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हादसों के बाद भी हार न मानने वाले पैरास्विमर्स कर रहे ओलंपिक की तैयारी

राजस्थान के जोधपुर में डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज में इन दिनों पैरास्विमर्स (paraswimmers practicing in Jodhpur) जमकर गोते लगा रहे हैं. ओलंपिक में पिछली बार, पैरा ओलंपियंस ने बेहतरीन प्रदर्शन कर पदक बटोरे थे. साथ ही देश के पैरा ओलंपिक खिलाड़ियों को अलग पहचान दिलाई थी. उन्हीं से प्रेरणा लेकर अब पैरास्विमर्स भी रोजाना पूल में घंटों प्रैक्टिस कर रहे हैं ताकि वे भी देश का मान बढ़ा सकें और खुद को साबित कर सकें.

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Published : Mar 21, 2022, 9:55 PM IST

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जोधपुर: कहते हैं कि जब अपनी कमजोरी को ही आप सबसे बड़ी ताकत बना लें तो हर मुश्किल आसान हो जाती है. जोधपुर में पैरास्विमर्स भी शायद इसी जज्बे के साथ ओलंपिक में मेडल जीतने का सपना संजोए रोजाना (paraswimmers practicing in Jodhpur) अभ्यास कर रहे हैं. दिव्यांग होने के बावजूद वे घंटों प्रैक्टिस कर रहे हैं. ओलंपिक फतह करने की जिद उनकी आंखों में साफ नजर आ रही है. कई खिलाड़ी नेशनल क्वालिफाई कर चुके हैं और अब उनकी निगाहें ओलंपिक पर हैं.

पैरास्विमर्स की बात करें तो किसी ने सड़क हादसे में अपने पैर गंवा दिए हैं तो किसी का एक हाथ नहीं हैं. लेकिन उनका हौसला कम नहीं है. सड़क हादसे में अपने दोनों पैर खोने के बाद पैरास्विमर सहीराम भी डिप्रेशन में चले गए थे. बात वर्ष 2019 की है, जब वे बीए सेकंड ईयर का अंतिम पेपर देकर कॉलेज से लौट रहे थे, तभी हादसे का शिकार हो गए. दुर्घटना में उनके दोनों पैर चले गए. तब लगा कि जैसे जीवन खत्म सा हो गया है. जैसे-तैसे उन्होंने पढ़ाई पूरी की.

पूल में तराशे जा रहे पैरास्विमर्स

उसी दौरान वह कोच शेर सिंह के संपर्क में आए तो उन्होंने बीकानेर से उन्हें जोधपुर बुला लिया. बीते दो-तीन माह में ही सहीराम ने इतनी जीवटता दिखाई कि पैरा स्विमिंग में नेशनल क्वालीफाइ कर लिया. कुछ ऐसी ही कहानियां जोधपुर में पैरा स्विमिंग की तैयारी कर रहे अन्य दिव्यांगों की भी हैं, जिन्होंने हादसों के बाद हार नहीं मानी और जीतने की जिद ने उनके इरादों को और मजबूत कर दिया.

डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज में कर रहे अभ्यास
जोधपुर के डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के स्विमिंग पूल में इन पैरा स्विमर को तराशा जा रहा है. यहां एक दर्जन से ज्यादा पैरा स्विमर हैं. जिनकी आंखों में भी अवनी लेखरा जैसे कुछ कर गुजरने की चाहत है. इनमें ज्यादातर पैरास्विमर्स गांवों से आते हैं. सीमित संसाधनों के साथ तैराकी ही ऐसा माध्यम है जिसमें वे कुछ कर सकते हैं. कोच शेर सिंह बताते हैं कि यह दिव्यांग तैराक पूरी तन्मयता से प्रेक्टिस कर रहे हैं. अब तक हमने विदेशी दिव्यांग खिलाड़ियों को ही तैरते देखा था लेकिन आने वाले ओलंपिक में हमारे खिलाड़ी भी प्रतियोगिता में नजर आएंगे.

जब से ओलंपिक में हमारे खिलाड़ियों ने मेडल जीत कर देश का नाम रोशन किया है तब से उनकी उम्मीदों को भी पंख लग गए हैं. हालांकि कोरोना के चलते दो साल तक पूल नहीं खुलने से वे काफी समय प्रैक्टिस नहीं कर सके लेकिन अब पूल खुलने के बाद से ये नियमित अभ्यास कर रहे हैं. सभी खिलाड़ी पूरी मेहनत से तैराकी कर रहे हैं. आपस में ही प्रतिस्पर्धा कर सभी कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- 12 साल से बच्चों को भगवद गीता पढ़ा रहे मुस्लिम शिक्षक

हादसे में एक हाथ गवां चुके तैराक भेराराम कहते हैं कि उन्हें खुद और कोच पर पूरा विश्वास है. उन्हें विश्वास है कि मेडल जीत कर देश का नाम रोशन करेंगे. इसी तरह से कुंति और सीता भी रोजाना प्रेक्टिस कर रही हैं. युधिष्ठर का कहना है कि वह स्टेट लेवल पर सिल्वर और गोल्ड मेडल जीत चुके हैं और अब नेशनल खेलना है. सहीराम ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने तीन माह में ही तैराकी सीख ली. कोरोना की तीसरी लहर के कारण प्रैक्टिस बंद हो गई थी. अब वापस स्विमिंग पूल शुरू हुए तो छह मार्च को आयोजित स्टेट लेवल चैम्पियनशिप में तीन गोल्ड जीत कर नेशनल का दावा मजबूत किया है.

