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पूर्वोत्तर के लोग CAA को कभी स्वीकार नहीं करेंगे : ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन

नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 232 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) 6 दिसंबर को सुनवाई करेगा. उधर, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन का कहना है कि पूर्वोत्तर के लोग सीएए को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट.

AASU chief advisor Samujjal Kumar Bhattacharya
समुज्जल कुमार भट्टाचार्य
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Published : Oct 31, 2022, 8:55 PM IST

नई दिल्ली: ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने सोमवार को दोहराया कि पूर्वोत्तर के लोग नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019 को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने CAA की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 6 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दिया है. कुल मिलाकर 232 याचिकाओं पर शीर्ष अदालत ने सुनवाई की. अगली तारीख से पहले मामले से संबंधित सभी प्रासंगिक दस्तावेजों के संकलन के लिए दो नोडल काउंसल भी नियुक्त किए हैं.

खास बातचीत

AASU के मुख्य सलाहकार समुज्जल कुमार भट्टाचार्य (AASU chief advisor Samujjal Kumar Bhattacharya) ने यहां नई दिल्ली में 'ईटीवी भारत' से कहा कि असम और पूरा पूर्वोत्तर पिछले कई दशकों से बाहरी घुसपैठ और आंतरिक अशांति के मुद्दे का सामना कर रहा है. भट्टाचार्य ने कहा, 'सीएए लागू करके केंद्र सरकार पूर्वोत्तर में अवैध प्रवाह को डंप करना चाहती है. सीएए असम समझौते की भावना के खिलाफ जाता है. पूर्वोत्तर अवैध विदेशियों के लिए डंपिंग ग्राउंड नहीं हो सकता है.'

गौरतलब है कि 1985 में केंद्र की तत्कालीन सरकार और राज्य सरकार ने ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इसके तहत वर्षों से चले आ रहे असम आंदोलन को समाप्त करने की कोशिश की गई थी. भट्टाचार्य ने कहा, 'हमें सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा है. हमें विश्वास है कि सीएए को वापस लेने से न्याय मिलेगा.' उन्होंने कहा, 'अगर सीएए खराब है और इनर लाइन परमिट और 6 अनुसूचित क्षेत्रों से इसकी जांच की जाती है, तो यह पूर्वोत्तर के अन्य हिस्सों के लिए कैसे अच्छा हो सकता है.'

कुल 232 याचिकाओं में से 53 पूर्वोत्तर से हैं. 50 याचिकाएं असम से और तीन त्रिपुरा से दायर की गई हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त नोडल काउंसलों को सलाह दी गई है कि वे अन्य बातों के अलावा भौगोलिक और धार्मिक वर्गीकरण के आधार को ध्यान में रखते हुए कुछ अन्य मामलों को प्रमुख मामलों के रूप में नामित करने पर विचार करें.

अदालत ने कहा कि असम और पूर्वोत्तर से संबंधित मुद्दों को उठाने वाली याचिकाओं को अलग-अलग वर्गीकृत किया जा सकता है. भट्टाचार्य ने कहा कि सीएए पर सुनवाई एक साथ जारी रहेगी लेकिन असम, त्रिपुरा और पूर्वोत्तर के लिए अलग-अलग समय होना चाहिए. भट्टाचार्य ने बताया, 'चूंकि पूर्वोत्तर राज्यों की स्थिति देश के अन्य हिस्सों से अलग है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वोत्तर के मामलों के अपने पहले के निर्देशों को अलग से बरकरार रखा है.'

उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने याचिकाएं दायर की हैं और उन्होंने मामले को दो हिस्सों में बांट दिया है. भट्टाचार्य ने कहा, 'चूंकि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) प्रमुख याचिकाकर्ता है, उनके तहत देश के सभी याचिकाकर्ताओं को एक साथ टैग किया गया है. जहां तक ​​पूर्वोत्तर का संबंध है, AASU प्रमुख याचिकाकर्ता होने के नाते क्षेत्र की अन्य सभी याचिकाओं को एक साथ टैग किया गया है.

जब से सरकार ने सीएए को मंजूरी दी है, पूर्वोत्तर राज्यों में एएएसयू और नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स यूनियन (एनईएसओ) के नेतृत्व में जोरदार विरोध हो रहा है. AASU और NESO दोनों पूरे पूर्वोत्तर राज्यों से CAA को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं. सीएए के साथ, सरकार का लक्ष्य धार्मिक उत्पीड़न के बाद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय को नागरिकता देना है.

