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SC में 370 पर सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा- पूर्वोत्तर में लागू विशेष प्रावधानों को छूने का कोई इरादा नहीं

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 निरस्तीकरण पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि पूर्वोत्तर में इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है.

No intention to touch special provisions applicable to northeast Centre to SC during Article 370 hearing
सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 निरस्तीकरण पर सुनवाई
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 23, 2023, 2:14 PM IST

नई दिल्ली: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के प्रभाव पर चर्चा का विरोध करते हुए कहा कि केंद्र का पूर्वोत्तर राज्यों पर लागू विशेष प्रावधानों को टच करने का कोई इरादा नहीं है. शीर्ष अदालत ने एक हस्तक्षेपकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे कांग्रेस सांसद और वकील मनीष तिवारी से कहा, 'आपको अनुच्छेद 370 पर कुछ नहीं कहना है. तो हम आपको क्यों सुनें?'

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी आर गवई और सूर्यकांत ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई की. मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि भारत की परिधि में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं और अदालत वर्तमान में मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रही है.

तिवारी ने कहा कि अनुच्छेद 370, जम्मू-कश्मीर के लिए था. इसी तरह अनुच्छेद 371 के छह उप भाग हैं पूर्वोत्तर पर लागू होते हैं और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, त्रिपुरा, मेघालय पर लागू होती है. इस मामले में प्रासंगिक हो जाती है. तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 की व्याख्या संभवतः अन्य प्रावधानों को प्रभावित कर सकती है.

इस मौके पर मेहता ने कहा, 'मुझे यह कहने के निर्देश है. हमें बहुत जिम्मेदार होना होगा. हमें अस्थायी प्रावधान को समझना चाहिए जो कि अनुच्छेद 370 और पूर्वोत्तर (एनई) सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधान हैं. केंद्र सरकार का पूर्वोत्तर और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है. इस प्रस्तुतिकरण में बहुत संभावित शरारत होगी.

इसलिए मैं बीच में आकर बात स्पष्ट कर रहा हूं. आइए हम जम्मू-कश्मीर के लिए एक अस्थायी प्रावधान तक ही सीमित रहें, बाकी विशेष प्रावधान हैं, अस्थायी प्रावधान नहीं. तिवारी की दलीलों का विरोध करते हुए मेहता ने जोर देकर कहा कि कोई आशंका नहीं है और हमें कोई आशंका पैदा करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'हमें इससे प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटना चाहिए. हम एक विशिष्ट प्रावधान से निपट रहे हैं जो अनुच्छेद 370 है. हमें संविधान के अन्य प्रावधानों पर व्याख्या के प्रभाव पर इस दायरे का विस्तार करने की आवश्यकता नहीं है.

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि अनुच्छेद 370 को एक अस्थायी प्रावधान बताया गया है और निश्चित रूप से वकील ने तर्क दिया है कि यह अस्थायी नहीं है और अनुच्छेद 371 को इन कार्यवाही में नहीं लाया जाना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि केंद्र ने अदालत को सूचित किया है कि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं है, हमें यह क्यों आशंका होनी चाहिए कि सरकार देश के अन्य हिस्सों में यही करना चाहती है और 'मुझे लगता है कि हमें उस इलाके में बिल्कुल भी प्रवेश नहीं करना चाहिए.'

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि हमें अभी पूर्वोत्तर पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए. सरकार की ओर से दिए गए बयान से यह आशंका दूर हो गई है. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने पहले ही तर्क दिया है कि यदि आप किसी राज्य और उसके संविधान को निरस्त कर केंद्र शासित प्रदेश बनाने की अनुमति देते हैं तो यह केवल जम्मू-कश्मीर तक ही सीमित क्यों रहेगा. न्यायमूर्ति खन्ना ने तिवारी की लिखित दलीलों पर कहा कि यह ज्यादातर पूर्वोत्तर तक ही सीमित है और हम केवल अनुच्छेद 370 के साथ हैं.

न्यायमूर्ति गवई ने महाराष्ट्र और गुजरात के संबंध में विशेष प्रावधानों की ओर इशारा किया और इस बात पर जोर दिया कि अदालत अभी केवल 370 की व्याख्या कर रही है. मुख्य न्यायाधीश ने तिवारी से कहा, 'आपको धारा 370 पर कुछ नहीं कहना है. तो हम आपको क्यों सुनें. आपने धारा 370 पर अपनी प्रस्तुति में कुछ भी तैयार नहीं किया है?'

ये भी पढ़ें- Article 370 पर सुनवाई, सिब्बल बोले- जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण निर्विवाद था...है और हमेशा रहेगा

शीर्ष अदालत ने मेहता की दलीलों पर गौर किया कि केंद्र का पूर्वोत्तर या भारत के किसी अन्य हिस्से पर लागू किसी भी विशेष प्रावधान को छूने का कोई इरादा नहीं है. संविधान पीठ का संदर्भ अनुच्छेद 370 तक ही सीमित है. जिन मुद्दों को हस्तक्षेपकर्ता ने संबोधित करने की मांग की है और इस संविधान पीठ के संदर्भ में उठाए गए मुद्दों के बीच हितों की कोई समानता नहीं है.

