नई दिल्ली: साल 2018 से 2023 के बीच अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 19,000 से ज्यादा छात्रों ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) से ड्रॉपआउट किया है. यह आंकड़ा केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने बुधवार को राज्यसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में साझा किया.
तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करने वाली भारत की संसद की सदस्य तिरुचि शिवा ने सरकार से पिछले पांच वर्षों में आईआईटी, आईआईएम और अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों से बाहर होने वाले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों की संख्या के बारे में पूछा था. वह यह भी जानना चाहती थीं कि 'क्या सरकार ने इन उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी, एससी और एसटी छात्रों की उच्च ड्रॉपआउट दर के कारणों के संबंध में कोई अध्ययन किया है.'
शिवा के जवाब में, सरकार ने खुलासा किया कि 6,901 ओबीसी उम्मीदवार, 3,596 एससी और 3,949 एसटी छात्र केंद्रीय विश्वविद्यालयों से बाहर हो गए. इसी तरह, 2,544 ओबीसी उम्मीदवार, 1,362 एससी और 538 एसटी छात्र आईआईटी से बाहर हो गए. इसके अतिरिक्त, 133 ओबीसी, 143 एससी और 90 एसटी उम्मीदवार पिछले पांच वर्षों में आईआईएम से बाहर हो गए.
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सरकार ने बताया कि सरकार ने फीस में कमी, अधिक संस्थानों की स्थापना, छात्रवृत्ति, राष्ट्रीय स्तर की छात्रवृत्ति को प्राथमिकता देने जैसे कई कदम उठाए हैं, ताकि गरीब वित्तीय पृष्ठभूमि वाले छात्रों को उनकी शिक्षा जारी रखने में मदद मिल सके. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों के कल्याण के लिए आईआईटी में ट्यूशन फीस की छूट, केंद्रीय क्षेत्र योजना के तहत राष्ट्रीय छात्रवृत्ति का अनुदान, संस्थानों में छात्रवृत्ति आदि जैसी योजनाएं भी हैं.