जयपुर. राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल चुनावी घोषणा पत्र तैयार कर रहे हैं. इस बीच प्रदेश के 10 हजार से ज्यादा बच्चों ने भी अपना मांग पत्र तैयार किया है. ये मांग पत्र राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को सौंपा गया है. बच्चों की मांग है कि राजनीतिक दल इन मूलभूत आवश्यकताओं को अपने घोषणा पत्र में शामिल करें. इस मांग पत्र में शिक्षा-स्वास्थ्य का अधिकार, साइबर ठगी, स्कूलों में होने वाले घटनाओं की रोकथाम सहित कई बिंदु शामिल किए गए हैं.
2 महीने में बच्चों ने तैयार किया : राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण साझा अभियान की ओर से राज्य के विभिन्न जिलों से घुमंतु एवं विमुक्त जनजाति, रेगिस्तानी क्षेत्र, आदिवासी क्षेत्र, विशेष योग्यजन सहित अन्य वर्ग के 10 हजार से अधिक बच्चों के साथ मिलकर 2 महीने में 24 पेज का मांग पत्र तैयार किया है. इसमें 100 से अधिक मूलभूत मांगे हैं, जिनका अधिकार संविधान ने तो दिया हुआ है, लेकिन बच्चों को नहीं मिल पा रहा है.
100 से अधिक छोटी मांगें हैं : कार्यक्रम संयोजक मनीष सिंह गौड़ ने बताया कि इस मांग पत्र में शिक्षा-स्वास्थ्य का अधिकार, साइबर ठगी, स्कूलों में होने वाली घटनाओं की रोकथाम सहित 100 से अधिक छोटी मांगें हैं, जो प्रदेश के बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी हैं. इस मांग पत्र को बनाने में 2 महीने से अधिक का समय लगा है. इसे प्रदेश के अलग-अलग जिलों के बच्चों के साथ मिलकर बनाया गया है. आदिवासी से लेकर सामान्य वर्ग और गांव-ढाणी से लेकर शहरी बच्चों ने इस मांग पत्र को तैयार किया है.
मांगें घोषणा पत्र में शामिल हों : मनीष सिंह ने बताया कि बच्चों की ओर से विधानसभा चुनाव 2023 के चुनावी घोषणा-पत्र का हिस्सा बनाए जाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को अपना मांग-पत्र दिया गया है. इस दौरान राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, कांग्रेस पार्टी से परेश व्यास, भारतीय जनता पार्टी से डॉ. अपूर्वा सिंह चौहान, आम आदमी पार्टी से योगेश गुप्ता, लाल सिंह देवासी, सीपीआई-एम से सुमित्रा चोपड़ा, सीपीआई से निशा सिद्दू ने इन मांगों को अपनी पार्टी के चुनावी घोषणा-पत्र में सम्मिलित करने की शपथ ली. साथ ही शपथ-पत्र पर हस्ताक्षर भी किए.
बच्चों की प्रमुख मांगें
- स्वास्थ्य: प्रत्येक विद्यालय में प्रत्येक माह में एक बार बच्चों के लिए निःशुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर का आयोजन होना चाहिए. साथ ही किशोर और किशोरियों के स्वास्थ्य और विकास संबंधी समस्याओं के निराकरण के साथ उचित परामर्श के लिए पंचायत स्तर पर स्वास्थ्य परामर्श केन्द्र खोले जाएं.
- शिक्षा : राज्य में निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 का विस्तार 12वीं कक्षा तक किया जाए. इसके साथ राज्य के समस्त राजकीय और गैर राजकीय विद्यालयों में निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के निर्धारित मानकों की पूर्ण पालना के लिए कार्य-याजना बनाई जाए. साथ ही बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विद्यालयों में सी.सी.टी.वी कैमरे लगवाए जाएं.
- विकास : आंगनबाड़ी केंद्र में स्वास्थ्य पोषण के साथ-साथ शाला पूर्व शिक्षा पद्धति में सुधार किया जाए. साथ ही आंगनबाड़ी केन्द्रों पर निशुल्क सेनेटरी नेपकिन और स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था की जाए और राज्य में मध्यान्ह भोजन (मिड-डे-मील) कार्यक्रम का विस्तार 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए किया जाए.
- बाल संरक्षण : प्रदेश के सभी जिलों में बालिका गृह की स्थापना की जाए. साथ ही बच्चों में बढ़ते इंटरनेट और मोबाइल के उपयोग को दृष्टिगत रखते हुए बच्चों के लिए ऑनलाइन सेफ्टी और साइबर सुरक्षा कार्यक्रम शुरू किया जाए.
- सहभागिता : विद्यालयों में स्थापित बाल समूह, जैसे चाइल्ड राइट क्लब, मीना मंच, राजू मंच और बाल सभा में सभी बच्चों की सहभागिता और नियमानुसार बैठकों का आयोजन सुनिश्चित किया जाए. साथ ही विद्यालयों और समुदाय स्तर पर होने वाले खेलों में सभी बच्चों को भाग लेने के अवसर दिए जाएं, ताकि प्रतिभाशाली बच्चों को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय खेलों में अवसर मिल सकें.
- दिव्यांग बच्चे : दिव्यांगता के बारे में समुदाय को जागरुक किया जाए. विशेष कैंप लगाकर ऐसे बच्चों को चिह्नित किया जाए और मार्गदर्शन के लिए विशेषज्ञों की टीम उपलब्धता सुनिश्चित की जाए. इसके साथ दिव्यांग बच्चों की विशेष आवश्यकताओं के आधार पर अध्ययन सामग्री का निर्माण, सांकेतिक भाषा या ऑडियो उपकरणों और ऑनलाइन माध्यमों का उपयोग के साथ विशेष परिवहन सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं.
- जनजाति क्षेत्र से बच्चे : समीपवर्ती राज्यों की सीमा से सटे गावों से बाल श्रम और अन्य प्रयोजन के लिए बाल तस्करी की रोकथाम सुनिश्चित की जाए. साथ ही नाता प्रथा के नाम पर बालिकाओं की खरीद-फरोख्त की रोकथाम के लिए कठोर कानून बनाया जाए.
- रेगिस्तानी क्षेत्र से बच्चे : मरुस्थलीय क्षेत्रों के बच्चों के घर से विद्यालय की दूरी की अधिकता को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक विद्यालय में परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराई जाए.
- घुमंतु/अर्ध घुमंतु/विमुक्त समुदाय के बच्चे : घुमंतु समुदायों के शिक्षा से वंचित बच्चों को चिह्नित कर आवासीय और मोबाइल विद्यालयों के माध्यमों से ऐसे समुदायों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ा जाए.