नई दिल्ली: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के प्रभाव पर चर्चा का विरोध करते हुए कहा कि केंद्र का पूर्वोत्तर राज्यों पर लागू विशेष प्रावधानों को टच करने का कोई इरादा नहीं है. शीर्ष अदालत ने एक हस्तक्षेपकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे कांग्रेस सांसद और वकील मनीष तिवारी से कहा, 'आपको अनुच्छेद 370 पर कुछ नहीं कहना है. तो हम आपको क्यों सुनें?'

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी आर गवई और सूर्यकांत ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई की. मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि भारत की परिधि में थोड़ी सी भी आशंका के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं और अदालत वर्तमान में मणिपुर में ऐसी ही एक स्थिति से निपट रही है.

तिवारी ने कहा कि अनुच्छेद 370, जम्मू-कश्मीर के लिए था. इसी तरह अनुच्छेद 371 के छह उप भाग हैं पूर्वोत्तर पर लागू होते हैं और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, त्रिपुरा, मेघालय पर लागू होती है. इस मामले में प्रासंगिक हो जाती है. तिवारी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 की व्याख्या संभवतः अन्य प्रावधानों को प्रभावित कर सकती है.

इस मौके पर मेहता ने कहा, 'मुझे यह कहने के निर्देश है. हमें बहुत जिम्मेदार होना होगा. हमें अस्थायी प्रावधान को समझना चाहिए जो कि अनुच्छेद 370 और पूर्वोत्तर (एनई) सहित अन्य राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधान हैं. केंद्र सरकार का पूर्वोत्तर और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देने वाले किसी भी हिस्से को छूने का कोई इरादा नहीं है. इस प्रस्तुतिकरण में बहुत संभावित शरारत होगी.

इसलिए मैं बीच में आकर बात स्पष्ट कर रहा हूं. आइए हम जम्मू-कश्मीर के लिए एक अस्थायी प्रावधान तक ही सीमित रहें, बाकी विशेष प्रावधान हैं, अस्थायी प्रावधान नहीं. तिवारी की दलीलों का विरोध करते हुए मेहता ने जोर देकर कहा कि कोई आशंका नहीं है और हमें कोई आशंका पैदा करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'हमें इससे प्रत्याशा या आशंका में क्यों निपटना चाहिए. हम एक विशिष्ट प्रावधान से निपट रहे हैं जो अनुच्छेद 370 है. हमें संविधान के अन्य प्रावधानों पर व्याख्या के प्रभाव पर इस दायरे का विस्तार करने की आवश्यकता नहीं है.

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि अनुच्छेद 370 को एक अस्थायी प्रावधान बताया गया है और निश्चित रूप से वकील ने तर्क दिया है कि यह अस्थायी नहीं है और अनुच्छेद 371 को इन कार्यवाही में नहीं लाया जाना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि केंद्र ने अदालत को सूचित किया है कि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं है, हमें यह क्यों आशंका होनी चाहिए कि सरकार देश के अन्य हिस्सों में यही करना चाहती है और 'मुझे लगता है कि हमें उस इलाके में बिल्कुल भी प्रवेश नहीं करना चाहिए.'

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि हमें अभी पूर्वोत्तर पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए. सरकार की ओर से दिए गए बयान से यह आशंका दूर हो गई है. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने पहले ही तर्क दिया है कि यदि आप किसी राज्य और उसके संविधान को निरस्त कर केंद्र शासित प्रदेश बनाने की अनुमति देते हैं तो यह केवल जम्मू-कश्मीर तक ही सीमित क्यों रहेगा. न्यायमूर्ति खन्ना ने तिवारी की लिखित दलीलों पर कहा कि यह ज्यादातर पूर्वोत्तर तक ही सीमित है और हम केवल अनुच्छेद 370 के साथ हैं.

न्यायमूर्ति गवई ने महाराष्ट्र और गुजरात के संबंध में विशेष प्रावधानों की ओर इशारा किया और इस बात पर जोर दिया कि अदालत अभी केवल 370 की व्याख्या कर रही है. मुख्य न्यायाधीश ने तिवारी से कहा, 'आपको धारा 370 पर कुछ नहीं कहना है. तो हम आपको क्यों सुनें. आपने धारा 370 पर अपनी प्रस्तुति में कुछ भी तैयार नहीं किया है?'

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शीर्ष अदालत ने मेहता की दलीलों पर गौर किया कि केंद्र का पूर्वोत्तर या भारत के किसी अन्य हिस्से पर लागू किसी भी विशेष प्रावधान को छूने का कोई इरादा नहीं है. संविधान पीठ का संदर्भ अनुच्छेद 370 तक ही सीमित है. जिन मुद्दों को हस्तक्षेपकर्ता ने संबोधित करने की मांग की है और इस संविधान पीठ के संदर्भ में उठाए गए मुद्दों के बीच हितों की कोई समानता नहीं है.

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