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Nobel Peace Prize 2022 : बेलारूस के अधिकार कार्यकर्ता, रूसी समूह और यूक्रेनी संगठन के नाम नोबेल शांति पुरस्कार

नोबेल शांति पुरस्कार 2022 की घोषणा कर दी गई है (Nobel Peace Prize 2022). इस बार का नोबेल शांति पुरस्कार बेलारूस के मानवाधिकार कार्यकर्ता एलेस बियालियात्स्की और रूसी मानवाधिकार संगठन मेमोरियल और यूक्रेन के मानवाधिकार संगठन सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज को दिया गया है.

Ales Bialiatski
बेलारूस के मानवाधिकार अधिवक्ता एलेस बियालियात्स्की
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Published : Oct 7, 2022, 2:39 PM IST

Updated : Oct 7, 2022, 8:03 PM IST

ओस्लो : बेलारूस के जेल में बंद अधिकार कार्यकर्ता एलेस बियालियात्स्की, रूसी समूह 'मेमोरियल' और यूक्रेन के संगठन 'सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज' को इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार देने का ऐलान किया गया है (Nobel Peace Prize 2022).

यूक्रेन के संगठन को ऐसे समय पर पुरस्कार के लिए चुना गया है जब यूक्रेन फरवरी से रूस के हमलों का सामना कर रहा है और दोनों देशों की सेनाएं कई इलाकों में आमने-सामने हो चुकी हैं. इसके अलावा, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए उनके 70वें जन्मदिन पर यूक्रेन के एक संगठन को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना जाना किसी झटके से कम नहीं है. नोबेल कमेटी की प्रमुख बेरिट रीज एंडरसन ने शुक्रवार को ओस्लो, नार्वे में नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा की.

  • BREAKING NEWS:
    The Norwegian Nobel Committee has decided to award the 2022 #NobelPeacePrize to human rights advocate Ales Bialiatski from Belarus, the Russian human rights organisation Memorial and the Ukrainian human rights organisation Center for Civil Liberties. #NobelPrize pic.twitter.com/9YBdkJpDLU

    — The Nobel Prize (@NobelPrize) October 7, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

एंडरसन ने कहा कि कमेटी 'एक दूसरे के पड़ोसी देशों बेलारूस, रूस और यूक्रेन में मानवाधिकार, लोकतंत्र व शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के इन तीन बड़े पैरोकारों' को सम्मानित करना चाहती है.

उन्होंने ओस्लो में पत्रकारों से कहा, 'इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं ने मानवीय मूल्यों व कानूनी सिद्धांतों का समर्थन और सैन्य कार्रवाई का विरोध करके सभी राष्ट्रों के बीच शांति व सौहार्द के अल्फ्रेड नोबेल के विचार को पुनर्जीवित किया है. यह एक ऐसा विचार है, जिसकी आज दुनिया को बेहद जरूरत है.'

जानिए कौन हैं एलेस बियालियात्स्की : बियालियात्स्की 1980 के दशक के मध्य में बेलारूस में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के नेताओं में शुमार थे. वह तानाशाही व्यवस्था वाले देश बेलारूस में मानवाधिकारों व नागरिक स्वतंत्रता के लिए अभियान जारी रखे हुए हैं.

उन्होंने गैर-सरकारी संगठन 'ह्यूमन राइट्स सेंटर वियासना' की स्थापना की और साल 2020 में उन्होंने 'राइट लाइवलीहुड' पुरस्कार जीता, जिसे 'वैकल्पिक नोबेल' पुरस्कार भी कहा जाता है.