जोधपुर: कहते हैं कि जब अपनी कमजोरी को ही आप सबसे बड़ी ताकत बना लें तो हर मुश्किल आसान हो जाती है. जोधपुर में पैरास्विमर्स भी शायद इसी जज्बे के साथ ओलंपिक में मेडल जीतने का सपना संजोए रोजाना (paraswimmers practicing in Jodhpur) अभ्यास कर रहे हैं. दिव्यांग होने के बावजूद वे घंटों प्रैक्टिस कर रहे हैं. ओलंपिक फतह करने की जिद उनकी आंखों में साफ नजर आ रही है. कई खिलाड़ी नेशनल क्वालिफाई कर चुके हैं और अब उनकी निगाहें ओलंपिक पर हैं.

पैरास्विमर्स की बात करें तो किसी ने सड़क हादसे में अपने पैर गंवा दिए हैं तो किसी का एक हाथ नहीं हैं. लेकिन उनका हौसला कम नहीं है. सड़क हादसे में अपने दोनों पैर खोने के बाद पैरास्विमर सहीराम भी डिप्रेशन में चले गए थे. बात वर्ष 2019 की है, जब वे बीए सेकंड ईयर का अंतिम पेपर देकर कॉलेज से लौट रहे थे, तभी हादसे का शिकार हो गए. दुर्घटना में उनके दोनों पैर चले गए. तब लगा कि जैसे जीवन खत्म सा हो गया है. जैसे-तैसे उन्होंने पढ़ाई पूरी की.

पूल में तराशे जा रहे पैरास्विमर्स

उसी दौरान वह कोच शेर सिंह के संपर्क में आए तो उन्होंने बीकानेर से उन्हें जोधपुर बुला लिया. बीते दो-तीन माह में ही सहीराम ने इतनी जीवटता दिखाई कि पैरा स्विमिंग में नेशनल क्वालीफाइ कर लिया. कुछ ऐसी ही कहानियां जोधपुर में पैरा स्विमिंग की तैयारी कर रहे अन्य दिव्यांगों की भी हैं, जिन्होंने हादसों के बाद हार नहीं मानी और जीतने की जिद ने उनके इरादों को और मजबूत कर दिया.

डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज में कर रहे अभ्यास
जोधपुर के डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के स्विमिंग पूल में इन पैरा स्विमर को तराशा जा रहा है. यहां एक दर्जन से ज्यादा पैरा स्विमर हैं. जिनकी आंखों में भी अवनी लेखरा जैसे कुछ कर गुजरने की चाहत है. इनमें ज्यादातर पैरास्विमर्स गांवों से आते हैं. सीमित संसाधनों के साथ तैराकी ही ऐसा माध्यम है जिसमें वे कुछ कर सकते हैं. कोच शेर सिंह बताते हैं कि यह दिव्यांग तैराक पूरी तन्मयता से प्रेक्टिस कर रहे हैं. अब तक हमने विदेशी दिव्यांग खिलाड़ियों को ही तैरते देखा था लेकिन आने वाले ओलंपिक में हमारे खिलाड़ी भी प्रतियोगिता में नजर आएंगे.

जब से ओलंपिक में हमारे खिलाड़ियों ने मेडल जीत कर देश का नाम रोशन किया है तब से उनकी उम्मीदों को भी पंख लग गए हैं. हालांकि कोरोना के चलते दो साल तक पूल नहीं खुलने से वे काफी समय प्रैक्टिस नहीं कर सके लेकिन अब पूल खुलने के बाद से ये नियमित अभ्यास कर रहे हैं. सभी खिलाड़ी पूरी मेहनत से तैराकी कर रहे हैं. आपस में ही प्रतिस्पर्धा कर सभी कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

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हादसे में एक हाथ गवां चुके तैराक भेराराम कहते हैं कि उन्हें खुद और कोच पर पूरा विश्वास है. उन्हें विश्वास है कि मेडल जीत कर देश का नाम रोशन करेंगे. इसी तरह से कुंति और सीता भी रोजाना प्रेक्टिस कर रही हैं. युधिष्ठर का कहना है कि वह स्टेट लेवल पर सिल्वर और गोल्ड मेडल जीत चुके हैं और अब नेशनल खेलना है. सहीराम ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने तीन माह में ही तैराकी सीख ली. कोरोना की तीसरी लहर के कारण प्रैक्टिस बंद हो गई थी. अब वापस स्विमिंग पूल शुरू हुए तो छह मार्च को आयोजित स्टेट लेवल चैम्पियनशिप में तीन गोल्ड जीत कर नेशनल का दावा मजबूत किया है.

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