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अब केंद्र-केसीआर सरकार में एसटी कोटा बढ़ाने को लेकर नोंकझोक शुरू - केंद्र-केसीआर सरकार में नोंकझोक शुरू

राज्य के वित्त मंत्री टी. हरीश राव (State Finance Minister T. Harish Rao) ने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार (BJP government at the Center) ने इस तथ्य को नकार कर आदिवासियों का अपमान (Insulted The Tribals By Denying The Fact) किया है कि राज्य सरकार ने एसटी आरक्षण बढ़ाने के लिए कोई प्रस्ताव नहीं भेजा है. उन्होंने कहा, विधानसभा ने एसटी आरक्षण बढ़ाने के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया और इसे केंद्र को भेजा. मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो बार इस संबंध में लिखा और आदिवासी कल्याण मंत्री सत्यवती राठौड़ तथा अधिकारियों ने इस संबंध में केंद्र को कई पत्र लिखे थे.

Tribal Affairs Bishweshwar Tudu
केंद्रीय जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू
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Published : Apr 3, 2022, 6:06 PM IST

हैदराबाद : तेलंगाना विधानसभा (The Telangana Legislative Assembly) ने अनुसूचित जनजातियों (एसटी) का आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने के संबंध में एक विधेयक पारित करके पांच साल पहले इसे केंद्र की मंजूरी के लिए भेजा और अब यह मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में आ गया है. तेलंगाना की सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) (Telangana Rashtra Samithi (TRS)) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) (Bhartiya Janta Party) के बीच एसटी के लिए आरक्षण बढ़ाने में हुई देर अब एक-दूसरे पर दोषारोपण करने का जरिया बन गई है.

यह मसला पांच साल बाद अब सुर्खियों में आया, जब केंद्रीय जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू (Union Minister of State for Tribal Affairs Bishweshwar Tudu) ने 21 मार्च को लोकसभा में बताया कि उनके मंत्रालय को तेलंगाना सरकार से एसटी के लिए आरक्षण को बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने का कोई प्रस्ताव नहीं मिला है. वह तेलंगाना से कांग्रेस सांसद एन. उत्तम कुमार रेड्डी के एक सवाल का जवाब दे रहे थे. टीआरएस ने इस बयान के बाद तत्काल केंद्रीय मंत्री को पद से हटाने की मांग की थी. टीआरएस ने साथ ही लोकसभा को 'गुमराह' करने के लिए उनके खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव (Privilege Motion) पेश करने का नोटिस भी दिया.

टीआरएस ने कहा कि राज्य सरकार ने न केवल एक प्रस्ताव बनाया बल्कि विधानसभा ने अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को 6.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने का विधेयक पारित भी किया, जिसके बाद इसे जनजातीय मामलों के मंत्रालय को भेज दिया गया. टीआरएस सरकार, जो पहले से ही धान की खरीद को लेकर केंद्र के साथ तीखी नोकझोंक में लगी हुई है, उसने भाजपा पर अपना हमला तेज कर दिया है. वर्ष 2017 में तेलंगाना विधानसभा ने सर्वसम्मति से पिछड़े मुसलमानों और एसटी के लिए आरक्षण कोटा को क्रमश: 12 और 10 प्रतिशत तक बढ़ाने का एक विधेयक पारित किया था.

पढ़ें: लोकसभा में संविधान आदेश संशोधन विधेयक पारित, यूपी के 'गोंड' समुदाय को मिलेगा लाभ

राज्य के वित्त मंत्री टी. हरीश राव (State Finance Minister T. Harish Rao) ने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार (BJP government at the Center) ने इस तथ्य को नकार कर आदिवासियों का अपमान (Insulted The Tribals By Denying The Fact) किया है कि राज्य सरकार ने एसटी आरक्षण बढ़ाने के लिए कोई प्रस्ताव नहीं भेजा है. उन्होंने कहा, विधानसभा ने एसटी आरक्षण बढ़ाने के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया और इसे केंद्र को भेजा. मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो बार इस संबंध में लिखा और आदिवासी कल्याण मंत्री सत्यवती राठौड़ तथा अधिकारियों ने इस संबंध में केंद्र को कई पत्र लिखे थे.

मुसलमानों के लिए कोटा बढ़ाने के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध करने वाली भाजपा को छोड़कर, पूरे विपक्ष ने पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षण विधेयक, 2017 का समर्थन किया था. यह विधेयक पिछड़ा वर्ग (ई) श्रेणी के तहत मुसलमानों के बीच सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिये कोटा को मौजूदा चार प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने से संबंधित है. राज्य सरकार ने इस विधेयक को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के अनुरोध के साथ राष्ट्रपति की सहमति के लिए केंद्र को भेजा गया था, जैसा तमिलनाडु के मामले में किया गया था.

