसता, पारिवारिक मुद्दे और विवाद, संपत्ति और भूमि संबंधी विवाद, परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य के मुद्दे, घरेलू मुद्दे और वित्तीय तनाव, सीएपीएफ कर्मियों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या का प्रमुख कारण है.
काम के घंटे तय करे सरकार
समिति ने सिफारिश की है कि गृह मंत्रालय सीएपीएफ प्रमुख के साथ तैनाती की एक रोटेशन नीति तैयार करे, ताकि जवान लंबे समय तक कठिन और दुर्गम क्षेत्रों में ड्यूटी के लिए मजबूर न हों. समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि जवानों के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य में सुधार के लिए योग कक्षाओं, परामर्श सत्रों का आयोजन किया जाना चाहिए. समिति ने यह सिफारिश भी की है कि काम के घंटे भी तय करने का प्रयास किया जाना चाहिए.
केंद्र सरकार उठाए कदम
ईटीवी भारत से बात करते हुए बीजद सांसद व समिति सदस्य सुजीत कुमार ने कहा कि केंद्र सरकार को सीएपीएफ कर्मियों के रहने की स्थिति में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए. सुजीत कुमार ने कहा कि सरकार को सीएपीएफ कर्मियों के बीच आत्महत्याओं को रोकने के लिए भी आवश्यक कदम उठाने चाहिए. सीएपीएफ में महिला कर्मियों की मौजूदगी के लिए सरकार के साथ संबंधित विभाग को भी तत्काल ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि एमएचए और सीएपीएफ दोनों को तत्काल आधार पर सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए ताकि सशस्त्र बलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ सके.