मुंबई : पंचायत चुनाव के लिए मध्य प्रदेश को ओबीसी आरक्षण की अनुमति सुप्रीम कोर्ट ने प्रदान कर दी है. लेकिन इस फैसले ने कई सारे सवालों को भी खड़े कर दिए हैं. महाराष्ट्र ने भी ऐसी ही एक याचिका लगाई थी, लेकिन क्योंकि सरकार ने कोर्ट के सामने पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध नहीं करवाए थे, इसलिए कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी.
अब विपक्षी दलों ने राज्य सरकार के रवैए को लेकर सवाल खड़े किए हैं. उनक कहना है कि बंटिया कमीशन को जो सहूलियतें और सहायता मिलनी चाहिए थी, राज्य सरकार ने उपलब्ध नहीं करवाए हैं. मसलन वित्तीय सहायता और स्टाफ की मदद. इसकी वजह से महाराष्ट्र के पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर बात आगे नहीं बढ़ सकी.
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को पंचायत चुनाव में आरक्षण की अनुमति तो दे दी, लेकिन आरक्षण की कुल सीमा 50 फीसदी के दायरे में ही रहेगी. शिवराज सरकार ने 10 मई 2022 को इस मामले में रिव्यू याचिका दायर की थी. अब महाराष्ट्र की विपक्षी पार्टी, भाजपा, उद्धव सरकार पर हमलावर है. पार्टी ने आरक्षण को लेकर महाविकास अघाड़ी सरकार की नीति और उनके ढीले रवैए पर सवाल खड़े किए हैं.
महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि वैसे तो सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला मध्य प्रदेश के लिए दिया है, लेकिन कोर्ट का यह फैसला पूरे देश में मान्य होना चाहिए. लेकिन सवाल ये है कि अब तक महाराष्ट्र सरकार कहां थी. सरकार ने कोर्ट में यह मुद्दा क्यों नहीं उठाया. वहां के ओबीसी नेताओं ने भी इस मुद्दे को क्यों नहीं उठाया.
27 जुलाई 2018 और 14 फरवरी 2020 को चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति एक्ट के तहत वशिम, भंडारा, अकोला, नागपुर और गोंदिया जिलों में पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी की थी. याचिकाकर्ता ने दावा किया कि इस चुनाव में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक हो गई थी. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 4 मार्च, 2021 को सुनवाई की. कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को अवैध ठहरा दिया. उसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट में अपील की. 29 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.