पढ़ें: ओडिशा HC ने मंत्री बिश्वेश्वर टूडु को दी अंतरिम राहत, गिरफ्तारी पर लगाई रोक

इस विधेयक ने तेलंगाना में कुल आरक्षण को बढ़ाकर 62 प्रतिशत कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों दोनों में सभी आरक्षणों पर 50 प्रतिशत की सीमा तय की है इसी कारण तेलंगाना संवैधानिक संशोधन के माध्यम से छूट चाहता है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने पूछा था, तमिलनाडु दो दशकों से 69 प्रतिशत आरक्षण लागू कर रहा है. पांच से छह राज्य 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण प्रदान कर रहे हैं. आप तेलंगाना को इससे कैसे इनकार कर सकते हैं? उन्होंने यह भी घोषणा की थी कि अगर केंद्र तेलंगाना के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार करता है, तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी.

केसीआर ने तर्क दिया था कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण प्रदान करने पर कोई संवैधानिक रोक नहीं है. उन्होंने कहा था कि तेलंगाना की 90 प्रतिशत आबादी पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक है तो ऐसे में राज्य को निश्चित रूप से 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण की आवश्यकता है. टीआरएस ने 2014 के चुनावों के दौरान वादा किया था कि राज्य में पिछड़ा वर्ग (ई) और अनुसूचित जनजातियों का कोटा उनकी आबादी के अनुपात में बढ़ाया जायेगा. केसीआर ने विधानसभा में साफ कर दिया था कि वह केंद्र से आग्रह नहीं करेंगे बल्कि नये कोटा को 9वीं अनुसूची में शामिल कराने के लिये संघर्ष करेंगे.

पढ़ें: Acid Attack : चिकन बढ़िया नहीं निकला तो दुकान मालिक पर फेंका तेजाब, 10 लोग झुलसे

हालांकि, यह पूरा मामला तब से अधर में लटका हुआ है. वर्ष 2018 के चुनावों में सत्ता पर दोबारा काबिज हुई टीआरएस इसके लिये केंद्र सरकार को दोषी ठहराती है. उसका कहना है कि राज्य सरकार के बार-बार अनुरोध के बावजूद केंद्र ने इस मुद्दे को लंबित रखा है. राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ ही एसटी आरक्षण का मुद्दा फिर से सुर्खियों में आ गया है. राज्य सरकार ने हाल ही में 80,000 पदों पर नियुक्ति करने की घोषणा की है. टीआरएस आदिवासियों से कह रही है कि केंद्र के कारण उन्हें अवसर से वंचित होना पड़ रहा है.

हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब किसी केंद्रीय मंत्री ने संसद को बताया है कि केंद्र को तेलंगाना सरकार से कोई प्रस्ताव नहीं मिला है. पिछले साल दिसंबर में, केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री ए. नारायणस्वामी ने लोकसभा को बताया था कि केंद्र को राज्य सरकार से कोई प्रस्ताव नहीं मिला है, जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये तेलंगाना में उनकी जनसंख्या प्रतिशत के अनुसार आरक्षण में वृद्धि की मांग की गयी है. इस बार भाजपा ने टीआरएस के बढ़ते दबाव को देखकर पूरी बहस को एक नया मोड़ दे दिया है. केंद्रीय पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि अगर तेलंगाना सरकार एसटी के लिये आरक्षण बढ़ाने का प्रस्ताव लाती है तो केंद्र हस्तक्षेप नहीं करेगा और न ही विरोध करेगा. तेलंगाना से सांसद रेड्डी ने अब गेंद को राज्य सरकार के पाले में डालते हुये कहा कि राज्यों को आरक्षण बढ़ाने का अधिकार है.

इससे दोनों पक्षों के बीच वाक्युद्ध शुरू हो गया है. तेलंगाना की आदिवासी कल्याण मंत्री सत्यवती राठौड़ ने भाजपा पर इस मुद्दे पर अवसरवादी राजनीति करने का आरोप लगाया है. उन्होंने किशन रेड्डी के बयान पर कहा, अगर आरक्षण का मुद्दा राज्य के दायरे में आता है तो केंद्र इसकी आधिकारिक घोषणा करने दें. उन्होंने कहा कि अगर किशन रेड्डी एसटी के कल्याण के लिये प्रतिबद्ध हैं, तो उन्हें अपने पद का इस्तेमाल करके केंद्र को आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा करने के लिये कहना चाहिये.

