नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि जब नगर निगम के कर्मचारी शहर को 'निराशाजनक स्थिति' में छोड़कर जमीन पर अपने कार्यों का निर्वहन नहीं कर रहे, तो वह उनकी सहायता के लिए बाध्य नहीं है.
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने दिल्ली में नगर निगमों द्वारा नियुक्त शिक्षकों, अस्पताल कर्मी, स्वच्छता कर्मी और इंजीनियरों के वेतन और पेंशन का भुगतान नहीं होने की याचिका पर सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय राजधानी में सफाई और देखरेख की स्थिति पर निराशा प्रकट की.
पीठ ने कहा, 'एक तरफ हम वेतन और पेंशन का भुगतान करने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि निगम कर्मी, खासतौर पर सफाई कर्मचारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रहे हैं. परिणामस्वरूप शहर में डेंगू के मामले बढ़े हैं, कचरा और मलबा बढ़ा है तथा सड़कों की हालत खस्ता है.'
न्यायमूर्ति सांघी ने सैनिक फॉर्म क्षेत्र का विशेष रूप से जिक्र करते हुए कहा, 'वहां से प्लास्टिक का एक टुकड़ा तक नहीं हटाया जाता. सारी प्लास्टिक गायें खा रही हैं. वे मर जाएंगी.'
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, 'उन्हें कुछ काम करना होगा. जमीन पर कुछ भी काम नहीं है. सैकड़ों करोड़ (वेतन और पेंशन में) दिये जाते हैं. बहुत निराशाजनक स्थिति है. शहर में क्या हो रहा है? याचिकाकर्ताओं और नगर निगमों की जिम्मेदारी की भावना कहां है?'
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एक नगर निगम के वकील ने जब सूचित किया कि कर्मचारी आनन-फानन में हड़ताल पर चले जाते हैं, इस पर अदालत ने साफ किया कि अगर याचिकाकर्ता कर्मी अन्यायोचित और गलत तरह से हड़ताल पर जाते हैं तो वह अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल नहीं करेगी.
अदालत ने कहा, 'आप दोनों तरफ नहीं चल सकते. बहुत हो चुका.'
(पीटीआई-भाषा)