एंडरसन ने कहा कि व्यक्तिगत परेशानियां झेलने के बावजूद, बियालियात्स्की बेलारूस में मानवाधिकारों व लोकतंत्र के लिए अपनी लड़ाई में एक इंच भी पीछे नहीं हटे. उन्होंने कहा कि नोबेल समिति इस आशंका से अवगत है कि बेलियात्स्की को पुरस्कार दिए जाने पर बेलारूस में अधिकारी उनके खिलाफ और कार्रवाई कर सकते हैं. उन्होंने कहा, 'हम कामना करते हैं कि यह पुरस्कार उन्हें नकारात्मक रूप से प्रभावित नहीं करेगा. हमें उम्मीद है कि इससे उनका मनोबल बढ़ सकता है.'

वहीं, 'मेमोरियल' की स्थापना साम्यवादियों द्वारा किए गए दमन के शिकार लोगों की याद में साल 1987 में, तत्कालीन सोवियत संघ में की गई थी. 'मेमोरियल' अब भी रूस में मानवाधिकारों के हनन और राजनीतिक बंदियों के बारे में सूचनाएं एकत्र करता है.

एंडरसन ने कहा, 'संगठन सैन्यवाद का मुकाबला करने और कानून राज व मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के प्रयासों में भी सबसे आगे खड़ा है.' वहीं, यूक्रेन में मानवाधिकारों व लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए साल 2007 में 'सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज' की स्थापना की गई थी.

एंडरसन ने कहा, 'सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज ने यूक्रेनी नागरिक समाज को मजबूत बनाने के लिए कदम उठाए हैं. साथ ही इसने यूक्रेन को एक पूर्ण लोकतांत्रिक देश बनाने व कानून का राज कायम के लिए अधिकारियों पर दबाव डाला है.'

'सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज' के एक प्रतिनिधि वोलोदिमीर येवोरस्की ने कहा कि यह पुरस्तार संगठन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 'हमने बरसों बरस देश के लिए काम किया है. हालांकि यह पुरस्कार हमारे लिए आश्चर्य की बात है. लेकिन युद्ध के खिलाफ मानवाधिकार गतिविधियां मुख्य हथियार हैं.'

उल्लेखनीय है कि नोबेल पुरस्कार के तहत एक करोड़ स्वीडिश क्रोनर (तकरीबन 8.20 करोड़ रूपये) की राशि दी जाती है. स्वीडिश क्रोनर स्वीडन की मुद्रा है. पुरस्कार दिसंबर में दिए जाते हैं. स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर यह पुरस्कार दिया जाता है.

पढ़ें- Nobel Prize 2022: तीन वैज्ञानिकों को फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार

(पीटीआई-भाषा)

ओस्लो : बेलारूस के जेल में बंद अधिकार कार्यकर्ता एलेस बियालियात्स्की, रूसी समूह 'मेमोरियल' और यूक्रेन के संगठन 'सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज' को इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार देने का ऐलान किया गया है (Nobel Peace Prize 2022).

यूक्रेन के संगठन को ऐसे समय पर पुरस्कार के लिए चुना गया है जब यूक्रेन फरवरी से रूस के हमलों का सामना कर रहा है और दोनों देशों की सेनाएं कई इलाकों में आमने-सामने हो चुकी हैं. इसके अलावा, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए उनके 70वें जन्मदिन पर यूक्रेन के एक संगठन को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना जाना किसी झटके से कम नहीं है. नोबेल कमेटी की प्रमुख बेरिट रीज एंडरसन ने शुक्रवार को ओस्लो, नार्वे में नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा की.

  • BREAKING NEWS:
    The Norwegian Nobel Committee has decided to award the 2022 #NobelPeacePrize to human rights advocate Ales Bialiatski from Belarus, the Russian human rights organisation Memorial and the Ukrainian human rights organisation Center for Civil Liberties. #NobelPrize pic.twitter.com/9YBdkJpDLU

    — The Nobel Prize (@NobelPrize) October 7, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

एंडरसन ने कहा कि कमेटी 'एक दूसरे के पड़ोसी देशों बेलारूस, रूस और यूक्रेन में मानवाधिकार, लोकतंत्र व शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के इन तीन बड़े पैरोकारों' को सम्मानित करना चाहती है.