उन्होंने कहा, कांग्रेस और भाजपा दोनों ही आदिवासियों को अपनी वोट बैंक की राजनीति के लिये इस्तेमाल करते हैं. आदिवासी भाजपा को सबक सिखायेंगे. भाजपा न सिर्फ अवसरवादी राजनीति का सहारा ले रही है बल्कि फूट डालो और राज करो की नीति भी अपना रही है. सत्यवती राठौड़ ने बताया कि आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद, तेलंगाना में एसटी की आबादी बढ़कर 9.08 प्रतिशत हो गयी लेकिन आरक्षण वहीं रहा.

हैदराबाद : तेलंगाना विधानसभा (The Telangana Legislative Assembly) ने अनुसूचित जनजातियों (एसटी) का आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने के संबंध में एक विधेयक पारित करके पांच साल पहले इसे केंद्र की मंजूरी के लिए भेजा और अब यह मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में आ गया है. तेलंगाना की सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) (Telangana Rashtra Samithi (TRS)) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) (Bhartiya Janta Party) के बीच एसटी के लिए आरक्षण बढ़ाने में हुई देर अब एक-दूसरे पर दोषारोपण करने का जरिया बन गई है.

यह मसला पांच साल बाद अब सुर्खियों में आया, जब केंद्रीय जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू (Union Minister of State for Tribal Affairs Bishweshwar Tudu) ने 21 मार्च को लोकसभा में बताया कि उनके मंत्रालय को तेलंगाना सरकार से एसटी के लिए आरक्षण को बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने का कोई प्रस्ताव नहीं मिला है. वह तेलंगाना से कांग्रेस सांसद एन. उत्तम कुमार रेड्डी के एक सवाल का जवाब दे रहे थे. टीआरएस ने इस बयान के बाद तत्काल केंद्रीय मंत्री को पद से हटाने की मांग की थी. टीआरएस ने साथ ही लोकसभा को 'गुमराह' करने के लिए उनके खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव (Privilege Motion) पेश करने का नोटिस भी दिया.

टीआरएस ने कहा कि राज्य सरकार ने न केवल एक प्रस्ताव बनाया बल्कि विधानसभा ने अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को 6.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने का विधेयक पारित भी किया, जिसके बाद इसे जनजातीय मामलों के मंत्रालय को भेज दिया गया. टीआरएस सरकार, जो पहले से ही धान की खरीद को लेकर केंद्र के साथ तीखी नोकझोंक में लगी हुई है, उसने भाजपा पर अपना हमला तेज कर दिया है. वर्ष 2017 में तेलंगाना विधानसभा ने सर्वसम्मति से पिछड़े मुसलमानों और एसटी के लिए आरक्षण कोटा को क्रमश: 12 और 10 प्रतिशत तक बढ़ाने का एक विधेयक पारित किया था.

पढ़ें: लोकसभा में संविधान आदेश संशोधन विधेयक पारित, यूपी के 'गोंड' समुदाय को मिलेगा लाभ

राज्य के वित्त मंत्री टी. हरीश राव (State Finance Minister T. Harish Rao) ने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार (BJP government at the Center) ने इस तथ्य को नकार कर आदिवासियों का अपमान (Insulted The Tribals By Denying The Fact) किया है कि राज्य सरकार ने एसटी आरक्षण बढ़ाने के लिए कोई प्रस्ताव नहीं भेजा है. उन्होंने कहा, विधानसभा ने एसटी आरक्षण बढ़ाने के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया और इसे केंद्र को भेजा. मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो बार इस संबंध में लिखा और आदिवासी कल्याण मंत्री सत्यवती राठौड़ तथा अधिकारियों ने इस संबंध में केंद्र को कई पत्र लिखे थे.

मुसलमानों के लिए कोटा बढ़ाने के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध करने वाली भाजपा को छोड़कर, पूरे विपक्ष ने पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षण विधेयक, 2017 का समर्थन किया था. यह विधेयक पिछड़ा वर्ग (ई) श्रेणी के तहत मुसलमानों के बीच सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिये कोटा को मौजूदा चार प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने से संबंधित है. राज्य सरकार ने इस विधेयक को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के अनुरोध के साथ राष्ट्रपति की सहमति के लिए केंद्र को भेजा गया था, जैसा तमिलनाडु के मामले में किया गया था.

पढ़ें: ओडिशा HC ने मंत्री बिश्वेश्वर टूडु को दी अंतरिम राहत, गिरफ्तारी पर लगाई रोक

इस विधेयक ने तेलंगाना में कुल आरक्षण को बढ़ाकर 62 प्रतिशत कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों दोनों में सभी आरक्षणों पर 50 प्रतिशत की सीमा तय की है इसी कारण तेलंगाना संवैधानिक संशोधन के माध्यम से छूट चाहता है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने पूछा था, तमिलनाडु दो दशकों से 69 प्रतिशत आरक्षण लागू कर रहा है. पांच से छह राज्य 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण प्रदान कर रहे हैं. आप तेलंगाना को इससे कैसे इनकार कर सकते हैं? उन्होंने यह भी घोषणा की थी कि अगर केंद्र तेलंगाना के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार करता है, तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी.

केसीआर ने तर्क दिया था कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण प्रदान करने पर कोई संवैधानिक रोक नहीं है. उन्होंने कहा था कि तेलंगाना की 90 प्रतिशत आबादी पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक है तो ऐसे में राज्य को निश्चित रूप से 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण की आवश्यकता है. टीआरएस ने 2014 के चुनावों के दौरान वादा किया था कि राज्य में पिछड़ा वर्ग (ई) और अनुसूचित जनजातियों का कोटा उनकी आबादी के अनुपात में बढ़ाया जायेगा. केसीआर ने विधानसभा में साफ कर दिया था कि वह केंद्र से आग्रह नहीं करेंगे बल्कि नये कोटा को 9वीं अनुसूची में शामिल कराने के लिये संघर्ष करेंगे.

पढ़ें: Acid Attack : चिकन बढ़िया नहीं निकला तो दुकान मालिक पर फेंका तेजाब, 10 लोग झुलसे

हालांकि, यह पूरा मामला तब से अधर में लटका हुआ है. वर्ष 2018 के चुनावों में सत्ता पर दोबारा काबिज हुई टीआरएस इसके लिये केंद्र सरकार को दोषी ठहराती है. उसका कहना है कि राज्य सरकार के बार-बार अनुरोध के बावजूद केंद्र ने इस मुद्दे को लंबित रखा है. राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ ही एसटी आरक्षण का मुद्दा फिर से सुर्खियों में आ गया है. राज्य सरकार ने हाल ही में 80,000 पदों पर नियुक्ति करने की घोषणा की है. टीआरएस आदिवासियों से कह रही है कि केंद्र के कारण उन्हें अवसर से वंचित होना पड़ रहा है.

हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब किसी केंद्रीय मंत्री ने संसद को बताया है कि केंद्र को तेलंगाना सरकार से कोई प्रस्ताव नहीं मिला है. पिछले साल दिसंबर में, केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री ए. नारायणस्वामी ने लोकसभा को बताया था कि केंद्र को राज्य सरकार से कोई प्रस्ताव नहीं मिला है, जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये तेलंगाना में उनकी जनसंख्या प्रतिशत के अनुसार आरक्षण में वृद्धि की मांग की गयी है. इस बार भाजपा ने टीआरएस के बढ़ते दबाव को देखकर पूरी बहस को एक नया मोड़ दे दिया है. केंद्रीय पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि अगर तेलंगाना सरकार एसटी के लिये आरक्षण बढ़ाने का प्रस्ताव लाती है तो केंद्र हस्तक्षेप नहीं करेगा और न ही विरोध करेगा. तेलंगाना से सांसद रेड्डी ने अब गेंद को राज्य सरकार के पाले में डालते हुये कहा कि राज्यों को आरक्षण बढ़ाने का अधिकार है.

इससे दोनों पक्षों के बीच वाक्युद्ध शुरू हो गया है. तेलंगाना की आदिवासी कल्याण मंत्री सत्यवती राठौड़ ने भाजपा पर इस मुद्दे पर अवसरवादी राजनीति करने का आरोप लगाया है. उन्होंने किशन रेड्डी के बयान पर कहा, अगर आरक्षण का मुद्दा राज्य के दायरे में आता है तो केंद्र इसकी आधिकारिक घोषणा करने दें. उन्होंने कहा कि अगर किशन रेड्डी एसटी के कल्याण के लिये प्रतिबद्ध हैं, तो उन्हें अपने पद का इस्तेमाल करके केंद्र को आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा करने के लिये कहना चाहिये.

उन्होंने कहा, कांग्रेस और भाजपा दोनों ही आदिवासियों को अपनी वोट बैंक की राजनीति के लिये इस्तेमाल करते हैं. आदिवासी भाजपा को सबक सिखायेंगे. भाजपा न सिर्फ अवसरवादी राजनीति का सहारा ले रही है बल्कि फूट डालो और राज करो की नीति भी अपना रही है. सत्यवती राठौड़ ने बताया कि आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद, तेलंगाना में एसटी की आबादी बढ़कर 9.08 प्रतिशत हो गयी लेकिन आरक्षण वहीं रहा.

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