बेंगलुरु: पूरे देश में आज से मुहर्रम का महीना शुरू हो गया है. मुहर्रम के इस महीने में इमाम हसन, हुसैन, मौला अली और बीबी फातिमा अल-ज़हरा को याद किया जाता है. कर्नाटक में भी मुहर्रम पर यही सिलसिला जारी रहता है. बता दें, कोरोना की दूसरी लहर के चलते सुन्नी और शियाओं ने कोविड प्रोटोकॉल का प्रयोग करते हुए बेंगलुरु के विभिन्न शहरों पर ज़िक्र अहल-ए-बेत सभाएं आयोजित कीं.
मुहर्रम के महीने और अहल-ए-बेत के प्यार के बारे में कर्नाटक मिन्हाज उलेमा परिषद के अध्यक्ष मौलाना जुल्फिकार अली खान ने कहा कि अहल-ए-बेत का प्यार आस्तिक होने की एक शर्त है, लेकिन इसके बिना अल्लाह सर्वशक्तिमान की दृष्टि में नमाज़ स्वीकार्य नहीं है.
मौलाना जुल्फिकार अली खान ने हज़रत अबू मसूद (अल्लाह उस पर प्रसन्न हो सकता है) की एक हदीस का हवाला देते हुए कहा कि प्यारे पैगंबर (अल्लाह की शांति और आशीर्वाद उस पर हो) ने कहा कि जिस किसी ने नमाज़ पढ़ी और मुझ पर और मेरे परिवार पर नमाज़ नहीं भेजी वह कतई मंजूर नहीं होगा.
इस संबंध में मिन्हाज-उल-कुरान कर्नाटक के चीफ अयूब अंसारी ने कहा कि अहल-ए-बैत का प्यार मुहर्रम पर ही नहीं बल्कि पूरे साल भर जताना चाहिए कि वह मोक्ष का स्रोत है.