उन्होंने ओस्लो में पत्रकारों से कहा, 'इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं ने मानवीय मूल्यों व कानूनी सिद्धांतों का समर्थन और सैन्य कार्रवाई का विरोध करके सभी राष्ट्रों के बीच शांति व सौहार्द के अल्फ्रेड नोबेल के विचार को पुनर्जीवित किया है. यह एक ऐसा विचार है, जिसकी आज दुनिया को बेहद जरूरत है.'

जानिए कौन हैं एलेस बियालियात्स्की : बियालियात्स्की 1980 के दशक के मध्य में बेलारूस में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के नेताओं में शुमार थे. वह तानाशाही व्यवस्था वाले देश बेलारूस में मानवाधिकारों व नागरिक स्वतंत्रता के लिए अभियान जारी रखे हुए हैं.

उन्होंने गैर-सरकारी संगठन 'ह्यूमन राइट्स सेंटर वियासना' की स्थापना की और साल 2020 में उन्होंने 'राइट लाइवलीहुड' पुरस्कार जीता, जिसे 'वैकल्पिक नोबेल' पुरस्कार भी कहा जाता है.

एंडरसन ने कहा कि व्यक्तिगत परेशानियां झेलने के बावजूद, बियालियात्स्की बेलारूस में मानवाधिकारों व लोकतंत्र के लिए अपनी लड़ाई में एक इंच भी पीछे नहीं हटे. उन्होंने कहा कि नोबेल समिति इस आशंका से अवगत है कि बेलियात्स्की को पुरस्कार दिए जाने पर बेलारूस में अधिकारी उनके खिलाफ और कार्रवाई कर सकते हैं. उन्होंने कहा, 'हम कामना करते हैं कि यह पुरस्कार उन्हें नकारात्मक रूप से प्रभावित नहीं करेगा. हमें उम्मीद है कि इससे उनका मनोबल बढ़ सकता है.'

वहीं, 'मेमोरियल' की स्थापना साम्यवादियों द्वारा किए गए दमन के शिकार लोगों की याद में साल 1987 में, तत्कालीन सोवियत संघ में की गई थी. 'मेमोरियल' अब भी रूस में मानवाधिकारों के हनन और राजनीतिक बंदियों के बारे में सूचनाएं एकत्र करता है.

एंडरसन ने कहा, 'संगठन सैन्यवाद का मुकाबला करने और कानून राज व मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के प्रयासों में भी सबसे आगे खड़ा है.' वहीं, यूक्रेन में मानवाधिकारों व लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए साल 2007 में 'सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज' की स्थापना की गई थी.

एंडरसन ने कहा, 'सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज ने यूक्रेनी नागरिक समाज को मजबूत बनाने के लिए कदम उठाए हैं. साथ ही इसने यूक्रेन को एक पूर्ण लोकतांत्रिक देश बनाने व कानून का राज कायम के लिए अधिकारियों पर दबाव डाला है.'

'सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज' के एक प्रतिनिधि वोलोदिमीर येवोरस्की ने कहा कि यह पुरस्तार संगठन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 'हमने बरसों बरस देश के लिए काम किया है. हालांकि यह पुरस्कार हमारे लिए आश्चर्य की बात है. लेकिन युद्ध के खिलाफ मानवाधिकार गतिविधियां मुख्य हथियार हैं.'

उल्लेखनीय है कि नोबेल पुरस्कार के तहत एक करोड़ स्वीडिश क्रोनर (तकरीबन 8.20 करोड़ रूपये) की राशि दी जाती है. स्वीडिश क्रोनर स्वीडन की मुद्रा है. पुरस्कार दिसंबर में दिए जाते हैं. स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर यह पुरस्कार दिया जाता है.

पढ़ें- Nobel Prize 2022: तीन वैज्ञानिकों को फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Oct 7, 2022, 8:03 PM IST
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