लखनऊ: समाजवादी पार्टी विधानसभा सत्र में हंगामा कर चाहे जितना ध्यान खींचने की कोशिश करे, लेकिन असल में पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बड़ी शिकायत रही है कि उनके नेता जनता से दूर होते जा रहे हैं. समाजवादी पार्टी की बड़ी सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओपी राजभर के मुताबिक समाजवादी पार्टी के नेता जब उनसे मिलते हैं तो उनका आग्रह होता है कि वो अखिलेश यादव को समझाएं कि घर में न बैठकर जनता के बीच जाएं.ओपी राजभर ने कहा है कि पार्टी को मज़बूत करने के लिए सिलसिलेवार बैठकें होनी ज़रूरी है.
सवाल है कि ओपी राजभर के बयान को कितनी गंभीरता से लेना चाहिए,राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे का मानना है कि,"ओपी राजभर जब भाजपा सरकार में मंत्री रहे तब भी वो सरकार को लगातार नसीहतें देते रहे, उसी का परिणाम रहा कि वो 2 साल के अंदर खुद ही गठबंधन छोड़कर चले गए थे.ये तो तय था कि ओपी राजभर जिस भी दल में रहते हैं,नसीहतें देते रहते हैं,ये बड़बोलेपन के महारथी माने जाते हैं." तो क्या ओपी राजभर के इस बयान को उनका बड़बोलापन मान लेना चाहिए या इसके कुछ और मायने भी हो सकते हैं?
दरअसल विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद से ही समाजवादी पार्टी में असंतोष पनप रहा है. आज़म खान, शिवपाल यादव जैसे बड़े नेता अखिलेश यादव से नाराज़ बताए जा रहे हैं. सियासी गलियारे में ये सुगबुगाहट भी है कि दोनों असंतुष्ट नेता मिलकर यूपी में तीसरा मोर्चा खड़ा करने की दिशा में भी बढ़ सकते हैं. आज़म खान का सपा छोड़ना पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक पर चोट करेगा तो शिवपाल यादव का जाना यादव वोट बैंक पर असर डाल सकता है.
राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे का कहना है कि," ओपी राजभर को भी अपना राजनीतिक भविष्य समाजवादी पार्टी के साथ नज़र नहीं आ रहा है.जिस तरह आज़म खान और शिवपाल यादव ने किनारा कर लिया वैसे ही ओपी राजभर भी कहीं न कहीं नए राजनीतिक खेमे की तलाश में हैं.ओपी राजभर का ऐसा बयान समाजवादी पार्टी से किनारा करने की उनकी योजना के तौर पर देखा जा सकता है."
अगर उत्तर प्रदेश में तीसरे मोर्च जैसी शक्ल बनती है तो क्या ओपी राजभर जैसे बड़े OBC नेता समाजवादी पार्टी छोड़ उसमें शामिल हो सकते हैं.इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे का कहना है कि,"अगर तीसरा मोर्चा बनता है तो ओपी राजभर इसमें शामिल हो सकते हैं.इसमें ओपी राजभर प्रमुख भूमिका में आ सकते हैं. अगर शिवपाल और आज़म खान के साथ ओपी राजभर हाथ मिलाते हैं तो तीसरा मोर्चा मज़बूत होगा,खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में."
अगर उमाशंकर दुबे के विश्लेषण को माना जाए तो ओपी राजभर ने सपा से किनारा करने के लिए बहाने तलाशने शुरू कर दिए हैं. वैसे भी पिछले दिनों उनकी बीजेपी से बढ़ती नज़दीकियों की चर्चा भी हो रही थी. ऐसे में अगर ओपी राजभर गठबंधन छोड़ते हैं तो तो अखिलेश के लिए उत्तर प्रदेश में खिसकती ज़मीन बचाना और मुश्किल हो सकता है. ओपी राजभर की अखिलेश को खुली नसीहत साफ इशारा करती है कि सपा नेता को न केवल अपने पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा रखने की ज़िम्मेदारी है, बल्कि सहयोगियों को एकजुट रखने की चुनौती भी है.
2022 के विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर की सुभासपा ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर 18 सीटों पर चुनाव लड़ा और 6 सीटें जीतीं, जबकि 2017 के चुनाव में ओपी राजभर ने बीजेपी के साथ मिलकर 8 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 4 सीटें जीती थीं. इस बार अखिलेश यादव के साथ मिलकर सरकार बनाने का सपना देखने वाले ओपी राजभर को भी विधानसभा चुनाव के नतीजों से तगड़ा झटका लगा. समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगियों ने 125 सीटें हासिल की जिसमें 111 सीटें समाजवादी पार्टी को मिली.नतीजोंं के बाद से ही माना जा रहा था कि ओपी राजभर नया ठिकाना ढूंढने की शुरुआत कर देंगे, संकेत कुछ वैसे ही मिल रहे हैं.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप