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पूर्वोत्तर में सीमा विवाद को राजनीतिक सहमति से ही किया जा सकता है हल: रिपुन बोरा

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Published : Jul 29, 2021, 11:04 PM IST

Updated : Jul 30, 2021, 3:56 AM IST

Assam Mizoram Clash लैलापुर-वैरेंगटे इलाके में असम और मिजोरम के बीच लंबे समय से सीमा विवाद है. सोमवार को यहां मिजोरम पुलिस ने असम के पुलिस अधिकारियों की एक टीम पर फायरिंग की, जिसमें असम पुलिस के 6 कर्मियों और एक नागरिक की मौत हो गई. इसके बाद यहां CAPF की दो कंपनियों को तैनात किया गया था.

Assam Mizoram Clash, Congress Rajya Sabha MP Ripun Bora
रिपुन बोरा

नई दिल्ली: असम और मिजोरम सरकार पर विपक्षी दल कांग्रेस केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकार को लगातार घेर रहा है. अब विवादित सीमा क्षेत्र से राज्य पुलिस बलों की वापसी पर और सीएपीएफ की तैनाती पर कांग्रेस के राज्य सभा सांसद रिपुन बोरा ने सवाल उठाया है.

'ईटीवी भारत' से बातचीत में बोरा ने कहा ​कि यह कोई स्थाई समाधान नहीं है. वास्तव में, इन सुरक्षा बलों की पहले से ही थीं और उनकी उपस्थिति के बावजूद भीषण घटना 26 जुलाई को हुई. राजनीतिक नेतृत्व को इस मामले पर एक साथ बैठना चाहिए.

उन्होंने कहा कि दशकों पुरानी समस्या के स्थायी समाधान के लिए सरकार को दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों और राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय दलों सहित पूर्वोत्तर के सभी राजनीतिक दलों के साथ-साथ अन्य हितधारकों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में एक बैठक बुलानी चाहिए. कहा कि हमने इस मामले पर सदन में चर्चा की मांग की, लेकिन अन्य मुद्दों पर विरोध के कारण हमारा मामला नहीं उठाया जा सका.

रिपुन बोरा ने गुरुवार को राज्यसभा में भी कामकाज स्थगित करने की मांग की. इसके अलाव नियम 267 के तहत सीमा विवाद पर चर्चा कराने की भी मांग की. बोरा ने कहा कि हालांकि हमने सदन में इस मामले पर चर्चा की मांग की है, लेकिन अन्य मुद्दों पर विरोध के कारण हमारा मामला सदन में नहीं उठाया जा सका.

उन्होंने कहा कि दोनों राज्यों के बीच वर्तमान तनावपूर्ण स्थिति के चलते हमें और भीड़ हिंसा की आशंका है. यदि इस मामले को सकारात्मक राजनीतिक उपायों से तत्काल नहीं निपटाया गया तो दोनों राज्यों में स्थिति बद से बदतर हो सकती है और अन्य पूर्वोत्तर राज्य बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं.

असम जातीय परिषद (एजेपी)ने भी इस विवाद के समाधान के लिए प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की मांग की. इस विपक्षी दल ने कछार जिले के ललितपुर की स्थिति के लिए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा को जिम्मेदार ठहराया.

अंग्रेजों के जमाने में ही पड़ गई थी विवाद की नींव
इस विवाद को खड़ा करने वाले अंग्रेज ही थे. आजादी के बाद सिर्फ मिजोरम ही नहीं, नगालैंड, अरुणाचल और मेघालय भी असम का हिस्सा रहे. असम से कब अलग हुए, आगे बताएंगे. असम के इतने बड़े इलाके में कई ट्राइब्स के लोग रहते थे. मिजो, नगा, खासी, जयंतिया, गारो जैसे कई ट्राइब्स. इन ट्राइब्स का अपना इलाका भी था, जिसे हिल्स कहते थे. जैसे नगा हिल्स, जयंतिया हिल्स. मिजो लोगों का रिहायशी इलाका लुशाई हिल्स था, जो असम के कछार जिले में आता था. जब ट्राइबल अस्मिता की बात हुई तब अंग्रेजों ने 1875 में उनके इलाकों का सीमांकन किया. लुशाई पहाड़ियों और कछार मैदानों के बीच की सीमा खींची गई.

1933 की अधिसूचना को नहीं मानता मिजोरम
फिर आया 1933 का दौर, जब मणिपुर की रियासत ने बॉर्डर के मसले को उठाया. अंग्रेजों ने एक बार फिर बॉर्डर पर सीमा रेखा खींची. 1933 की अधिसूचना के जरिए लुशाई हिल्‍स और मणिपुर का सीमांकन किया गया. मिज़ो लोग इस सीमा को स्वीकार नहीं करते हैं. मिजोरम के नेताओं का कहना है कि मिजो समाज से सलाह नहीं ली गई थी, इसलिए वह 1933 की अधिसूचना को नहीं मानते. जबकि असम सरकार इस अधिसूचना का पालन करती है. जब 1972 में मिजोरम को असम से अलग किया गया था, तब दोनों राज्यों में नो मेंस लैंड को बरकरार रखने पर सहमति बनी थी.

दोनों राज्यों के तीन-तीन जिले आपस में मिलते हैं

असम और मिजोरम की सीमा 164.6 किलोमीटर लंबी है. असम की बराक घाटी के जिले कछार, करीमगंज और हैलाकांडीए मिजोरम के तीन जिलों से मिलते हैं. मिजोरम का आइजोल, कोलासिब और मामित इलाका असम से जुड़ता है. मिजोरम का दावा है कि उसके लगभग 509 वर्गमील इलाके पर असम का कब्‍जा है.

विवाद की जड़ में कई अन्य कारण भी हैं

  • जो राज्य असम से अलग हुए, वे अपने सांस्कृतिक और पारंपरिक पहचान पर पुरानी छाप नहीं दिखाना चाहते हैं. इसका मनोवैज्ञानिक असर छोटे-मोटे विवादों पर पड़ता है.
  • पहाड़ी इलाकों में खेती योग्य जमीन पर सबकी नजर रहती है. आज के दौर में यह इलाके कमर्शल वैल्यू भी रखते हैं. इस कारण जमीन का विवाद दो राज्यों के लिए बड़ा हो जाता है
  • अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम और मणिपुर में इनर लाइन परमिट प्रणाली लागू है. इन राज्यों में जाने के लिए असमिया लोगों को भी परमिट लेनी पड़ती है जबकि वे लोग बिना रोकटोक असम आते हैं. इसके खिलाफ असम में माहौल भी है.

असम का अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम के साथ सीमा को लेकर विवाद है. पिछले साल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक समिति का गठन किया था.

पढ़ें:असम विधानसभा चुनाव महागठबंधन में लड़ने के निर्णय को AICC ने दी थी मंजूरी: रिपुन बोरा

ये था मामला
सोमवार को असम के कछार जिले से सटी सीमा पर दो गुटों में झड़प हुई थी. लैलापुर-वैरेंगटे इलाके में दोनों राज्यों का सीमा विवाद है. झड़प के दौरान यहां दोनों राज्यों की पुलिस और स्थानीय लोग इकट्ठा हो गए. आरोप है कि संघर्ष के दौरान मिजोरम पुलिस ने असम के पुलिस अधिकारियों की एक टीम पर फायरिंग की, जिसमें असम पुलिस के 6 कर्मियों और एक नागरिक की मौत हो गई. साथ ही एक एसपी सहित 85 से अधिक अन्य लोग जख्मी हो गए. तनाव के बाद यहां सीआरपीएफ की दो कंपनियों को तैनात किया गया था.

नई दिल्ली: असम और मिजोरम सरकार पर विपक्षी दल कांग्रेस केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकार को लगातार घेर रहा है. अब विवादित सीमा क्षेत्र से राज्य पुलिस बलों की वापसी पर और सीएपीएफ की तैनाती पर कांग्रेस के राज्य सभा सांसद रिपुन बोरा ने सवाल उठाया है.

'ईटीवी भारत' से बातचीत में बोरा ने कहा ​कि यह कोई स्थाई समाधान नहीं है. वास्तव में, इन सुरक्षा बलों की पहले से ही थीं और उनकी उपस्थिति के बावजूद भीषण घटना 26 जुलाई को हुई. राजनीतिक नेतृत्व को इस मामले पर एक साथ बैठना चाहिए.

उन्होंने कहा कि दशकों पुरानी समस्या के स्थायी समाधान के लिए सरकार को दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों और राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय दलों सहित पूर्वोत्तर के सभी राजनीतिक दलों के साथ-साथ अन्य हितधारकों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में एक बैठक बुलानी चाहिए. कहा कि हमने इस मामले पर सदन में चर्चा की मांग की, लेकिन अन्य मुद्दों पर विरोध के कारण हमारा मामला नहीं उठाया जा सका.

रिपुन बोरा ने गुरुवार को राज्यसभा में भी कामकाज स्थगित करने की मांग की. इसके अलाव नियम 267 के तहत सीमा विवाद पर चर्चा कराने की भी मांग की. बोरा ने कहा कि हालांकि हमने सदन में इस मामले पर चर्चा की मांग की है, लेकिन अन्य मुद्दों पर विरोध के कारण हमारा मामला सदन में नहीं उठाया जा सका.

उन्होंने कहा कि दोनों राज्यों के बीच वर्तमान तनावपूर्ण स्थिति के चलते हमें और भीड़ हिंसा की आशंका है. यदि इस मामले को सकारात्मक राजनीतिक उपायों से तत्काल नहीं निपटाया गया तो दोनों राज्यों में स्थिति बद से बदतर हो सकती है और अन्य पूर्वोत्तर राज्य बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं.

असम जातीय परिषद (एजेपी)ने भी इस विवाद के समाधान के लिए प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की मांग की. इस विपक्षी दल ने कछार जिले के ललितपुर की स्थिति के लिए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा को जिम्मेदार ठहराया.

अंग्रेजों के जमाने में ही पड़ गई थी विवाद की नींव
इस विवाद को खड़ा करने वाले अंग्रेज ही थे. आजादी के बाद सिर्फ मिजोरम ही नहीं, नगालैंड, अरुणाचल और मेघालय भी असम का हिस्सा रहे. असम से कब अलग हुए, आगे बताएंगे. असम के इतने बड़े इलाके में कई ट्राइब्स के लोग रहते थे. मिजो, नगा, खासी, जयंतिया, गारो जैसे कई ट्राइब्स. इन ट्राइब्स का अपना इलाका भी था, जिसे हिल्स कहते थे. जैसे नगा हिल्स, जयंतिया हिल्स. मिजो लोगों का रिहायशी इलाका लुशाई हिल्स था, जो असम के कछार जिले में आता था. जब ट्राइबल अस्मिता की बात हुई तब अंग्रेजों ने 1875 में उनके इलाकों का सीमांकन किया. लुशाई पहाड़ियों और कछार मैदानों के बीच की सीमा खींची गई.

1933 की अधिसूचना को नहीं मानता मिजोरम
फिर आया 1933 का दौर, जब मणिपुर की रियासत ने बॉर्डर के मसले को उठाया. अंग्रेजों ने एक बार फिर बॉर्डर पर सीमा रेखा खींची. 1933 की अधिसूचना के जरिए लुशाई हिल्‍स और मणिपुर का सीमांकन किया गया. मिज़ो लोग इस सीमा को स्वीकार नहीं करते हैं. मिजोरम के नेताओं का कहना है कि मिजो समाज से सलाह नहीं ली गई थी, इसलिए वह 1933 की अधिसूचना को नहीं मानते. जबकि असम सरकार इस अधिसूचना का पालन करती है. जब 1972 में मिजोरम को असम से अलग किया गया था, तब दोनों राज्यों में नो मेंस लैंड को बरकरार रखने पर सहमति बनी थी.

दोनों राज्यों के तीन-तीन जिले आपस में मिलते हैं

असम और मिजोरम की सीमा 164.6 किलोमीटर लंबी है. असम की बराक घाटी के जिले कछार, करीमगंज और हैलाकांडीए मिजोरम के तीन जिलों से मिलते हैं. मिजोरम का आइजोल, कोलासिब और मामित इलाका असम से जुड़ता है. मिजोरम का दावा है कि उसके लगभग 509 वर्गमील इलाके पर असम का कब्‍जा है.

विवाद की जड़ में कई अन्य कारण भी हैं

  • जो राज्य असम से अलग हुए, वे अपने सांस्कृतिक और पारंपरिक पहचान पर पुरानी छाप नहीं दिखाना चाहते हैं. इसका मनोवैज्ञानिक असर छोटे-मोटे विवादों पर पड़ता है.
  • पहाड़ी इलाकों में खेती योग्य जमीन पर सबकी नजर रहती है. आज के दौर में यह इलाके कमर्शल वैल्यू भी रखते हैं. इस कारण जमीन का विवाद दो राज्यों के लिए बड़ा हो जाता है
  • अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम और मणिपुर में इनर लाइन परमिट प्रणाली लागू है. इन राज्यों में जाने के लिए असमिया लोगों को भी परमिट लेनी पड़ती है जबकि वे लोग बिना रोकटोक असम आते हैं. इसके खिलाफ असम में माहौल भी है.

असम का अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम के साथ सीमा को लेकर विवाद है. पिछले साल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक समिति का गठन किया था.

पढ़ें:असम विधानसभा चुनाव महागठबंधन में लड़ने के निर्णय को AICC ने दी थी मंजूरी: रिपुन बोरा

ये था मामला
सोमवार को असम के कछार जिले से सटी सीमा पर दो गुटों में झड़प हुई थी. लैलापुर-वैरेंगटे इलाके में दोनों राज्यों का सीमा विवाद है. झड़प के दौरान यहां दोनों राज्यों की पुलिस और स्थानीय लोग इकट्ठा हो गए. आरोप है कि संघर्ष के दौरान मिजोरम पुलिस ने असम के पुलिस अधिकारियों की एक टीम पर फायरिंग की, जिसमें असम पुलिस के 6 कर्मियों और एक नागरिक की मौत हो गई. साथ ही एक एसपी सहित 85 से अधिक अन्य लोग जख्मी हो गए. तनाव के बाद यहां सीआरपीएफ की दो कंपनियों को तैनात किया गया था.

Last Updated : Jul 30, 2021, 3:56 AM IST
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