पढ़ें- CAA की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 6 दिसंबर को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने सोमवार को दोहराया कि पूर्वोत्तर के लोग नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019 को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने CAA की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 6 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दिया है. कुल मिलाकर 232 याचिकाओं पर शीर्ष अदालत ने सुनवाई की. अगली तारीख से पहले मामले से संबंधित सभी प्रासंगिक दस्तावेजों के संकलन के लिए दो नोडल काउंसल भी नियुक्त किए हैं.

खास बातचीत

AASU के मुख्य सलाहकार समुज्जल कुमार भट्टाचार्य (AASU chief advisor Samujjal Kumar Bhattacharya) ने यहां नई दिल्ली में 'ईटीवी भारत' से कहा कि असम और पूरा पूर्वोत्तर पिछले कई दशकों से बाहरी घुसपैठ और आंतरिक अशांति के मुद्दे का सामना कर रहा है. भट्टाचार्य ने कहा, 'सीएए लागू करके केंद्र सरकार पूर्वोत्तर में अवैध प्रवाह को डंप करना चाहती है. सीएए असम समझौते की भावना के खिलाफ जाता है. पूर्वोत्तर अवैध विदेशियों के लिए डंपिंग ग्राउंड नहीं हो सकता है.'

गौरतलब है कि 1985 में केंद्र की तत्कालीन सरकार और राज्य सरकार ने ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इसके तहत वर्षों से चले आ रहे असम आंदोलन को समाप्त करने की कोशिश की गई थी. भट्टाचार्य ने कहा, 'हमें सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा है. हमें विश्वास है कि सीएए को वापस लेने से न्याय मिलेगा.' उन्होंने कहा, 'अगर सीएए खराब है और इनर लाइन परमिट और 6 अनुसूचित क्षेत्रों से इसकी जांच की जाती है, तो यह पूर्वोत्तर के अन्य हिस्सों के लिए कैसे अच्छा हो सकता है.'

कुल 232 याचिकाओं में से 53 पूर्वोत्तर से हैं. 50 याचिकाएं असम से और तीन त्रिपुरा से दायर की गई हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त नोडल काउंसलों को सलाह दी गई है कि वे अन्य बातों के अलावा भौगोलिक और धार्मिक वर्गीकरण के आधार को ध्यान में रखते हुए कुछ अन्य मामलों को प्रमुख मामलों के रूप में नामित करने पर विचार करें.

अदालत ने कहा कि असम और पूर्वोत्तर से संबंधित मुद्दों को उठाने वाली याचिकाओं को अलग-अलग वर्गीकृत किया जा सकता है. भट्टाचार्य ने कहा कि सीएए पर सुनवाई एक साथ जारी रहेगी लेकिन असम, त्रिपुरा और पूर्वोत्तर के लिए अलग-अलग समय होना चाहिए. भट्टाचार्य ने बताया, 'चूंकि पूर्वोत्तर राज्यों की स्थिति देश के अन्य हिस्सों से अलग है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वोत्तर के मामलों के अपने पहले के निर्देशों को अलग से बरकरार रखा है.'

उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने याचिकाएं दायर की हैं और उन्होंने मामले को दो हिस्सों में बांट दिया है. भट्टाचार्य ने कहा, 'चूंकि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) प्रमुख याचिकाकर्ता है, उनके तहत देश के सभी याचिकाकर्ताओं को एक साथ टैग किया गया है. जहां तक ​​पूर्वोत्तर का संबंध है, AASU प्रमुख याचिकाकर्ता होने के नाते क्षेत्र की अन्य सभी याचिकाओं को एक साथ टैग किया गया है.

जब से सरकार ने सीएए को मंजूरी दी है, पूर्वोत्तर राज्यों में एएएसयू और नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स यूनियन (एनईएसओ) के नेतृत्व में जोरदार विरोध हो रहा है. AASU और NESO दोनों पूरे पूर्वोत्तर राज्यों से CAA को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं. सीएए के साथ, सरकार का लक्ष्य धार्मिक उत्पीड़न के बाद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय को नागरिकता देना है.

पढ़ें- CAA की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 6 दिसंबर को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

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