नई दिल्ली : सऊदी अरब ने रूस पर अमेरिका के प्रतिबंधों को नजर अंदाज करते हुए रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है. जबकि ऊर्जा की कमी वाले भारत और चीन दुनिया में ईंधन के शीर्ष खरीदारों में हैं. हालांकि, भारत और चीन का रूस से तेल खरीदना समझना आसान है लेकिन तेल समृद्ध सऊदी अरब ऐसा क्यों कर रहा है? शुरुआत के लिए, सऊदी अरब तेल के दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है. और ओपेक का नेतृत्व करता है. ओपेक तेल उत्पादक अर्थव्यवस्थाओं का एक कार्टेल है. रॉयटर्स द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-जून 2022 में, सऊदी अरब ने रूस से प्रतिदिन 647,000 टन आयात किया, जो एक साल पहले के (320,000 टन) के मुकाबले 102 फीसदी का उछाल आया है.
सऊदी अरब का गर्मियों में रूसी तेल खरीदना सामान्य बात नहीं है. माना जा रहा है कि रूस द्वारा दी जा रही छूट अभूतपूर्व है. इसलिए, रूसी ईंधन खरीदने से सऊदी अरब अपना कच्चा तेल अधिक से अधिक निर्यात कर सकेंगे. यह ऐसे समय में हो रहा है जब दुनिया भर में तेल की कीमतें सरपट बढ़ रही हैं. और रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण कई देशों ने उससे कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया गया है. इसने सऊदी अरब के लिए एक अवसर पैदा किया है.
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औसतन, रूसी तेल वैश्विक बेंचमार्क ब्रेंट से लगभग 35 डॉलर प्रति बैरल की औसत छूट पर जा रहा है. जबकि भारत शिपिंग और बीमा लागत में वृद्धि के कारण पूरी तरह छूट का लाभ नहीं उठा पाया है, जो कि यूक्रेन संघर्ष के कारण बढ़ गया है, फिर भी उसे रूसी तेल लगभग 10 डॉलर प्रति बैरल की छूट पर मिल रहा है. भारत ने पहले ही रूसी तेल के आयात में दस गुना वृद्धि कर दी है, जो अब भारत की आवश्यकता का 20% पूरा कर रहा है. इराक अभी भी भारत के लिए तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. रूसियों के साथ सऊदी के कारोबारी संबंध अमेरिका के प्रतिबंधों का मजाक उड़ाने जैसा है. हाल ही में सऊदी ने हाल में ही ब्रिक्स की सदस्यता के लिए आवेदन किया है. यह इस बात का संकेत है कि सऊदी अरब अमेरिकी नीतियों से इतर अपने रास्ते पर चलना चाहता है.
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ब्रिक्स, उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक मंच जिसे 2009 में स्थापित किया गया था. इसमें भारत, ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं. रिपोर्टों के अनुसार, सऊदी अरब के अलावा, ईरान और अर्जेंटीना उन देशों में शामिल हैं जिन्होंने ब्रिक्स सदस्यता के लिए आवेदन किया है. इस तरह का एक नया समूह अमेरिका के लिए चुनौती हो सकता है. फिलहाल, ब्रिक्स लगभग 43% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है. जिसमें सिर्फ भारत और चीन मिलकर दुनिया की 36% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. यह यूरोपीय संघ (ईयू) के खिलाफ है जो केवल 9.8% मानवता का प्रतिनिधित्व करता है. जबकि 30 सदस्यीय नाटो गठबंधन दुनिया की आबादी का लगभग 12.22% प्रतिनिधित्व करता है.
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