नई दिल्ली : केंद्रीय कानून मंत्रालय ने शुक्रवार को लोकसभा को सूचित किया कि देश के सभी उच्च न्यायालयों में कुल 10,063 जनहित याचिकाएं (PIL) लंबित हैं. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अधिकतम 4805 जनहित याचिकाएं लंबित हैं. इसके बाद 1922 के साथ बॉम्बे उच्च न्यायालय, 589 के साथ तेलंगाना उच्च न्यायालय और 567 के साथ उत्तराखंड उच्च न्यायालय क्रम में आते हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, पटना, मद्रास, केरल, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, झारखंड आदि जैसे कई उच्च न्यायालयों में शून्य जनहित याचिकाएं लंबित हैं.
डेटा को राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड से उद्धृत किया गया है. एनजेएसी के अनुसार, विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित कुल चुनाव याचिकाएं 959 हैं, रिट याचिकाओं की संख्या 1642371 है और अदालती मामलों की अवमानना वाले 28469 है. लंबित मामलों की संख्या 14 दिसंबर 2022 तक की हैं.
बता दें कि विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को सदन में कहा था कि देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पांच करोड़ की संख्या को छूने वाली है. सरकार ने इसमें कमी लाने के लिए कदम उठाए हैं लेकिन न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में उसके पास सीमित अधिकार हैं. रिजिजू ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान पूरक सवालों का जवाब देते हुए कहा कि देश की विभिन्न अदालतों में बड़ी संख्या में मामलों के लंबित होने से आम लोगों पर पड़ने वाले असर को समझा जा सकता है. उन्होंने अदालतों में बड़ी संख्या में मामलों के लंबित होने पर गहरी चिंता जतायी.
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उन्होंने कहा कि लंबित मामलों की संख्या अधिक होने का एक अहम कारण न्यायाधीशों की संख्या भी है. उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने के लिए केंद्र के पास बहुत अधिकार नहीं हैं और उसे इसके लिए कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों पर ही विचार करना होता है और सरकार नए नाम नहीं खोज सकती है. उन्होंने कहा कि 2015 में संसद के दोनों सदनों ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) विधेयक को सर्वसम्मति से मंजूरी दी थी और उसे दो-तिहाई राज्यों ने भी मंजूरी दी थी. उन्होंने कहा कि देश संविधान से और लोगों की भावना से चलता है और देश की संप्रभुता लोगों के पास है.